टीम इंडिया का वो बदकिस्मत विकेटकीपर जिसने अपने आखिरी टेस्ट में बल्लेबाजी और गेंदबाजी दोनों में ओपनिंग की,लेकिन क्या थी वजह?
इस बार चर्चा कुछ सवाल से शुरू करते हैं : * किसे भारत का सबसे बदकिस्मत विकेटकीपर कहते हैं? * उस बल्लेबाज का नाम जो अपने पहले टेस्ट में हिट विकेट आउट हुआ था? * उस भारतीय खिलाड़ी का नाम
इस बार चर्चा कुछ सवाल से शुरू करते हैं :
* किसे भारत का सबसे बदकिस्मत विकेटकीपर कहते हैं?
* उस बल्लेबाज का नाम जो अपने पहले टेस्ट में हिट विकेट आउट हुआ था?
* उस भारतीय खिलाड़ी का नाम जिसने रणजी ट्रॉफी खेलने से पहले, टेस्ट डेब्यू किया?
* उस क्रिकेटर का नाम जिसने अपने आखिरी टेस्ट मैच में बल्लेबाजी और गेंदबाजी दोनों में ओपनिंग की?
* उस भारतीय क्रिकेटर का नाम जिसने 1980 के दशक में स्कॉटलैंड के लिए क्रिकेट खेला?
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ये सारे सवाल पूछने की वजह पिछले दिनों बना एक रिकॉर्ड है। रावलपिंडी में तीसरे टेस्ट में, पाकिस्तान के सईम अयूब ने बल्लेबाजी और गेंदबाजी दोनों में शुरुआत की यानि कि बैटिंग में ओपनर और नई गेंद से अटैक भी शुरू किया। आम तौर पर ऐसा देखने को नहीं मिलता पर ये भी सच है कि उनसे पहले भी ऐसा करने वाले कई खिलाड़ी रहे हैं। अब तक टेस्ट में ऐसा करने वाले वे 70वें खिलाड़ी हैं और कुल 154 बार ऐसा हो चुका है।
दो भारतीय ऑलराउंडर इस मामले में सबसे आगे हैं- मनोज प्रभाकर (22 बार) और एमएल जयसिम्हा (13 बार) तथा इनके बाद पाकिस्तान के मुदस्सर नज़र (9 बार) और भारत के आबिद अली (6) हैं। सैम अयूब से पहले, ये नजारा सबसे आख़िरी बार 2017 के आख़िरी दिनों में बुलावायो में वेस्टइंडीज के विरुद्ध टेस्ट में देखने को मिला था जब जिम्बाब्वे के सोलोमन मायर ने रिकॉर्ड बनाया। अगर इस लिस्ट को देखें तो एक नाम ऐसा मिलेगा जो हर किसी को वहीं रोक देगा क्योंकि ये नाम एक विशेषज्ञ विकेटकीपर का है। एक विकेटकीपर ने बैटिंग में ओपनिंग की, ये तो ठीक है पर ऐसा क्या हुआ कि नई गेंद से अटैक भी शुरू किया?
ये हैं भारत के विकेटकीपर बुद्धि कुंदरन और रिकॉर्ड बनाया जुलाई 1967 में एजबेस्टन में इंग्लैंड के विरुद्ध। यही नाम ऊपर लिखे सभी सवालों का जवाब है। उनके नाम के साथ जुड़े ऐसे अलग से सवाल तथा किस्से और भी हैं। उसी 1967 के एजबेस्टन टेस्ट की बात करते हैं। ये कुंदरन का 18वां और आखिरी टेस्ट था। टेस्ट की पहली सुबह कुंदरन ने सुब्रमण्यम के साथ गेंदबाजी की शुरुआत की और 4 ओवर फेंके (13 रन दिए) जबकि बैटिंग में दूसरे विकेटकीपर फारुख इंजीनियर के साथ पारी की शुरुआत की।
जब इस टेस्ट के लिए भारत की टीम घोषित हुई तो इसमें दो विकेटकीपर का नाम सभी को हैरान कर रहा था। ये बहरहाल टीम की तरफ से स्पष्ट कर दिया गया कि विकेटकीपर इंजीनियर होंगे और कुंदरन विशेषज्ञ बल्लेबाज और नई गेंद से गेंदबाजी करेंगे। कप्तान मंसूर अली खान पटौदी थे और अपनी किताब 'टाइगर्स टेल (Tiger's Tail) में पटौदी ने इस किस्से का जिक्र किया है। टेस्ट से एक दिन पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनसे पूछा गया कि कुंदरन किस स्टाइल की गेंदबाजी करते हैं? उनका जवाब था- 'ये तो में कुंदरन को गेंदबाजी करते हुए देखने के बाद ही बता पाऊंगा- हमें इंतजार करना होगा और देखना होगा।'
स्पष्ट था कि कुंदरन को नई गेंद देना महज एक औपचारिकता है और टीम का पूरा भरोसा स्पिनर पर है। ये एजबेस्टन टेस्ट, अकेला ऐसा टेस्ट था जिसमें भारत ने 1960 और 70 के दशक के अपने सभी 4 महान स्पिनर, खब्बू बिशन बेदी, लेग स्पिनर भागवत चंद्रशेखर और ऑफ स्पिनर ईरापल्ली प्रसन्ना एवं एस वेंकटराघवन को एक साथ मैदान में उतारा था।
1967 की इंग्लैंड में इस सीरीज के बाद, कुंदरन को 1967-68 में ऑस्ट्रेलिय टूर के लिए बाहर कर दिया और ये झटका कुंदरन के लिए बहुत बड़ा था। सिलेक्टर हर नजरिए से गलत थे। तब कुंदरन का बल्लेबाजी औसत 32 था जो न सिर्फ उस दौर के भारतीय विकेटकीपरों से ज्यादा था (इस लिस्ट में पीजी जोशी, नरेन तम्हाने, फारुख इंजीनियर और केएस इंद्रजीतसिंहजी शामिल हैं) तब भी वे 8 साल में वे सिर्फ 18 टेस्ट खेले और इस करियर में भी हर समय 'टेस्ट' पर थे!
उस एजबेस्टन टेस्ट में उनकी गेंदबाजी की ब्रिटिश मीडिया में बड़ी चर्चा हुई थी और अपने टेस्ट करियर में पहली बार गेंदबाजी करते हुए 4 ओवर में सिर्फ 13 रन दिए। ये ठीक है कि कुंदरन गेंदबाजी कर सकते थे (फर्स्ट क्लास क्रिकेट में कुल रिकॉर्ड : 129 मैच में 219 गेंद पर 3-160) पर ये सिर्फ औपचारिकता वाली गेंदबाजी थी। इसमें भी कुंदरन ने ज्यॉफ बॉयकॉट को एक बम्पर फेंक दिया था। उससे बचने के लिए बॉयकॉट को डक करना पड़ा।
बदकिस्मत इसलिए क्योंकि टेस्ट में विकेटकीपिंग ड्यूटी के लिए ज्यादा पॉपुलर 'ब्रिल क्रीम बॉय' फारुख इंजीनियर से मुकाबला करते रहे पर जिन्होंने दोनों को विकेटकीपिंग करते देखा है, उन का कहना है कि वह एक कीपर के तौर पर कम से कम फारुख जितने ही बेहतर थे। आख़िरी रिकॉर्ड में उनका टेस्ट औसत 32.70, फारुख (31.08) से बेहतर है। और भी ख़ास बात ये कि अपने 18-टेस्ट करियर में, कुंदरन ने 21 बार ओपनिंग की और 41 की औसत से रन बनाए- ये रिकॉर्ड किसी भी बल्लेबाज के लिए बेहद प्रभावशाली ही कहेंगे।
इसी 1967 सीरीज में बहरहाल इन सभी चर्चाओं के बीच कुंदरन को एक यादगार ऐसा बोनस मिला जिसने उनकी जिंदगी बदल दी। हेडिंग्ले टेस्ट के दौरान लिंडा से मुलाक़ात हुई और फिर शादी। ये सब किस्सा एक अलग स्टोरी है।
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-चरनपाल सिंह सोबती