कौन थे कर्नल सीके नायडू ? BCCI इनके नाम पर ही क्यों देता है लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड

Updated: Wed, Jan 24 2024 15:18 IST
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भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने हैदराबाद में 23 जनवरी को बीसीसीआई अवॉर्ड्स का आयोजन किया जिसमें भारत के पुरुष और महिला क्रिकेटर समेत इंग्लैंड के खिलाड़ी और कोचिंग स्टाफ भी पहुंचे हुए थे। इस दौरान कई पूर्व क्रिकेटर्स भी मौजूद थे जिन्हें कर्नल सीके नायडू लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। इनमें पूर्व क्रिकेटर रवि शास्त्री और फारुख इंजीनियर को कर्नल सीके नायडू लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया, ये सम्मान भारतीय क्रिकेट में सर्वोच्च है।

रवि शास्त्री 1983 वर्ल्ड कप विजेता खिलाड़ी और भारतीय टीम के कोच भी रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भारत की दो ऐतिहासिक टेस्ट सीरीज जीत के दौरान भी वो भारतीय टीम के कोच थे। वहीं, महान फारुख इंजीनियर ने भारत के लिए 46 टेस्ट खेले हैं जहां उन्होंने 2611 रन बनाए और प्रथम श्रेणी क्रिकेट में 13000 से अधिक रन बनाए। इसीलिए इन दोनों को कर्नल सीके नायडू लाइफ टाइम अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।

इस अवॉर्ड का नाम सुनने के बाद कई लोगों के मन में ये सवाल उठ रहा होगा कि आखिर सीके नायडू कौन थे और उनके नाम पर ही ये अवॉर्ड क्यों दिया जाता है? तो चलिए आपको कर्नल सीके नायडू के बारे में बताते हैं।

सीके नायडू का जन्म 31 अक्टूबर 1895 को वकीलों के परिवार में हुआ था। उन्होंने 1916 में प्रथम श्रेणी करियर की शुरुआत की थी और उनका ये करियर 47 साल तक यानि 1963 तक चला जो कि वर्ल्ड रिकॉर्ड बना रहा था। इतना ही नहीं कर्नल सीके नायडू उस भारतीय क्रिकेट टीम के भी पहले कप्तान थे जिसने 1932 में एकमात्र टेस्ट के लिए इंग्लैंड का दौरा किया था। नायडू पहले तो डिफेंसिव बल्लेबाज थे लेकिन बाद में अपने पिता सूर्य प्रकाश राव नायडू के कहने पर उन्होंने आक्रामक बल्लेबाजी करनी शुरू कर दी और उन्होंने इस भूमिका को बखूबी निभाया।

मज़ेदार बात ये रही कि प्रथम श्रेणी क्रिकेट में नायडू का पहला स्कोरिंग शॉट भी छक्का था। उनकी सबसे प्रसिद्ध पारियों में से एक 1926/27 में बॉम्बे जिमखाना में मैरीलेबोन क्रिकेट क्लब के खिलाफ हिंदुओं के लिए खेलते हुए आई थी। उन्होंने सिर्फ 66 मिनट में शतक ठोक दिया था और 116 मिनट में 153 रन बना डाले। एमसीसी की ओर से उन्हें चांदी का बल्ला भेंट किया गया। ये पारी भारतीय क्रिकेट के लिए विशेष थी क्योंकि इसने एक टेस्ट राष्ट्र के रूप में भारत की पहचान का मार्ग प्रशस्त किया।

उनकी पारी की तारीफ करते हुए, अंग्रेजी पत्रकार साइमन बार्न्स ने विजडन इंडिया अलमनैक 2016 में लिखा, "ये एक ऐसी पारी थी जिसने खेल के इतिहास को बदल दिया और शायद वास्तविक इतिहास को भी प्रभावित किया।"

कर्नल साहब बड़े शॉट्स लगाना इतना पसंद करते थे कि उन्होंने एक छक्का 140 मीटर दूर मार दिया था। नायडू ने कुल मिलाकर चार टेस्ट मैचों में भारत का नेतृत्व किया। भले ही उन्होंने बड़ी पारी नहीं खेली, लेकिन उनकी पारी सार्थक और महत्वपूर्ण थी और उनके धैर्य को दर्शाती थी। नायडू और लाला अमरनाथ ने 1933-34 में भारत दौरे पर इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट में तीसरे विकेट के लिए 186 रन की साझेदारी की। 1936 में अपने आखिरी टेस्ट में, नायडू ने गुब्बी एलन की गेंद लगने के बावजूद अपना सर्वोच्च स्कोर (81) बनाया।

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अपने टेस्ट संन्यास के बाद, उन्होंने प्रथम श्रेणी क्रिकेट में विभिन्न घरेलू टीमों के लिए खेलना जारी रखा। भारत के लिए खेलने के बाद, उन्होंने नौ वर्षों में अपनी होलकर टीम को आठ रणजी ट्रॉफी फाइनल में पहुंचाया। इस दिग्गज ने 50 साल की उम्र के बाद रणजी ट्रॉफी में दोहरा शतक बनाने का एक और विशेष गौरव भी हासिल किया है। नायडू बाद में बीसीसीआई प्रशासन में शामिल हो गए और उपाध्यक्ष और मुख्य राष्ट्रीय चयनकर्ता के रूप में शपथ ली। भारतीय बोर्ड ने उनके सराहनीय योगदान को देखते हुए 1994 में प्रतिष्ठित सीके नायडू लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार की शुरुआत की और उस वर्ष उनके साथी लाला अमरनाथ को ये पुरस्कार प्रदान किया गया और तब से लेकर अब तक कर्नल सीके नायडू के नाम पर ही ये लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार दिया जाता है।

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