Advertisement
Advertisement
Advertisement

साउथ अफ्रीका क्रिकेट और द ग्रेट माइग्रेशन!

11 जनवरी। पिछले एक दशक में अगर गौर किया जाए तो ेइंग्लैंड की राष्ट्रीय टीम में कई ऐसे खिलाड़ी हैं जो दक्षिण अफ्रीका में पैदा हुए, पले-बढ़े लेकिन इंग्लैंड के लिए अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट खेले। इनमें सबसे बड़ा नाम केविन...

Vishal Bhagat
By Vishal Bhagat January 11, 2020 • 17:55 PM
साउथ अफ्रीका क्रिकेट और द ग्रेट माइग्रेशन! Images
साउथ अफ्रीका क्रिकेट और द ग्रेट माइग्रेशन! Images (twitter)
Advertisement

11 जनवरी। पिछले एक दशक में अगर गौर किया जाए तो ेइंग्लैंड की राष्ट्रीय टीम में कई ऐसे खिलाड़ी हैं जो दक्षिण अफ्रीका में पैदा हुए, पले-बढ़े लेकिन इंग्लैंड के लिए अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट खेले। इनमें सबसे बड़ा नाम केविन पीटरसन का भी है, जिन्होंने इंग्लैंड की कप्तानी भी की।

दक्षिण अफ्रीका के खिलाड़ी इसलिए इंग्लैंड में खेल पाते क्योंकि इंग्लैंड का एक नियम उन्हें इसकी इजाजत देता है और वो नियम है एंस्सेट्रल पासपोर्ट का।

Trending


कई खिलाड़ी दक्षिण अफ्रीका से इंग्लैंड आते हैं चाहे वो राष्ट्रीय टीम के लिए खेलने के लिए आएं या कोलपैक के जरिए और अब दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ियों ने नए देश का रूख करना भी शुरू कर दिया है और वो देश है न्यूजीलैंड।

सवाल तो यह है कि दक्षिण अफ्रीका के खिलाड़ी न्यूजीलैंड और इंग्लैंड जा क्यों रहे हैं?

पिछले दशक में दक्षिण अफ्रीका से इंग्लैंड गए खिलाड़ियों का आंकड़ा लगभग तीन गुना बढ़ा है। 91 खिलाड़ी जहां 2000 के दशक में गए थे तो बीते दशक में इन खिलाड़ियों की संख्या 122 हो गई है।

यह होता आया है, लेकिन दक्षिण अफ्रीका खिलाड़ियों का न्यूजीलैंड का रूख करना हैरानी वाला जान पड़ता है। 2000 के दशक में सिर्फ 16 दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ी न्यूजीलैंड गए थे लेकिन बीते दशक में यह आंकड़ा 46 तक पहुंच गया और इनमें से अधिकतर खिलाड़ी गोरे हैं।

देश बदलने का खिलाड़ियों का अपना कारण हो सकता है लेकिन अगर पिछले दशक की बात की जाए तो अधिकतर खिलाड़ी मौके और पैसों के कारण दूसरे देश गए हैं।

ऐसे ही एक खिलाड़ी जो मौके की तलाश में दक्षिण अफ्रीका छोड़कर न्यूजीलैंड गए वो हैं चाड बोव्स। चाड दक्षिण अफ्रीका अंडर-19 टीम की कप्तानी भी कर चुके हैं, लेकिन अब वह न्यूजीलैंड जैसे छोटे देश में केंटरबरी से खेल रहे हैं।

डरहम में पैदा हुए चाड दक्षिण अफ्रीका के लिए खेलना चाहते थे। 2012 में अंडर-19 विश्व कप में 47 की औसत से रन बनाने के बाद उन्हें लगा था कि वह जल्द ही राष्ट्रीय टीम की जर्सी पहनेंगे। इसी विश्व कप में क्विंटन डी कॉक के साथ पारी की शुरुआत करने वाले चाड के लिए यह संभव नहीं हो सका।

क्वाजुलु नटाल के लिए उन्होंने घरेलू क्रिकेट खेलना शुरू की लेकिन उनकी फॉर्म खराब हो गई, लेकिन उनका कहना है कि फॉर्म महज एक छोटा का हिस्सा था बड़ा हिस्सा वो नियम था जिसके मुताबिक एक प्रांत की टीम में एक रंग के निश्चित खिलाड़ी की संख्या होना चाहिए, जिसे सरल भाषा में कोटा सिस्टम कहा जाता है। नियम के मुताबिक अंतिम-11 में सिर्फ पांच गोरे ही हो सकते थे।

इसी कारण वह निराश हो गए और फिर उन पर दबाव बढ़ गया जिसके कारण उनकी फॉर्म खराब हो गई।

क्रिकबज ने चाड के हवाले से लिखा है, "कोटा सिस्टम एक बड़े पहिए की राह में बड़ी रुकावट है। यह खिलाड़ियों को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह से प्रभावित करता है। मैं इस सिस्टम में बड़ा हुआ हैं इसलिए इसे अच्छे से जानता हूं।"

ऐसा भी मौका था जब चाड क्रिकेट छोड़ने के बारे में सोच रहे थे क्योंकि दक्षिण अफ्रीका का घरेलू क्रिकेट दो टिएर में बंटा हुआ है। इलिट स्तर पर 13 राज्यों से छह फ्रेंचाइजियां हैं जिसमें कोटा सिस्टम के बाद 95 खिलाड़ियों की जगह बचती है।

चाड ने कहा, "यह खराब माहौल था जो मेरे जीवन में पैठ बना रहा था। मैं अपने काम को जारी नहीं रख पा रहा था। इसलिए मैंने छोड़ने का फैसला किया था।"

2013 से लेकर 2017 तक हारून लोगार्ट क्रिकेट दक्षिण अफ्रीका (सीएसए) के सीईओ। अपना पद संभालते हुए उन्होंने बड़े बदलावों की वकालत की क्योंकि उनके मुताबिक खेल ने उस तरह से तरक्की नहीं की थी जिस तरह से करनी चाहिए थी।

लोगार्ट के मुताबिक, "बीते एक और दो दशक हमें बताते हैं कि अश्वेत और अफ्रीकन अश्वेत ज्यादा कुछ हासिल नहीं कर सके हैं और उन्हें पर्याप्त मौके नहीं दिए जा सके हैं।"

लोगार्ट के बोर्ड में आने के बाद उन्होंने इसके लिए बदलाव किए, लेकिन वह इसे कोटा नहीं मानते थे बल्कि उनके मुताबिक यह लक्ष्य था जो फ्रेंचाइजियों को हासिल करना था।

सिर्फ चाड ही नहीं माइकल रिप्पन भी ऐसा नाम है जिन्हें दक्षिण अफ्रीका से क्रिकेट खेलने के लिए पलायन करना पड़ा। 2010 में उनके पास ससेक्स के लिए खेलने का मौका आया जिसे उन्होंने घर में बंद हुए रास्ते के बाद चुना और इंग्लैंड रवाना हो गए। इसके बाद वह अलग-अलग क्लबों के लिए खेल रहे हैं। नीदरलैंड्स की राष्ट्रीय टीम के लिए वह खेले। होलैंड के लिए भी वह खेले। इसी तरह कोटा सिस्टम से हताश होकर न जाने कितने खिलाड़ियों ने इंग्लैंड और न्यूजीलैंड का रूख किया है।

आज हालत यह है कि एक समय अपने बेहतरीन खेल के लिए मशहूर दक्षिण अफ्रीका अपने दिग्गजों के जाने के बाद उनके रिक्त स्थानों की भरपाई नहीं कर पा रही है। अब्राहम डिविलियर्स, हाशिम अमला के बाद से उसके पास बल्लेबाजों की घोर कमी है। पूरी टीम बदलाव के दौर से गुजर रही है लेकिन वो प्रतिभा दिखाई नहीं दे रही है जो उसे एक बार फिर शीर्ष पर ले जाए।

अभिषेक उपाध्याय


Cricket Scorecard

Advertisement