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भले लखनऊ में आईपीएल मैच नहीं खेल रहे पर शहर की टीम ने वहां क्रिकेट की याद ताजा करा दी

जब इस साल आईपीएल शुरू होगी तो दो नए शहर का नाम चमकेगा- उनमें से एक लखनऊ है। आईपीएल में दो नई फ्रैंचाइजी में से एक लखनऊ- इसके 7,090 करोड़ रुपए में बिकने पर हैरानी तो होनी ही थी। आईपीएल

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India vs Pakistan 1952 Test
India vs Pakistan 1952 Test (Image Source: Google)
Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti
Mar 25, 2022 • 03:00 PM

जब इस साल आईपीएल शुरू होगी तो दो नए शहर का नाम चमकेगा- उनमें से एक लखनऊ है। आईपीएल में दो नई फ्रैंचाइजी में से एक लखनऊ- इसके 7,090 करोड़ रुपए में बिकने पर हैरानी तो होनी ही थी। आईपीएल की सबसे महंगी टीम है ये। सोचा ये जा रहा है कि आईपीएल की बदौलत उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का नाम क्रिकेट के नक़्शे पर चमकेगा- ऐसा नहीं है।

Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti
March 25, 2022 • 03:00 PM

लखनऊ में क्रिकेट का जिक्र नया नहीं है- ये बात अलग है कि खुद उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन ने यहां क्रिकेट को सही तरह प्रमोट नहीं किया। इंटरनेशनल क्रिकेट की बात करें तो मैच आयोजित करने के मामले में उत्तर प्रदेश के दो बड़े शहर लखनऊ और कानपुर आपस में मुकाबला करते रहे। 1952-53 के भारत टूर में, पाकिस्तान की टीम दिल्ली में पहला टेस्ट हारने के बाद, सीरीज का दूसरा टेस्ट खेलने लखनऊ आई थी।

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अगर लखनऊ में तब टेस्ट हुआ तो ये एक व्यक्ति की जिद्द का नतीजा था। 1857 में आजादी की लड़ाई में यहां जो हुआ- उसे अंग्रजों ने कभी भुलाया नहीं। नतीजा- लखनऊ नजरअंदाज हुआ। न सिर्फ सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी, हाई कोर्ट भी इलाहाबाद को दे दिए। सारी इंडस्ट्री कानपुर को और इन्हीं उद्योगपतियों की बदौलत ग्रीन पार्क में टेस्ट खेलना शुरू हो गया। विजी यानि कि महाराजकुमार ऑफ़ विजियानगरम ने जिद्द की- टेस्ट लखनऊ में खेलेंगे और अपने रुतबे से लखनऊ को टेस्ट दिला दिया।

यूनिवर्सिटी और गोमती नदी के बीच एक बड़ा खूबसूरत ग्राउंड था- वहीं ये टेस्ट खेले थे। यूनिवर्सिटी के साथ था- इसलिए नाम यूनिवर्सिटी ग्राउंड था। पाकिस्तान के टेस्ट इतिहास में इस टेस्ट का बहुत महत्व इसलिए है क्योंकि पाकिस्तान ने अपनी पहली टेस्ट जीत हासिल की। अपनी पहली ही टेस्ट सीरीज में उनसे पहले सिर्फ इंग्लैंड ने टेस्ट जीता था।

नया-नया टेस्ट आयोजित करने का मौका मिला यूनिवर्सिटी ग्राउंड को तो जल्दबाजी में अच्छे दर्जे की पिच कहां से बनाते? विजी की गलत पसंद थी जूट-मैटिंग। पाकिस्तान के गेंदबाज बड़े खुश हुए इसे देखकर क्योंकि वे तो आदी थे मैटिंग पर खेलने के। फर्क ये था कि पाकिस्तान में कोयर मैटिंग पर खेलते थे और यहां बिछी थी जूट मैटिंग। दिक्कत हुई- तब भी पाकिस्तान टेस्ट जीत गया और फज़ल महमूद ने 12 विकेट लिए। टेस्ट के लिए जब पाकिस्तान की टीम लखनऊ पहुंची थी तो रॉयल होटल (जहां पाकिस्तान टीम ठहरी थी) में फज़ल के नाम उनकी बेगम नाज़ी का एक टेलीग्राम आया हुआ था। उन्होंने चाहा था कि फजल एक पारी में कम से कम 7 विकेट जरूर लें। फजल ने दूसरी पारी में 7/42 का तोहफा दिया उन्हें।

इस टेस्ट के कई मजेदार किस्से है पर सबसे यादगार और ऐतिहासिक बात है वह ग्राउंड जहां टेस्ट खेले। इस जीत ने पाकिस्तान के कप्तान अब्दुल हफीज कारदार के करियर को लाइफ लाइन दी थी। वे इस ग्राउंड के इतने दीवाने हो गए कि जब पाकिस्तान की टीम, टेस्ट के बाद, होटल से रवाना होने के लिए तैयार थी तो टीम को रोक कर, अकेले फिर से ग्राउंड पर चले गए। मंकी ब्रिज पर खड़े होकर ग्राउंड को निहारते रहे काफी देर तक। न सिर्फ वे, फजल और नजर मोहम्मद इस टेस्ट के हीरो थे पाकिस्तान के लिए। इस टेस्ट के कई मजेदार किस्से हैं पर वह एक अलग स्टोरी है।

अगर अब आप लखनऊ जाएं और इस ऐतिहासिक ग्राउंड को देखना चाहें तो कहां है ये? ये उन कुछ गिने चुने टेस्ट ग्राउंड में से एक है जो अब हैं ही नहीं- कुछ आधुनिकता की दौड़ में नए बन गए तो कुछ आबादी बढ़ने से शहर की डेवलपमेंट में समा गए। ये भी स्टेडियम क्या, महज एक ग्राउंड था गोमती के किनारे जो समय के साथ रास्ता बदलती गोमती में ही समा गया।

1960 में आई बाढ़ इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार थी। इस समय जहां यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन का ऑफिस है- ये ग्राउंड वहां से शुरू होकर गोमती के किनारे तक था। आज चारों तरफ बिल्डिंग दिखाई देती हैं- तब ग्राउंड के चारों तरफ खूबसूरत नजारा था। बीच में बांध भी नहीं था। ये बांध 1960 की बाढ़ के बाद बना था। इसके बाद इस मैदान का अस्तित्व भी समाप्त हो गया।

पाकिस्तान के क्रिकेटर नजर मोहम्मद का जिक्र जरूरी है- वे यहां, एक पूरे टेस्ट के दौरान ग्राउंड पर रहने वाले पहले खिलाड़ी बने थे। इसमें पारी शुरू कर आखिर तक आउट न होने का रिकॉर्ड शामिल है। तीस साल बाद,1983 में, उनके बेटे मुदस्सर ने भी लाहौर में भारत के विरुद्ध 152* बनाए तो पारी शुरू कर आखिर तक आउट नहीं हुए। मुदस्सर नजर जब 2003 में भारत आए तो अपने अब्बा के रिकॉर्ड को याद करते हुए, इस ग्राउंड को देखने आए थे। उस साल वे, भारत में एक स्कूल क्रिकेट टूर्नामेंट में कीनिया की टीम के कोच के तौर पर आए थे। तब उनकी इच्छा थी कि ग्राउंड देखें- जो निशान बचे थे, वे उन्हें ही देखकर खुश थे।

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