केएल राहुल पहले नहीं - उनसे पहले भी मजबूरी में भारत ने एक टेस्ट के कप्तान बनाए हैं
अपने देश का टेस्ट क्रिकेट कप्तान बनना- एक ऐसा सम्मान है जिसका सपना हर क्रिकेटर देखता है। कुछ दिन पहले तक किसी ने सोचा भी नहीं था कि दक्षिण अफ्रीका टूर पर क्या होने वाला है? रोहित शर्मा टूर से
अपने देश का टेस्ट क्रिकेट कप्तान बनना- एक ऐसा सम्मान है जिसका सपना हर क्रिकेटर देखता है। कुछ दिन पहले तक किसी ने सोचा भी नहीं था कि दक्षिण अफ्रीका टूर पर क्या होने वाला है? रोहित शर्मा टूर से पहले और विराट कोहली दूसरे टेस्ट से पहले चोटिल- इन चोटों ने केएल राहुल को टेस्ट कप्तान बनने का सुनहरा मौका दे दिया- वह 36वें भारतीय टेस्ट कप्तान बने। कोई नहीं जानता कि टेस्ट कप्तान के तौर पर उनका भविष्य क्या है पर भारतीय क्रिकेट के इतिहास में कप्तानों की लिस्ट में आने का श्रेय उनसे कोई छीन नहीं सकता। मजेदार बात ये कि जो अजिंक्य रहाणे ऐसे हालात में दिसंबर 2021 से 4 टेस्ट में कप्तान रहे थे - इस बार उनकी कप्तानी में खेले।
क्या आपने ध्यान दिया -
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- हाल फिलहाल, केएल राहुल एक टेस्ट के कप्तान और भारत से ऐसे पांचवें जिनके नाम सिर्फ एक टेस्ट है और हर कोई किसी मुसीबत में ही कप्तान बना।
- इन पांच में से वे ऐसे तीसरे जो टेस्ट हारे। उनसे पहले : हेमू अधिकारी ने टेस्ट ड्रा किया, पंकज रॉय और चंदू बोर्डे टेस्ट हारे तथा रवि शास्त्री टेस्ट जीते।
इस लिस्ट में एक ऐसा नाम है जो सिर्फ एक टेस्ट में कप्तान से कहीं बेहतर रिकॉर्ड का हकदार था। ये नाम चंदू बोर्डे का है। यहां तक कि विजडन ने भी लिखा कि अगर नवाब पटौदी जैसी शख्सियत उस समय भारतीय क्रिकेट में न होती तो बोर्डे न सिर्फ कहीं ज्यादा टेस्ट, भारत के नियमित कप्तान बनने के हकदार थे। पटौदी ऐसे कप्तान बने कि नतीजा चाहे जो रहा, सेलेक्टर्स ने कप्तान बदलने की 1969 से पहले कभी चर्चा तक नहीं की।
उस समय की ख़बरें तो ये कहती हैं कि कप्तान न बन पाने के कारण चंदू बोर्डे का दिल टूट गया था और इस बात ने उनकी क्रिकेट पर भी असर डाला। नतीजा ये रहा कि जब पहली बार किसी सेलेक्टर ने पटौदी की कप्तानी पर सवालिया निशान लगाया, तब तक बोर्डे के लिए बहुत देर हो चुकी थी। जब पटौदी आखिर में कप्तान की कुर्सी से हटे तो नई टीम में ही बोर्डे के लिए जगह नहीं थी। इसी बात पर ये भी जिक्र है कि पटौदी और बोर्डे के बीच टीम में लगातार टकराव था और वेस्ट जोन कैंप की गुटबाज़ी टीम की क्रिकेट पर असर डाल रही थी।
यहां तक कि एक इंटरव्यू में बोर्डे ने स्पष्टीकरण दिया- 'मंसूर अली खान पटौदी और मेरे बीच कोई अनबन नहीं थी- बिल्कुल कुछ भी नहीं। हमारे बड़े अच्छे संबंध थे। एक बात ये थी कि पैट कभी ज्यादा नहीं बोलते थे- वह रिजर्व किस्म के इंसान थे और इसी से दूसरों ने गलत देखा। वे तो मुझे "अरे उस्ताद" कहकर बुलाते थे। मीडिया ने गलत प्रभाव डाला- या तो वे मुझे पसंद नहीं करते थे या उन्हें पसंद नहीं करते थे।' फिर भी पटौदी की खराब फिटनेस ने चंदू बोर्डे को एक टेस्ट में कप्तान बनने का मौका दिया। जैसा कि आम तौर पर होता है- बोर्डे, उस अचानक मिले मौके के लिए तैयार नहीं थे और टेस्ट हार गए।
1967- 68 में टीम इंडिया ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के टूर पर गई- पटौदी कप्तान और बोर्डे उप कप्तान थे। टूर के लिए टीम 8 नवंबर 1967 को चुनी। उस साल इंग्लैंड गई टीम से पांच बदलाव किए - सुब्रत गुहा, सदानंद मोहोल, कुंदरन, हनुमंत सिंह और एस वेंकटराघवन आउट तथा रमाकांत देसाई, उमेश कुलकर्णी, इंद्रजीतसिंहजी, बापू नादकर्णी और सैयद आबिद अली इन। जिस नाम पर सबसे ज्यादा हंगामा हुआ, वह जयसिम्हा का नाम था- वह मूल टीम में नहीं थे। वे बीच सीरीज में कैसे बुलाए गए- ये एक अलग किस्सा है।
ये टीम, टूर में, एक भी फर्स्ट क्लास मैच नहीं जीत पाई और उसे ऑस्ट्रेलिया ने चारों टेस्ट में हराया। टीम ऑस्ट्रेलियाई पिच और मौसम समझे बिना, वहां खेलने पहुँची थी- उस पर साधारण पेस आक्रमण, बल्लेबाजी में अस्थिरता और खराब फील्डिंग। ये सब एक घटिया टेस्ट सीरीज का इशारा करते हैं। पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध पहले फर्स्ट क्लास मैच में फील्डिंग करते हुए हैमस्ट्रिंग की तकलीफ ने पटौदी को एडिलेड में पहले टेस्ट की टीम से बाहर कर दिया और कप्तानी मिल गई चंदू बोर्डे को। पटौदी दूसरे टेस्ट से लौटे और 75, 85, 7, 48 और 51 के लगातार टेस्ट स्कोर बनाए।
कप्तान के तौर पर अपने एकमात्र टेस्ट में, एडिलेड में, बोर्डे ने 69 और 12 के स्कोर बनाए। पहली पारी में वे बड़ा अच्छा खेल रहे थे पर जॉन ग्लीसन ने एलबीडब्ल्यू आउट कर दिया। इस टेस्ट में भारत की 146 रन से हार, एक कप्तान के तौर पर बोर्डे की टेलेंट का सही पैमाना नहीं- हर जानकार ये मानता है कि वे कई टेस्ट में कप्तानी करते बशर्ते उनके करियर का मंसूर अली खान पटौदी से टकराव न होता।
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