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फाफ डु प्लेसिस बोले,अगर अश्वेत लोगों की जिंदगी मायने नहीं रखती है तो सभी जिंदगी मायने नहीं रखतीं

जोहान्सबर्ग, 17 जुलाई| साउथ अफ्रीका के बल्लेबाज फाफ डु प्लेसिस ने नस्लवाद पर जारी बहस पर अपने विचार रखे हैं और कहा है कि इस मुद्दे पर तुरंत ध्यान देने और सुलझाने की जरूरत है। अमेरिका में अश्वेत शख्स जॉर्ज

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Saurabh Sharma
By Saurabh Sharma July 17, 2020 • 16:03 PM
Faf du Plessis
Faf du Plessis (Twitter)

जोहान्सबर्ग, 17 जुलाई| साउथ अफ्रीका के बल्लेबाज फाफ डु प्लेसिस ने नस्लवाद पर जारी बहस पर अपने विचार रखे हैं और कहा है कि इस मुद्दे पर तुरंत ध्यान देने और सुलझाने की जरूरत है। अमेरिका में अश्वेत शख्स जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस हिरासत मे हुई मौत के बाद ब्लैक लाइव्स मैटर नाम का आंदोलन पूरे विश्व में जोर पकड़ रहा है।

डु प्लेसिस ने एक इंस्टाग्राम पोस्ट पर लिखा, "पिछले कुछ महीनों नें मैंने महसूस किया है कि हमें अपनी लड़ाई खुद चुननी चाहिए। हम हमारे देश में कई तरह के अन्याय से घिरे हैं जिनका समाधान तुरंत होना चाहिए। अगर हम अपने ऊपर होने वाले निजी हमले का इंतजार करेंगे तो हम हमेशा 'मेरा तरीका बनाम तुम्हारा तरीका' के तौर पर जिएंगे और यह हमें कहीं नहीं ले जाएगा।"

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साउथ अफ्रीका के पूर्व कप्तान न कहा कि वह अभी तक इसलिए चुप थे क्योंकि वह दूसरों को सुन रहे थे।

उन्होंने कहा, "मैं शांत था क्योंकि मेरी मंशा सुनने की थी प्रतिक्रिया देने की नहीं। अपने विचार को पीछे रखकर मैं दूसरे के विचार को सुनता था। मैं जानता था कि शब्द कम हैं और मेरी समझ इस मुद्दे में वहां तक नहीं है जहां तक होनी चाहिए।"

उन्होंने कहा, "मैंने अपने विचार खत्म कर दिए और एक हिमायती के तौर पर अपने घुटने पर बैठ गया। मैं जानता हूं कि साउथ अफ्रीका नस्लवाद को लेकर काफी बंटा हुआ है और यह मेरी निजी जिम्मेदारी है कि मैं इसके खिलाफ खड़ा होऊं, कहानियां सुनूं, सीखूं और फिर अपने विचारों, शब्दों और कार्यों से इस समस्या के समाधान का हिस्सा बनूं।"

उन्होंने कहा, "जब मैंने यह कहा था कि- मैं रंग नहीं देखता, मैंने पहले इसे गलत समझा था। अपनी अनभिज्ञनता में मैंने अपने विचार रखकर उनके संघर्ष को शांत कर दिया था।"

डु प्लेसिस ने कहा, "इसलिए मैं अब कह रहा हूं, अगर अश्वेत लोगों की जिंदगी मायने नहीं रखती है तो सभी जिंदगी मायने नहीं रखतीं। मैं अब बोल रहा हूं क्योंकि अगर मैं परफेक्ट होने का इंतजार करूंगा तो मैं कभी नहीं बोल पाऊंगा। मैं सहानुभूति की विरासत छोड़ना चाहता हूं। काम बदलाव के लिए होना चाहिए। चाहे हम मानें या नहीं माने, लेकिन बात करना बदलाव का एक तरीका है।

इससे पहले हाशिम अमला ने भी ब्लैक लाइव्स मैटर नाम के आंदोलन का समर्थन किया था।
 

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