दिसंबर 2002, दक्षिण कोरिया के बुसान शहर में एशियन गेम्स का मैदान। हवा में धूल, जोरदार शोर और लाखों उम्मीदों का वजन। दर्शक दीर्घा से एक लंबी सांस हवा में गुम हो जाती है, जब भारत का एक घुड़सवार अपने घोड़े के साथ अंतिम बाधा (शो जम्पिंग) को पार करने के लिए तैयार होता है। उनकी उम्र 53 की थी। एक ऐसी उम्र जब ज्यादातर एथलीट अपने जूते टांग चुके होते हैं। लेकिन इस खिलाड़ी के लिए, उम्र महज एक संख्या थी। यह कहानी है भारतीय घुड़सवारी के उस अदम्य सारथी की, जिसने अपने जीवन के पांचवें दशक में भी देश के लिए पदक जीता।
उन्होंने साबित किया कि जुनून और लगन आपको दुनिया के सबसे बड़े खेल के मंच तक ले जा सकते हैं। यह कहानी है 1949 में जन्मे इंद्रजीत लांबा की।
इंद्रजीत लांबा का जन्म 7 अक्टूबर 1949 को हुआ था, एक ऐसे समय में जब भारत में घुड़सवारी अभी भी मुख्य रूप से सेना और अभिजात वर्ग का खेल मानी जाती थी, लेकिन लांबा के लिए घोड़ा कभी भी सिर्फ एक जानवर या खेल का उपकरण नहीं था। वह एक साथी, एक शिक्षक और एक गूढ़ भाषा का वाहक था।