Cricket Tales - टी20 वर्ल्ड कप में भारत-बांग्लादेश रोमांचक/विवादस्पद मैच के एक नज़ारे पर कोई ध्यान नहीं दे रहा। जैसे ही अंपायरों ने रोहित शर्मा और शाकिब अल हसन को बताया कि बारिश रुक गई है और आउटफील्ड ऐसी है कि इस पर क्रिकेट खेल सकते हैं- फील्डिंग कर रही टीम इंडिया के एक सपोर्ट स्टॉफ के दिमाग में कुछ और प्लॉनिंग चल रही थी। एक बड़ा ब्रश लेकर, टीम के थ्रो डाउन विशेषज्ञ एस रघु, भारतीय खिलाड़ियों के जूतों के सोल से आउटफील्ड की गीली मिट्टी खुरचने के लिए बाउंड्री पर खड़े हो गए ताकि खिलाड़ी बिना दिक्कत, आउटफील्ड गीली होने के बावजूद भाग सकें- न सिर्फ मोटे ब्रश से कीचड़ हटा रहे थे, खिलाड़ी को पानी भी पिला देते।
रघु को मालूम था कि कीचड़ स्पाइक्स पर चिपक जाएगा जो न सिर्फ मूवमेंट रोकेगा- फिसलन पैदा करेगा जिससे चोट भी लग सकती है। ख़ास बात ये है कि ऐसा करना उनके वर्क प्रोफाइल से परे था। उस एक मैच ने रघु को क्रिकेट की दुनिया में वह चर्चा दी जो पिछले कई साल से टीम के सपोर्ट स्टाफ में होने के बावजूद उन्हें नहीं मिली थी? क्या भारत से ऐसी ही कोई और स्टोरी है जिसमें स्टाफ की चर्चा में क्रिकेट की दुनिया हैरान हुई हो? एक स्टोरी है और बड़ी मजेदार है- सबसे ख़ास बात ये कि वे भारत आने वाली मेहमान टीम की मदद करते थे। इसलिए नहीं कि वे टीम इंडिया को पसंद नहीं करते थे- उन्हें ड्यूटी ही ऐसी दी थी।
आजकल खिलाड़ी अपने भारी किट बैग कहां उठाते हैं? पहले ऐसा नहीं होता था- भारत के खिलाड़ी विदेश टूर पर अपने भारी किट बैग खुद उठाते थे। इसके उलट, जब टीमें भारत आती थीं तो उन्हें 'मदद' मिलती थी। सिस्टम ये था कि मेहमान टीम के भारत पहुंचते ही उनके काफिले में 'मदद' के लिए तीन भारतीय जोड़ दिए जाते- इनमें से सबसे सीनियर होते थे गोविंद बावजी- बाकी नाम बदलते रहते पर वे तो होते ही थे।