क्या उलझ गया है संजू सैमसन का भी भविष्य?
3 फरवरी। महेंद्र सिंह धोनी के विकल्पों की बात होती है तो सबसे पहले ऋषभ पंत का नाम लिया जाता था और कहा जाता था कि वही एकमात्र हैं जिनमें धोनी की कमी पूरी करने का दम है। वक्त के साथ
3 फरवरी। महेंद्र सिंह धोनी के विकल्पों की बात होती है तो सबसे पहले ऋषभ पंत का नाम लिया जाता था और कहा जाता था कि वही एकमात्र हैं जिनमें धोनी की कमी पूरी करने का दम है। वक्त के साथ यह मुगालता निकला और संजू सैमसन का नाम धोनी के उत्तराधिकारी के तौर पर चर्चाओं में आ गया, लेकिन लग रहा है कि संजू ने हाथ आए इस मौके को आसानी से फिसलने दे दिया। कारण उन्हें बार-बार दिए गए मौके हैं जिनमें वो विफल रहे और अपनी परिपक्वता को साबित नहीं कर सके।
संजू ने यूं तो 2015 में भारतीय टीम के लिए पदार्पण किया था। हरारे में वह 19 जुलाई को जिम्बाब्वे के खिलाफ पहली बार टी-20 मैच में खेले थे। टीम की जर्सी उन्हें अंडर-19 स्तर और फिर आईपीएल में राजस्थान रॉयल्स के साथ बेहतरीन प्रदर्शन के बाद मिली थी। अपने पहले मैच में संजू सिर्फ 19 रन ही बना सके थे।
इस सीरीज के बाद संजू को वनवास मिला और वह लगातार राष्ट्रीय टीम से नजरअंदाज किए जाने लगे थे। घेरलू क्रिकेट में या इंडिया-ए के लिए वह लगातार अच्छा कर रहे थे लेकिन इस बीच पंत के उदय ने संजू के अस्त की कहानी लिखनी शुरू कर दी थी।
किस्मत हालांकि पलटी और पंत उम्मीदों पर खरे नहीं उतर सके। पंत से इतर जब चयनकर्ताओं ने देखा तो संजू का चेहरा दिखा।
लंबे समय बाद 2019 में वह बांग्लादेश के खिलाफ टी-20 सीरीज के लिए भारतीय टीम में चुने गए। लेकिन अफसोस यह रहा कि वह अंतिम-11 में नहीं थे। वेस्टइंडीज के खिलाफ खेली गई टी-20 सीरीज के लिए भी चोटिल शिखर धवन के स्थान पर संजू को चुना गया लेकिन फिर भी अंतिम-11 में मौका नहीं मिला।
श्रीलंका के खिलाफ खेली गई तीन मैचों की टी-20 सीरीज के आखिरी मैच में सैमसन अंतिम-11 में जगह बनाने में सफल रहे। पहली गेंद पर आते ही छक्का लगाया लेकिन फिर जल्दबाजी में खराब शॉट खेल कर आउट हो गए। यह व्यवहार संजू के खिलाफ। उनसे उम्मीद थी कि वह विकेट पर खड़े होकर टीम के स्कोरबोर्ड को अच्छे से चलाएंगे। संजू यह कर नहीं सके। कारण शायद दबाव रहा होगा।
न्यूजीलैंड दौरे के लिए जब टीम चुनी गई थी तो टी-20 टीम में संजू का नाम नहीं था। चयनकर्ताओं पर सवाल उठे कि एक मैच के बिना पर संजू को बाहर क्यों कर दिया गया? सवाल वाजिब भी थे।
यहां किस्मत ने फिर संजू का साथ दिया और शिखर धवन की चोट ने उन्हें न्यूजीलैंड का टिकट थमा दिया।
भारत ने पांच मैचों की टी-20 सीरीज में न्यूजीलैंड पर 3-0 की अजेय बढ़त ले ली थी। आखिरी दो मैचों में संजू को मौका मिला। चौथे मैच में रोहित शर्मा को आराम दिया गया तो संजू ने लोकेश राहुल के साथ पारी की शुरुआत की, लेकिन संजू फिर मौके को भुना नहीं पाए। सिर्फ आठ रन उनके बल्ले से निकले। उससे ज्यादा तकलीफ देह संजू को खराब शॉट रहा।
पांचवें और आखिरी मैच में रोहित लौटे लेकिन कोहली को आराम दिया गया। टीम प्रबंधन ने संजू को आत्मविश्वास देने के लिए उनके स्थान से छेड़छाड़ नहीं की और राहुल के साथ सलामी बल्लेबाजी करने दिया। रोहित ने अपना स्थान कर्बान किया और खुद तीन नंबर आए।
संजू से इस बार उम्मीद थी कि वह टीम प्रबंधन को निराश नहीं करेंगे। लेकिन स्कॉट कुगलेजिन की गेंद पर संजू सीधा कैच मिशेल सैंटनर को एक्सट्रा कवर पर दे बैठे।
संजू के चेहरे पर जो भावनाएं थीं वो बता रही थीं कि कुछ बड़ा उनके हाथ से गया। बात सही भी है। तीन मौकों पर लगातार विफल रहना वो भी तब जब आप बैकअप के तौर पर आए हैं तो जाहिर सी बात है कि जगह बनाए रखने का सवाल खड़ा हो गया।
इस दौरान संजू के ऊपर दबाव भी देखा गया। शायद इसी दबाव में संजू विफल रहे।
देखा जाए तो बांग्लादेश के खिलाफ अगर सीरीज को छोड़ दिया जाए संजू कभी भी टीम में पहले विकल्प के तौर नहीं आए थे। किसी न किसी के चोटिल होने के बाद चयनकर्ताओं ने उन्हें टीम में मौका मिला। यह बात संजू को समझनी थी कि अगर वह पहली पसंद बनना चाहते हैं तो बल्ले से रन करना जरूरी था।
वह सिर्फ टी-20 में ही चुने गए थे और अगर खेल के सबसे छोटे प्रारूप में उनका बल्ला बोलता तो वनडे के लिए भी रास्ता बनता लेकिन संजू ने टी-20 टीम के लिए एक दरवाजा शायद बंद कर लिया है। वह तीनों मौकों पर दहाई के आंकड़ों को भी नहीं छू सके।
चयनकर्ता किस तरह अब संजू को देखते हैं यह देखना दिलचस्प होगा। संजू को अब एक बार फिर आईपीएल में दमदार करना होगा तभी वह अपनी दावेदारी को मजबूत कर सकते हैं।
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