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मोहाली में 'बल्लेबाजी देवता' विराट का विराट करिश्मा

दो राय नहीं कि यह भारतीय गेंदबाजी थी जिसने पहले चार ओवरों में पिटने के बाद ऐसा जबरदस्त पलटवार किया कि कंगारू अंतिम 16 ओवरों में कुल जमा 107 रन ही जोड़ सके। टॉस हार कर पहले गेंदबाजी पर बाध्य

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मोहाली में 'बल्लेबाजी देवता' विराट का विराट करिश्मा
मोहाली में 'बल्लेबाजी देवता' विराट का विराट करिश्मा ()
Saurabh Sharma
By Saurabh Sharma
Mar 28, 2016 • 06:43 PM

दो राय नहीं कि यह भारतीय गेंदबाजी थी जिसने पहले चार ओवरों में पिटने के बाद ऐसा जबरदस्त पलटवार किया कि कंगारू अंतिम 16 ओवरों में कुल जमा 107 रन ही जोड़ सके।

टॉस हार कर पहले गेंदबाजी पर बाध्य भारतीयों को फिर भी ऐसे विकेट पर 161 का ऐसा लक्ष्य मिला था जो लगातार धीमी होती असमतल उछाल वाली पिच पर निसंदेह चुनौतीपूर्ण था और इसको पाने के लिए किसी एक स्पेशलिस्ट बल्लेबाज को डेथ ओवरों तक क्रीज में जमे रहना था।

जब आठ ओवरों के भीतर 49 रनों पर धौनी के तीनों दुलारे शिखर धवन, रोहित शर्मा और सुरेश रैना एक बार फिर आराम फरमाने चले गए और नौवें ओवर में जब युवराज का टखना मुड़ गया तब साफ लगने लगा था कि मेजबानों की लुटिया डूबी। लेकिन नहीं, अपने स्वर्णिम दिनों की छाया भर होने के बावजूद युवी की जीवटता की दाद देनी होगी कि एक टांग के सहारे ही पंजाब के इस पुत्तर ने विराट कोहली को वह सहारा दिया जिसकी सख्त जरूरत थी।

Saurabh Sharma
By Saurabh Sharma
March 28, 2016 • 06:43 PM

धीमी जरूर थी 45 रनों की साझेदारी मगर सबसे बड़ी बात यह कि विकेट नहीं गिरा और यही बहुत था। सामने के छोर पर विराट को ऐसा सहयोगी भर चाहिए था जो बस एक छोर थामे रखे।

'न्यूज वल्र्ड इंडिया' चैनल पर रविवार की शाम लाइव शो के दौरान एंकर खेल संपादक विनीत मल्होत्रा ने जब बताया कि भारत टॉस हार कर गेंदबाजी पर बाध्य हो गया है तब भारतीय नजरिए से यह किसी झटके से कम न था। घास रहित सूखे विकेट पर बाद में बल्लेबाजी आसान नहीं होगी और इसके लिए जरूरी था कि टॉप आर्डर, जो अर्से से टीम को रुलाता चला आ रहा है, यहां यदि निखर कर सामने नहीं आया तो रविवार विश्व कप में आखिरी दिन हो जाएगा। लेकिन फिर रुलाया रोहित-शिखर की जोड़ी ने अपने विकेट फेंक कर। और, रैना उठी गेंदों पर आज भी किस कदर भिखमंगें हो जाते हैं, इसका नमूना फिर देखने को मिला।

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लेकिन, वाकई भारतीय क्रिकेट कितनी भाग्य की धनी है कि जीनियस सचिन के बाद उसे सचमुच बल्लेबाजी का देवता मिल गया है विराट के रूप में जो भले ही अपने आदर्श की तरह नैसर्गिक अलौकिक प्रतिभाशाली न रहा हो मगर उसने साबित कर दिया कि इस स्तर पर भी आप लगन और मेहनत के बल पर करिश्मायी बन सकते हैं।

अंडर-19 का विश्व कप दिलाने वाले विराट ने वाकई किसी तपस्वी सी साधना की होगी। स्किल, फिटनेस और टेंपरामेंट यानी मनोदशा के मोर्चे पर कि वह ऐसी रन मशीन में ढल गये हैं जो किसी भी परिस्थिति, किसी भी आक्रमण और किसी भी पिच पर चलती रहती है, चलती रहती है। ठीक है कि यह एक टीम गेम है।

अपने गेंदबाजों के साथ ही युवी और अंत में जीत को अंतिम स्पर्श देने वाले कप्तान धौनी को भी आपको इस छह विकेट की अविस्मरणीय जीत का श्रेय देना होगा मगर इस वास्तविकता को भी स्वीकार करना होगा कि आज यदि टीम इंडिया सेमीफाइनल में वेस्टइंडीज से दो-दो हाथ करने की पात्रता हासिल करने में सफल हुई है तो इसके लिए यदि किसी एक शख्स के चरणों में खिलाड़ी अपना मस्तक रखेंगे तो वह सिर्फ और सिर्फ विराट कोहली हैं।

कोहली को दबाव में बल्लेबाजी करने में विशेष आनंद आता है और आंकड़ों की किताब यदि पलटेंगे आप तो पाएंगे कि लक्ष्य का पीछा करने वाला ऐसा विलक्षण विरल बल्लेबाज भारत ने कोई दूसरा नहीं दिया। इस मायनों में बस कुछ अंशों तक पुरनियों में गुंडप्पा विश्वनाथ और कैंसरग्रस्त होने के पहले के युवराज का नाम हम ले सकते हैं।

विराट का वैशिष्ट्य यह है कि 2014 की इंग्लैंड सीरीज के बाद से उन्होंने रोबोट सरीखी पारियां अनवरत खेली हैं और औसत के कानून का दिल्ली के इस असाधारण क्रिकेटर ने मजाक बना कर रख दिया। यह भी बताने की जरूरत नहीं आंकड़े खुद ही चीख चीख कर इसकी सुनहरी गाथा सुनाते हैं। यह मैच ही नहीं, वर्तमान विश्व कप के हर मुकाबले में आपको कोहली अधिकांशत: बल्ले से नंबर एक स्थान पर ही दिखेंगे। यहां तक कि जिस ओपनिंग मैंच में टीम ने 79 रनों पर बिखर कर कीवियों से भद करायी थी, उसमें भी 23 रनों का सबसे ज्यादा का स्कोर कोहली का ही था।

इस मुकाबले की ही यदि बात करें तो आप पाएंगे कि विषम परिस्थिति में भी अविचलित विराट ने आते ही चिरपरिचित फ्लिक और कवर ड्राइव की छटा बिखेरी और युवी के साथ सिंगल से स्ट्राइक अपने पास रखते हुए प्रति ओवर छह से ज्यादा का रन रेट बनाए रखा। युवी के आउट होने के बाद धौनी के उतरते ही मानों बहार सी आ गयी। माही के लिए एक बात यह कहनी ही होगी कि उन्होंने विकेट के बीच दौड़ को नया आयाम दिया है। लोग अगर दो रनों का महत्व अब समझने लगें हैं तो सलाम भारतीय कप्तान को।

फिर भी, यहां सब कुछ आसान नहीं था। रन औसत बारह और तेरह प्रति ओवर का हो चुका था। परंतु, कोहली थे न। उन्होंने गेंदों के संहार के लिए उस फॉल्कनर का ओवर चुना जो डेथ ओवरों का राजा माना जाता है और जिसकी गेंदों की गति में चातुर्यपूर्ण बदलाव को भांपना वाकई टेढ़ी खीर समझा जाता है। उसी की धुलाई करते हुए दो चौकों और एक छक्के सहित सत्रहवें ओवर में उतने ही रन कूट कर महज 51 गेंदों पर ही हीरे मोती जैसी 82 रनों की बेशकीमती अविजित पारी खेलने वाले विराट ने बिंद्रा स्टेडियम में जीत की खुशबू बिखेर दी और फिर तो बस मात्र औपचारिकताएं ही शेष थीं।

विराट की सचिन से तुलना अनुचित है। जब वह रिटायर होंगे तब सही मायने में आकलन होगा। पर, फिलहाल यह तो आपको निर्विवाद स्वीकार करना ही होगा कि करियर के इस पहले हाफ में वह अपने आदर्श मास्टर ब्लास्टर से काफी आगे निकल चुके हैं।

सचिन के पहले हाफ को यदि आप देखिए तो नब्बे प्रतिशत मौकों पर क्रिकेट का यह भगवान अपने विकेट फेंकता रहा है जबकि दूसरी ओर इस भगवान को देख कर क्रिकेट का ककहरा सीखने वाला कोहली अपने विकेट की कीमत किस कदर समझता है, किसी स्टेटीशियन से पूछ कर देखिए, उत्तर मिल जाएगा। यहां कोहली अतुलनीय हैं, अप्रतिम हैं, सही मायने में वह बल्लेबाजी के देवता हैं। यदि मेजबान अगली दो बाधाएं सफलतापूर्वक पार कर लेते हैं तब याद रखिए कि तीन अप्रैल को दोबारा टी-20 विश्व कप दिलाने का असाधारण गौरव उस 'एकल सेना' को ही दिया जाएगा जिसका नाम विराट कोहली है।

एजेंसी

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