Advertisement
Advertisement
Advertisement

Cricket Tales - गोविंद बावजी, एकमात्र गैर-क्रिकेटर भारतीय जिनके लिए बेनिफिट मैच आयोजित किया गया

गोविंद बावजी = ऑफिशियल तौर पर उन्हें टीम का 'बैग मैन' कहते थे- पर उनकी ड्यूटी सिर्फ बैग उठाना नहीं, बैग की मैनेजमेंट थी। खिलाड़ी की जरूरत के हिसाब से, हर वक्त उसका बैग तैयार ताकि खिलाड़ी को कोई दिक्कत

Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti November 06, 2022 • 08:24 AM
Govind Bavji
Govind Bavji (Image Source: Google)
Advertisement

Cricket Tales - टी20 वर्ल्ड कप में भारत-बांग्लादेश रोमांचक/विवादस्पद मैच के एक नज़ारे पर कोई ध्यान नहीं दे रहा। जैसे ही अंपायरों ने रोहित शर्मा और शाकिब अल हसन को बताया कि बारिश रुक गई है और आउटफील्ड ऐसी है कि इस पर क्रिकेट खेल सकते हैं- फील्डिंग कर रही टीम इंडिया के एक सपोर्ट स्टॉफ के दिमाग में कुछ और प्लॉनिंग चल रही थी। एक बड़ा ब्रश लेकर, टीम के थ्रो डाउन विशेषज्ञ एस रघु, भारतीय खिलाड़ियों के जूतों के सोल से आउटफील्ड की गीली मिट्टी खुरचने के लिए बाउंड्री पर खड़े हो गए ताकि खिलाड़ी बिना दिक्कत, आउटफील्ड गीली होने के बावजूद भाग सकें- न सिर्फ मोटे ब्रश से कीचड़ हटा रहे थे, खिलाड़ी को पानी भी पिला देते।

रघु को मालूम था कि कीचड़ स्पाइक्स पर चिपक जाएगा जो न सिर्फ मूवमेंट रोकेगा- फिसलन पैदा करेगा जिससे चोट भी लग सकती है। ख़ास बात ये है कि ऐसा करना उनके वर्क प्रोफाइल से परे था। उस एक मैच ने रघु को क्रिकेट की दुनिया में वह चर्चा दी जो पिछले कई साल से टीम के सपोर्ट स्टाफ में होने के बावजूद उन्हें नहीं मिली थी? क्या भारत से ऐसी ही कोई और स्टोरी है जिसमें स्टाफ की चर्चा में क्रिकेट की दुनिया हैरान हुई हो? एक स्टोरी है और बड़ी मजेदार है- सबसे ख़ास बात ये कि वे भारत आने वाली मेहमान टीम की मदद करते थे। इसलिए नहीं कि वे टीम इंडिया को पसंद नहीं करते थे- उन्हें ड्यूटी ही ऐसी दी थी।

Trending


आजकल खिलाड़ी अपने भारी किट बैग कहां उठाते हैं? पहले ऐसा नहीं होता था- भारत के खिलाड़ी विदेश टूर पर अपने भारी किट बैग खुद उठाते थे। इसके उलट, जब टीमें भारत आती थीं तो उन्हें 'मदद' मिलती थी। सिस्टम ये था कि मेहमान टीम के भारत पहुंचते ही उनके काफिले में 'मदद' के लिए तीन भारतीय जोड़ दिए जाते- इनमें से सबसे सीनियर होते थे गोविंद बावजी- बाकी नाम बदलते रहते पर वे तो होते ही थे।

ये सिलसिला 1949 में कॉमनवेल्थ इलेवन के भारत टूर से शुरू हुआ और जब इसके बाद इंग्लैंड टीम भारत आई तो पहले ही बीसीसीआई को सन्देश आ चुका था कि टीम के साथ बावजी को जोड़ना होगा। उस इंग्लिश टीम के कप्तान निजेल हॉवर्ड और मैनेजर जेफ्री हॉवर्ड थे। सिर्फ नाम एक से थे- दोनों में आपस में कोई रिश्ता नहीं था।

बावजी करते क्या थे? ऑफिशियल तौर पर उन्हें टीम का 'बैग मैन' कहते थे- पर उनकी ड्यूटी सिर्फ बैग उठाना नहीं, बैग की मैनेजमेंट थी। खिलाड़ी की जरूरत के हिसाब से, हर वक्त उसका बैग तैयार ताकि खिलाड़ी को कोई दिक्कत न हो और वह अपना पूरा ध्यान खेलने पर लगाए। जब जवान थे तो ये ड्यूटी शुरू हुई और 60 साल की उम्र पार करने के बाद भी, जब तक शरीर ने साथ दिया, ये ड्यूटी निभाते रहे।

रघु के साथ तो बीसीसीआई ने कॉन्ट्रैक्ट किया है- उन्हें बड़ी फीस मिलती है पर बावजी को ऐसा कुछ नहीं मिला। जब 90 के दशक में वे ड्यूटी दे रहे थे तब क्रिकेट बोर्ड उन्हें इन सब कामों के लिए 1,000 रुपये महीना देता था। जब भी बावजी से बात करो तो वे यही कहते थे कि इससे ज्यादा पैसा तो मेहमान खिलाड़ी टिप के तौर पर दे देते हैं- ख़ास तौर पर इंग्लैंड टीम के क्रिकेटर। वे आम तौर पर वही स्पोर्ट्स शू पहने रहते थे जो खिलाड़ी उन्हें देते थे।

सिर्फ खिलाड़ियों के किट बैग उठाकर वह लोकप्रिय नहीं हुए। वह ज़माना 5 स्टार हॉस्पिटेलिटी का नहीं था पर बावजी ड्रेसिंग रूम में 5 स्टार हॉस्पिटेलिटी देते थे। नेट प्रैक्टिस के लिए जाने वाले या लौटने वाले खिलाड़ी से पूछना- 'चाय, सर, आपको चाय चाहिए?' अगर जवाब नहीं है तो- 'सर कोक लेंगे?' उनकी मदद करने वाला एक और स्टाफ चाय की पत्ती, पानी, मिल्क पाउडर और चीनी के डिब्बों के साथ रसोई में होता था और केतली तैयार- ड्रेसिंग रूम के बाहर वे ये रसोई खुद सजा देते थे।

दिन के दौरान, वे ड्रेसिंग रूम अटेंडेंट होते थे- बैट पर ऑटोग्राफ लेना और जिनके बैट हैं उन तक पहुंचाना, ड्रिंक्स का इंतजाम, सूप, पास्ता, करी, चावल और चपाती के बुफे लंच के लिए जगह बनाना और ये देखना कि ठीक वक्त पर लंच आ जाए। टीम खेल कर स्टेडियम से गई तो उनकी ड्यूटी ख़त्म पर ऐसा था नहीं। रघु टीम होटल में ठहरते हैं- बावजी उसी ड्रेसिंग रूम में फर्श पर सोते थे। अपना बेड-मैट वे साथ रखते थे। सोने से पहले सभी किट बैग ठीक करना, सामान ठीक तरह लगाना और ड्रेसिंग रूम को अच्छी तरह बंद करना ताकि रात में बारिश/ आंधी से कोई सामान खराब न हो।

ये पूछो कि कि कहीं और क्यों नहीं जाते आराम से सोने तो जवाब होता था- 'ये किट मेरी जिम्मेदारी है, मेरा ध्यान इसके सुरक्षित होने पर लगा रहता है। इसलिए, इसके साथ सोने से ही तसल्ली रहती है। इस मामले में मुझे किसी पर भरोसा नहीं है। आज तक किसी खिलाड़ी के किट बैग से कुछ भी इधर-उधर नहीं हुआ!

मजेदार बात ये कि बावजी की ड्यूटी किसी ख़ास स्टेडियम में नहीं थी- पूरे टूर की होती थी। खिलाड़ी एक शहर से दूसरे शहर जाते थे आम तौर पर फ्लाइट/ट्रेन से- नजदीक है तो बस से भी पर बावजी रात भर ट्रेन, बस या ट्रक में सफर करते थे किट बैग के साथ। और देखिए- ट्रेन के जिस गुड्स डिब्बे में बैग रखे जाते थे, बावजी सामान के उसी डिब्बे में सोते थे। उनके होते हुए , तरह-तरह की, ट्रांसपोर्ट में दिक्कतों के बावजूद, कभी भी खिलाड़ियों के बैग देर से नहीं पहुंचे। मजेदार बात ये है कि ऑस्ट्रेलिया के जिस भारत टूर (1984-85) में जमशेदपुर इंटरनेशनल मैच में किट बैग लॉरी दोपहर तक गायब होने से, खेल लंच तक रोकना पड़ा था- उसमें बावजी ड्यूटी पर नहीं थे। तब तक उन्होंने सिर्फ एमसीसी के भारत टूर में ड्यूटी लेना शुरू कर दिया था।

कभी-कभी ऐसे भी हालात आए कि स्टेडियम के प्रयोग का अधिकार नहीं मिला तो वे मेहमान टीम के कप्तान के कमरे के करीब कॉरिडोर में ही सो जाते थे। और तो और, ड्रेसिंग रूम में कोई खिलाड़ी अपनी मिट्टी वाली ड्रेस साफ़ करने के लिए कहे तो उसे धो भी देते थे- उनकी एक फोटो, विदेशी मीडिया में बड़ी छपी जिसमें वे स्टडियम के बाहर धूप में एक खिलाड़ी के कपड़े सुखा रहे थे।

क्या ऐसे स्टाफ और ड्यूटी से बंधे व्यक्ति को याद रखा जाता है? क्रिकेट की किताबों में शायद ही उनका जिक्र मिले। कुछ विदेशी खिलाड़ियों ने अपने भारत टूर के जिक्र में उनका नाम भी लिखा। उनके नाम पर, बीसीसीआई की बदौलत, एक बड़ा अनोखा रिकॉर्ड है- ऐसे एकमात्र गैर-क्रिकेटर भारतीय जिसके लिए (त्रिवेंद्रम में) एक बड़े स्टेडियम में बेनिफिट मैच आयोजित किया गया। कई विदेशी खिलाड़ियों ने मदद भेजी।

Also Read: Today Live Match Scorecard

स्पोर्ट स्टाफ की भी अपनी स्टोरी हैं। आजकल सब इंतजाम प्रोफेशनल एजेंसी करती हैं- बेहतर सुविधा पर वह 'पर्सनल टच' नहीं जो बावजी से मिलता था। उनके लिए खिलाड़ी का किट बैग उनकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी था।


Cricket Scorecard

Advertisement