एथलेटिक्स एक ऐसा खेल जो किसी भी खिलाड़ी की शारीरिक और बौद्धिक क्षमताओं की कड़ी परीक्षा लेता है। एथलेटिक्स एक ऐसा खेल जहां भारत के पास अभी तक सिर्फ एक ओलंपिक गोल्ड मेडल है। एथलेटिक्स में भागीदारी करना और जीतना बेहद कड़ी मेहनत मांगता है। पेरिस ओलंपिक गेम्स का समापन हो चुका है। अब समर ओलंपिक के बाद आने वाले पैरालंपिक खेलों की बारी है। पेरिस पैरालंपिक खेलों में भी एथलेटिक्स छाया रहेगा।
इन खेलों में एथलेटिक्स को पैरा एथलेटिक्स कहा जाता है। पैरालंपिक शारीरिक इम्पेयरमेंट वाले खिलाड़ियों का महाकुंभ है और यहां पदक जीतने का महत्व ओलंपिक से कम नहीं होता है। पैरालंपिक में एथलेटिक्स शारीरिक, दृष्टि और बौद्धिक तौर पर चैलेजिंग वर्गों के लिए खुला है। पैरालंपिक में एथलेटिक्स की सफलता भी सिर चढ़कर बोलती है। इसका पता पैरालंपिक खेलों में होने वाले इवेंट्स की बड़ी संख्या से चलता है। उदाहरण के लिए, 100 मीटर दौड़ को ही लें। ओलंपिक खेलों में पुरुष और महिलाओं के लिए केवल दो फाइनल होते हैं, जबकि टोक्यो 2020 पैरालंपिक खेलों में 29 फाइनल हुए थे। जिसमें पुरुषों के लिए 16 और महिलाओं के लिए 13 इवेंट हुए थे।
पैरा एथलेटिक्स का इतिहास खोजने के लिए साल 1952 में जाना होगा, जब रीढ़ की हड्डी की चोट वाले खिलाड़ियों ने स्टोक मैंडविल खेलों में भाला फेंक प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था। एथलेटिक्स उन पहले आठ खेलों में से एक था जिसे रोम 1960 में पहले पैरालंपिक कार्यक्रम में शामिल किया गया था। इसमें विभिन्न प्रकार के ट्रैक इवेंट्स (बाधा दौड़ और वॉकिंग इवेंट्स को छोड़कर), जंपिंग इवेंट्स, थ्रोइंग इवेंट्स (हैमर थ्रो को छोड़कर), और 1984 से शामिल की गई मैराथन जैसी प्रतियोगिताएं शामिल हैं।