सड़क पर ई-रिक्शा चलाने को मजबूर हुआ ये क्रिकेटर, 20 गेंद में ठोके थे 67 रन
2016 में नैशनल लेवल के टूर्नामेंट में मैन ऑफ द मैच रहे, बिहार सरकार ने खेल के क्षेत्र में योगदान के लिए सम्मानित किया लेकिन, अब आर्थिक तंगी से जूझ रहा ये क्रिकेटर ई-रिक्शा चलाने पर मजबूर हो गया है।
cricketer drive an e-rickshaw: दिव्यांग क्रिकेट सर्किट में स्टेट और नैशनल लेवल के टूर्नमेंट्स में जलवा बिखेर चुके राजा बाबू सुर्खियों में हैं। 2017 में IPL की तर्ज पर शुरू हुए T20 टूर्नामेंट में मुंबई की टीम के कप्तान थे, दिल्ली के खिलाफ उत्तर प्रदेश के लिए खेलते हुए 20 गेंद में 67 रन बनाए लेकिन, अब ये क्रिकेटर आर्थिक तंगी से जूझ रहा है।
31 साल के क्रिकेटर राजा बाबू पिछले दो साल से भी ज्यादा वक्त से गाजियाबाद की सड़कों पर ई-रिक्शा चला रहे हैं। ये वही ई-रिक्शा है जो उनकी ताबड़तोड़ बैटिंग से प्रभावित होकर एक लोकल कारोबारी ने उन्हें गिफ्ट किया था। टाइम्स के साथ बातचीत के दौरान राजा बाबू ने आपबीती सुनाई है।
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कोरोना वायरस महामारी ने उनके करियर और जिंदगी को पूरी तरह से उधेड़ कर रख दिया। दरअसल, 2020 में यूपी में दिव्यांग क्रिकेटर्स के लिए बनी चैरिटेबल संस्था दिव्यांग क्रिकेट एसोसिएशन (DCA) भंग कर दी गई जो राजा बाबू की आमदनी का मुख्य जरिया थी।
राजा बाबू ने इस मामले पर बोलते हुए कहा, 'शुरुआती कुछ महीने आर्थिक तंगी से जूझने के कारण मैंने गाजियाबाद की सड़कों पर दूध बेचा। अभी मैं बहरामपुर और विजय नगर के बीच रोज करीब 10 घंटे ई-रिक्शा चलाने को मजबूर हूं ताकि सिर्फ 250-300 रुपये कमा सकूं। घर का खर्च नहीं चल पाता और बच्चों की पढ़ाई के लिए कुछ नहीं बचा है। दिव्यांगों के लिए रोजगार के मौके कितने कम हैं यह हम सबको पता है।'
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हादसे में गंवाया दोनों पैर: राजा बाबू ने कहा, '1997 में स्कूल से घर लौटते वक्त एक ट्रेन हादसे में मैंने बायां पैर खो दिया। हादसे के बाद मेरी पढ़ाई रुक गई थी क्योंकि परिवार स्कूल की फीस नहीं चुका सकता था। हादसे ने मेरी जिंदगी बदली मगर मैंने सपने देखना नहीं छोड़ा।'