Cricket Tales: उस क्रिकेटर - पुलिस ऑफिसर का रूतबा आज भी याद किया जाता है
फजल महमूद - कहानी एक क्रिकेटर - पुलिस ऑफिसर की जिसका रूतबा आज भी याद किया जाता है
Cricket Tales - पाकिस्तान के स्टार पेसर, खब्बू तेज गेंदबाज शाहीन शाह अफरीदी को खैबर पख्तूनख्वा पुलिस में ऑनरेरी Deputy Superintendent of Police (डीएसपी) बना दिया है। पाकिस्तान पुलिस ने उनकी स्टारडम का इस्तेमाल किया है। साथ में शाहीन खैबर पख्तूनख्वा पुलिस का गुडविल एम्बेसडर भी बने- लोगों से अच्छे संबंध बनाने के साथ, पुलिस में विश्वास कायम कराने का काम करेंगे। शाहीन के परिवार का पुलिस से नाता कोई नया नहीं- अब्बा खैबर पख्तूनख्वा पुलिस से रिटायर हुए और भाई तो अभी भी इसी पुलिस में।
क्रिकेटर के पुलिस से जुड़ने की खबर हो तो एकदम ध्यान पाकिस्तान के उस क्रिकेटर पर जाता है जिसने वास्तव में पुलिस में 'नौकरी' की और ड्यूटी को बड़ी गंभीरता से निभाया। कई क्रिकेटरों ने पाकिस्तान पुलिस में नौकरी की पर तेज गेंदबाज सुपरस्टार, फजल महमूद की बात ही अलग है। क्रिकेट में थे तो उस दौरान पाकिस्तान पुलिस में डीएसपी तक पहुंचे और बाद में डीआईजी तक। फजल का 78 साल की उम्र में निधन हुआ।
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इस तरह फजल के दो पहलू सामने आते हैं- पहला क्रिकेट और दूसरा पुलिस। सबसे पहले क्रिकेट: पाकिस्तान के सबसे मशहूर क्रिकेटरों में से एक,1952-53 और 1962 के बीच 34 टेस्ट में 139 विकेट। पाकिस्तान क्रिकेट की शुरुआत में दो सनसनीखेज जीत के लिए वे ही जिम्मेदार थे- अक्टूबर 1952 में लखनऊ में भारत के विरुद्ध 12-94 के आंकड़े दर्ज करते हुए पाकिस्तान की पहली टेस्ट जीत पक्की की और दो साल बाद, पाकिस्तान के पहले टेस्ट इंग्लैंड टूर में ओवल में जीत में 12 विकेट लिए।
इसमें दूसरी पारी में 6-46 जिसमें पीटर मे और डेनिस कॉम्पटन के बड़े विकेट भी थे। तब उन्हें विजडन के साल के पांच क्रिकेटरों में से एक चुना था। अब्दुल हफीज कारदार, इम्तियाज अहमद और हनीफ मोहम्मद के साथ, फज़ल महमूद को अक्सर पाकिस्तान क्रिकेट की पहचान के तौर पर जाना जाता है।
अब फजल की पुलिस की भूमिका की बात करते हैं। भारत-पाकिस्तान विभाजन से पहले, रणजी ट्रॉफी में खेले और विश्वास कीजिए 1947-48 में ऑस्ट्रेलिया टूर के लिए भारत की टीम में थे पर गए नहीं। वजह थी- विभाजन के बाद पाकिस्तान में रहने का फैसला किया और उन्हीं दिनों में पुलिस अफसर की नौकरी लग गई थी। पाकिस्तान क्रिकेट की अगर उस दौर की रिपोर्ट पढ़ें तो उनमें साफ़ जिक्र है कि फजल, विभाजन के बाद भी भारत के लिए खेलना चाहते थे ताकि कहीं ऐसा न हो जाए कि कोई उनकी क्रिकेट टेलेंट देखे ही न। तब उन्हें भारत जाने से रोकने के लिए, उन्हें अपना दामाद बनाने का इरादा रखने वाले मियां मोहम्मद सईद ने अपने रुतबे से उन्हें न सिर्फ पुलिस ऑफिसर की नौकरी दिलवाकर, भारत जाने से रोक दिया था, कम उम्र में शादी भी करवा दी। ये एक अलग स्टोरी है। फ़ज़ल महमूद इकोनॉमिक्स में एमए थे और सितंबर 1947 में इंस्पेक्टर बने थे पाकिस्तान पुलिस में।
अब पुलिस में आ गए तो वास्तव में कड़क मिजाज बन गए। टीम में भी बड़े अनुशासित रहते थे। लंबे और गजब के फिट तो थे ही। इतने 'हैंडसम' दिखते थे कि कई बार उन्हें फिल्मों में हीरो बनाने की भी कोशिश की गई। ये अलग किस्सा है। हाल फिलहाल उनके पुलिस के किस्से :
लाहौर और कराची जैसे बड़े शहरों में बढ़ती भीड़ और बे-तरतीब ट्रेफिक देखकर वे अक्सर बेचैन हो जाते थे और चाहते थे कि यूरोपीय देशों की तरह, पाकिस्तान में भी लोग सड़क पर ट्रेफिक नियमों को मानें। इसलिए जब खुद ट्रेफिक डिपार्टमेंट के हैड बने तो लाहौर में ट्रेफिक नियम लागू करने पर बड़ी मेहनत की। पाकिस्तान पुलिस के लिए दो ट्रेफिक मैन्युअल 'स्पीड विद सेफ्टी' तैयार किए- इनमें इतने सख्त नियम लिखे थे कि ऊपर के अधिकारियों को लगा कि पाकिस्तान में इन्हें कभी लागू नहीं किया जा सकेगा और ये मैन्युअल आज तक फाइलों में बंद पड़े हैं।
पुलिस की नौकरी से सख्त बन गए और घर पर भी ये रूतबा दिखाने से रुकते नहीं थे। उनके बेटे शहजाद महमूद ने एक इंटरव्यू में उनकी सख्ती के कई किस्से सुनाए थे। फिटनेस पर बड़ी मेहनत करते थे- हालांकि चेन स्मोकर थे पर बेहतर ट्रेनिंग से खुद को हमेशा फिट रखा। स्कूल के दिनों से ही फजल सुबह साढ़े चार बजे 10 मील की जॉगिंग के लिए जाते थे।
क्रिकेट के बाद जब पूरा ध्यान पुलिस में लगाया तो भी ऐसा नहीं कि खेलों को भूल गए। पुलिस फोर्स में कई टॉप एथलीटों को तैयार किया। क्रिकेटर सारी जिंदगी अपनी सबसे बेहतर याद के तौर पर अपने पुराने बैट या गेंद दिखाते रहते हैं- वे ख़ास जूते दिखाते थे। उनके पसंदीदा भूरे रंग के जूते उस मगरमच्छ की खाल से बने थे, जिसे उन्होंने बहावलपुर में अपनी पुलिस पोस्टिंग के दौरान शूट किया था। जब जूते पुराने हो गए तो जगह-जगह से टूटने और फटने लगे। वे इनकी मरम्मत में सिलवाई करवाते रहे, कई पेबंद लगवा दिए पर उन्हें अपने आख़िरी दिनों तक आराम से पहनते रहे।