भारत-ऑस्ट्रेलिया सीरीज में उस क्रिकेटर के नाम मैडल शुरू करने की मांग जिसने खुद कोई टेस्ट नहीं खेला- कौन हैं ये?
Frank Tarrant Medal India Vs Australia Test Series: कुछ दिन पहले, अंशुल कंबोज रणजी ट्रॉफी की एक पारी में सभी 10 विकेट लेने वाले तीसरे गेंदबाज बन गए (अन्य दो : बंगाल के प्रेमांगसु चटर्जी और राजस्थान के प्रदीप सुंदरम)। हरियाणा के इस तेज गेंदबाज ने, लाहली के चौधरी बंसी लाल स्टेडियम में, केरल के विरुद्ध 10-49 का प्रदर्शन किया। साथ में, फर्स्ट क्लास क्रिकेट में ऐसा रिकॉर्ड बनाने वाले 6वें भारतीय बन गए (अन्य तीन : सुभाष गुप्ते, अनिल कुंबले और देबाशिश मोहंती)। ये खबर मीडिया में खूब छपी।
इस खबर में ये नजरअंदाज हो गया कि क्या इन भारतीय गेंदबाज के अतिरिक्त, किसी विदेशी ने भी भारत में 'परफेक्ट 10' का ये रिकॉर्ड बनाया है? ये पूछें तो फटाफट न्यूजीलैंड के एजाज पटेल का नाम याद आ जाएगा और उन्होंने तो 2021-22 सीरीज में टेस्ट में ये रिकॉर्ड बनाया था। सच ये है कि एक और विदेशी ने ये रिकॉर्ड बनाया है और उस प्रदर्शन की दो बातें बड़ी ख़ास हैं:
- पहली बार भारत में किसी गेंदबाज ने 10 विकेट लिए।
- ये रिकॉर्ड, इस विदेशी ने, एक भारतीय टीम के लिए खेलते हुए बनाया।
न सिर्फ इन ऊपर लिखी वजह से, इस समय चल रही ऑस्ट्रेलिया-भारत सीरीज को ध्यान में रखते हुए भी, इस खिलाड़ी का जिक्र जरूरी हो जाता है। वास्तव में ये एक ऐसा नाम है, जिसने शुरू में भारत-ऑस्ट्रेलिया टेस्ट क्रिकेट के लिए ट्रॉफी का नाम देने के लिए एलन बॉर्डर और सुनील गावस्कर के नाम को भी टक्कर दी थी पर आज के क्रिकेट माहौल में 'अनजान' नाम होने की वजह से इसे छोड़ दिया। ऑस्ट्रेलिया मीडिया में, अब भी इनके नाम पर, इन दोनों देश के बीच टेस्ट सीरीज में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी को, मैडल देने पर बड़ी चर्चा हो रही है। भारत में इसका कहीं जिक्र नहीं है।
ये नाम है, ऑस्ट्रेलिया के खब्बू स्लो-मीडियम गेंदबाज फ्रांसिस टैरेंट (Frank Tarrant) का और उन्होंने 10-90 का रिकॉर्ड बनाया था महाराजा ऑफ़ कूच-बेहार इलेवन (Maharaja of Cooch-Behar's XI) के लिए लॉर्ड विलिंगडन इलेवन (Lord Willingdon's XI) के विरुद्ध जिमखाना क्रिकेट ग्राउंड, पूना में अगस्त 1918 में, दो दिन के मैच की पहली पारी में। मैच तब भी ड्रा रहा था। इस मैच का संक्षेप में स्कोर कार्ड :
लॉर्ड विलिंगडन XI : 219 (केओ गोल्डी 64, डीके कपाड़िया 43, मिर्जा यूसुफ बेग 34*, टैरेंट 10-90) एवं 132-4 पारी समाप्त घोषित (पी विट्ठल 37*, डीके कपाड़िया 34, टैरेंट 1-22)
महाराजा ऑफ़ कूच बेहार इलेवन : 265 (फ्रैंक टैरेंट 182, पीएच दारूवाला 3-117, एसएम जोशी 6-56) एवं 22-4 (फ्रैंक टैरेंट 8*)
इस स्कोर कार्ड से ये तो तय हो जाता है कि ये वास्तव में फ्रैंक टैरेंट का मैच था। भारत में 10 विकेट का रिकॉर्ड बनाने वालों में वे अकेले ऐसे हैं, जिसने साथ में उसी मैच में 100 भी बनाया। कई साल तक ये चर्चा चलती रही कि क्या वास्तव में ये कोई फर्स्ट क्लास मैच था? आखिर में द एसोसिएशन ऑफ क्रिकेट स्टेटिस्टीशियंस एंड हिस्टोरियंस (The Association of Cricket Statisticians and Historians) ने इसे फर्स्ट क्लास मैच माना और महाराजा ऑफ़ कूच बेहार इलेवन के उस दौर में खेले 7 मैच को फर्स्ट क्लास मैच के तौर पर मान्यता दी। पूना का ये मैच, उस लिस्ट का तीसरा मैच था। इस मैच से जुड़ी और कई ख़ास बातें हैं पर वे एक अलग स्टोरी हैं।
लौटते हैं फ्रैंक टैरेंट पर और इस सवाल पर कि उन्होंने ऐसा क्या किया कि भारत-ऑस्ट्रेलिया टेस्ट सीरीज में उनके नाम पर मैडल शुरु हो? फ्रैंक टैरेंट एक ऑलराउंडर थे- खब्बू स्पिनर, एक भरोसे के बल्लेबाज और अच्छे फील्डर। गड़बड़ ये हुई कि एमसीसी स्टाफ में नौकरी मिलने से इंग्लैंड चले गए तो ऑस्ट्रेलिया ने कभी टेस्ट खेलने का मौका ही नहीं दिया। अच्छे क्रिकेटर थे तभी तो 329 फर्स्ट क्लास मैच खेले। पहले वर्ल्ड वॉर के दौरान भारत आ गए क्रिकेट खेलने और तब ही 10 विकेट वाला वह रिकॉर्ड बनाया था। भारत इतना पसंद आया कि लगभग 20 साल यहां रहे और दोनों देशों से टीमों के आपस में टूर आयोजित करते रहे। इसी से भारत-ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट संबंध बने थे।
भारत में खुद भी खेलते रहे (1915-16 से 1936-37 तक) और यहां तक कि 57 साल की उम्र में हिंदू टीम के विरुद्ध यूरोपियंस के लिए 78 रन बनाए और 4 विकेट लिए। इसी संबंध की बदौलत, 1993-34 में महाराजा पटियाला ने उन्हें, भारत में इंग्लैंड के पहले दो टेस्ट में अंपायर बना दिया था। मुंबई के ब्रेबॉर्न स्टेडियम में पहली टर्फ पिच बनाने में भी उनका नाम है।
आम तौर पर रिकॉर्ड तो यही है कि ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच पहली टेस्ट सीरीज 1947-48 की है पर सच ये है कि 1935-36 में एक ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम भारत आई थी।इस के मैच रिकॉर्ड में अब अन-ऑफिशियल लिखे जाते हैं। इस टूर का इंतजाम और किसी ने नहीं फ्रैंक टैरेंट ने किया, उस दौर के कई टॉप क्रिकेटर टीम में थे और तब उनकी पूरी कोशिश थी कि इस सीरीज को ऑफिशियल टेस्ट सीरीज का दर्जा मिले। इस टूर पर वे ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड से भिड़ गए थे और जब वे नहीं माने तो खुद टूर का इंतजाम कर दिया। माइक कावर्ड की किताब 'क्रिकेट्स फॉरगॉटन पायनियर - द फ्रैंक टैरेंट स्टोरी (Cricket's Forgotten Pioneer – The Frank Tarrant Story)' और भारत-ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट पर, एक अन्य किताब 'क्रिकेट बियॉन्ड द बाजार (Cricket beyond the Bazaar)' में इस बारे में खूब लिखा है। पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह का उन्हें पूरा सपोर्ट था और तभी वे ऐसा कर सके।
कॉवर्ड भी मानते हैं कि एलन बॉर्डर और सुनील गावस्कर उनसे बड़े क्रिकेटर रहे और ट्रॉफी पर नाम का पूरा अधिकार उनका है पर जो इन दोनों देशों के बीच क्रिकेट की मजबूती के लिए फ्रैंक टैरेंट ने जो किया वह भी ज्यादा तारीफ़ और ख़ास जगह का हकदार है।
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- चरनपाल सिंह सोबती