क्रिकेट की सबसे चर्चित पार्टनरशिप जो हर बीच में रुके वनडे और T20I मैच में याद आती है-कौन सी और इसके अनोखे सच क्या हैं?  

Updated: Wed, Jul 03 2024 11:46 IST
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पिछले दिनों खेले टी20 वर्ल्ड कप के दौरान दो जिक्र खूब हुए- बरसात और डीएलएस (DLS) सिस्टम के। इन के साथ, फ्रैंक डकवर्थ (Frank Duckworth)  का नाम भी चर्चा में आ गया। क्या है इन तीनों के बीच आपस में संबंध? जिस डीएलएस सिस्टम को इस समय, लिमिटेड ओवर क्रिकेट में बरसात या किसी और वजह से प्रभावित मैच का स्पष्ट नतीजा निकालने के लिए, नया लक्ष्य तय करने में इस्तेमाल किया जाता है वह इन्हीं फ्रैंक डकवर्थ की देन है। बरसात और ये सिस्टम चर्चा में थे तो संयोग से इसी दौरान फ्रैंक डकवर्थ का 84 साल की उम्र में निधन हो गया। टोनी लुईस 78 साल की उम्र में 2020 में ही चले गए थे।

 

गणना का तरीका डकवर्थ ने सोचा पर उसे मैच में सही तरह लागू करने के फार्मूले में बदलने में उनके पहले साथी थे टोनी लुईस (Tony Lewis) और इस तरह शुरू हुई वह चर्चित पार्टनरशिप। तब ये डकवर्थ एंड लुईस मेथड (Duckworth & Lewis Method) था। तीसरा नाम, कई साल बाद जुड़ा और ये इस सिस्टम के मौजूदा कस्टोडियन स्टीवन स्टर्न 
(Steven Stern) का है। समय के साथ तथा मैचों के दौरान आई दिक्कतों को देख कर डकवर्थ और लुईस, अपने इस नया लक्ष्य निकालने के तरीके में बदलाव करते रहे पर बढ़ती उम्र में, और वनडे के साथ-साथ इसे टी20 के लिए भी सही बनाने में, उन्हें मदद की जरूरत थी जो स्टर्न से मिली। इस तरह ये बन गया डकवर्थ, लुईस एंड स्टर्न मेथड (Duckworth, Lewis & Stern Method) जिसे नाम बिगाड़ कर, सब जगह डकवर्थ, लुईस एंड स्टर्न सिस्टम या डीएलएस सिस्टम (DLS) लिख दिया जाता है। 

लिमिटेड ओवर क्रिकेट में बीच में रुकने वाले मैच में नए लक्ष्य के झगड़ों को इन के गणना के तरीके ने लगभग खत्म ही कर दिया। पहली बार इस तरीके से इंटरनेशनल क्रिकेट में गणना की 1997 में पर सभी इंटरनेशनल क्रिकेट में इसके इस्तेमाल की मंजूरी आईसीसी ने 2001 में दी। आईसीसी की नजर में इनका ये गणना का तरीका, क्रिकेट को किसी से भी मिले सबसे बड़े योगदान में से एक है। गणना का फार्मूला बनाने में खूब दिमाग लगाया पर वास्तव में ये सब हैं कौन और कितना क्रिकेट जानते हैं? इस सवाल का जवाब जहां एक तरफ बड़ा मजेदार है, वहीं हैरान भी कर देगा। विश्वास कीजिए इसके बारे में सबसे पहले सोचने वाले फ्रैंक डकवर्थ न तो क्रिकेटर थे और न ही क्रिकेट के बड़े जानकार। 
 
फ्रैंक एक इंग्लिश सांख्यिकीविद (स्टेटिस्टीशियन- Statistician) थे- Royal Statistical Society (RSS) के सदस्य। इस सोसाइटी में जो काम होता था उसकी जानकारी देने के लिए एक बुलेटिन छपता था और RSS News नाम के इस बुलेटिन के वे संपादक थे। और देखिए- उनके पास डिग्री थी धातु विज्ञान (Metallurgy) की। बाद में स्टेटिस्टीशियन के लिए क्वालीफाई किया। इस सब का क्रिकेट से कोई लेना-देना नहीं था। बस थोड़े शौकीन थे क्रिकेट के। 

1992 में शेफ़ील्ड में Royal Statistical Society की एक कॉन्फ्रेंस में  उन्होंने भी अपना एक छोटा सा रिसर्च पेपर पेश किया जिसका टाइटल था- 'खराब मौसम में एक सही नतीजा (A fair result in foul weather)'। इसमें ऑस्ट्रेलिया में इंग्लैंड-दक्षिण अफ्रीका, 1992 वर्ल्ड कप सेमीफाइनल तमाशे में जो हुआ उसका जिक्र था। थोड़ी सी देर की बारिश ने तब दक्षिण अफ्रीका के लिए लक्ष्य ऐसा बिगाड़ा कि लक्ष्य में रन की गिनती तो 22 ही रही- गेंद घटकर 13 से 1 हो गईं। इसे 'धोखा' कहा गया था। इसी पर डकवर्थ ने कुछ गणना की थीं उस रिसर्च पेपर में। 

ये रिसर्च पेपर टोनी लुईस ने भी पढ़ा। लुईस के लिए जरूर क्रिकेट, उनका जुनून था। वे खेले भी पर काउंटी क्रिकेट स्तर से बहुत नीचे तक। शेफील्ड यूनिवर्सिटी से गणित की डिग्री ली और इसके बाद भी पढ़े तो सांख्यिकी भी सीख गए। इस तरह वे क्रिकेट और गणित दोनों जानते थे। 1995 में वे, जो डकवर्थ ने लिखा था, उसे गणना के एक तरीके में बदलने में उनके पार्टनर बन गए। कई साल तक ये गलत समझा जाता रहा कि ये वही टोनी लुईस हैं जो पहले इंग्लैंड के टेस्ट कप्तान थे। इन दोनों ने मिलकर जो तरीका निकाला उसे पहले तो टेस्ट और काउंटी क्रिकेट बोर्ड (Test and County Cricket Board- तब इंग्लिश बोर्ड का ये नाम था) को दिया। 

बरसात वाले मैचों के विवाद से परेशान, बोर्ड ने इसे इंग्लिश क्रिकेट सीजन में लागू किया और तभी प्रयोग के तौर पर पहली बार 1 जनवरी 1 997 को जिम्बाब्वे के विरुद्ध इंग्लैंड की वनडे सीरीज के हरारे में दूसरे मैच में इसे इस्तेमाल किया गया- ये इन के नया लक्ष्य निकालने के तरीके का बड़ा इम्तिहान था। 

जिम्बाब्वे ने पहले बल्लेबाजी में 200 रन बनाए। तब बारिश आ गई और किताबें बस यही बताती हैं कि इस तरीके से गणना के बाद इंग्लैंड को जीत के लिए 42 ओवर में 186 रन का लक्ष्य दिया गया- वे 179 रन बना पाए और हार गए। विश्वास कीजिए इस तरीके को लागू करने में जबरदस्त घोटाला हो गया- गणना करने वालों ने तरीके को सही समझा ही नहीं। अखबार की रिपोर्ट थी और विजडन ने भी अपने 1998 के एनुअल में लिखा कि इंग्लैंड को जीत का लक्ष्य 185 दिया। वास्तव में इस तरीके में गणना जरूरी स्कोर की होती है और जीतना है तो उससे एक रन ज्यादा चाहिए- यहां 185 की गणना पर लक्ष्य 185 रन ही दे दिया। बाद में गलती को सुधारा। 

इस मैच के स्कोर कार्ड अलग-अलग पोर्टल पर देखिए- कहीं जीत का अंतर 6 रन और कहीं 7 रन लिखा मिलेगा। ये भी इसी गलतफहमी की देन है। और भी एक मजेदार बात- तब इंग्लैंड में इस तरीके पर बड़ा बवाल हुआ क्योंकि इंग्लैंड की हार के लिए इस तरीके की गणना जिम्मेदार थी। जब उस मैच में लक्ष्य, तब चल रहे तरीके से निकाला तो ये 168 था और उस हिसाब से इंग्लैंड मैच जीत गया था। इन की किस्मत अच्छी थी कि ये बच गए- कैसे? ये एक अलग स्टोरी है। 
 
आम रिपोर्ट ये थी कि ये तो बड़ा आसान और सही तरीका है- न तो पिछले रन रेट के चार्ट को देखो और न नई बड़ी-बड़ी गणना करो। ओवर की गिनती और बचे विकेट से नया लक्ष्य निकल आया और इनके चार्ट के साथ एक पॉकेट कैलकुलेटर से ज्यादा कुछ नहीं चाहिए था। इसे 2001 में औपचारिक तौर पर इंटरनेशनल क्रिकेट में लागू कर दिया। तब से 2024 तक इसी तरीके साथ आ पहुंचे हैं। इस बीच इस तरीके की गणना के बावजूद, कई मजेदार स्टोरी हैं बीच में रुके मैचों की। 

फिर भी एक और बात का जरूर जिक्र करेंगे जो शायद ही कहीं पढ़ने को मिले- इसे डकवर्थ ने अपने एक गैर क्रिकेट आर्टिकल में लिखा था। जब उन्होंने लुईस के साथ मिल कर अपना गणना का तरीका टीसीसीबी को दिया तो टीसीसीबी ने उन्हें इस तरीके को एक नाम देने के लिए कहा ताकि सिर्फ नाम से ही ये मालूम हो जाए कि किस तरीके की बात हो रही है। अब सब जानते हैं कि ये नाम- डकवर्थ एंड लुईस मेथड था पर सच्चाई ये है कि तब सुझाव इस नाम का नहीं था। 

डकवर्थ और लुईस ने इसे नाम दिया 'वाईकिकी फॉर्मूला (Waikiki Formula)'- असल में जब डकवर्थ हवाई (Hawaii) में छुट्टी बिता रहे थे तो वहां से उन्होंने ब्रिस्टल में रहने वाले लुईस को पहली बार अपने तरीके की गणनाएं फ़ैक्स की थीं। वे इसे इस 'पार्टनरशिप' का जन्म मानते थे। ये नाम टीसीसीबी को पसंद नहीं आया क्योंकि इसमें मौज-मस्ती के लिए मशहूर एक जगह की झलक थी। नया सुझाव- 'लेंकशायर मेथड (Lancashire Method)' था क्योंकि ये दोनों इसी काउंटी से थे- भले ही अलग-अलग जगह से। इस नाम पर टीसीसीबी को लगा हमेशा एक काउंटी को प्रमोट करते रहेंगे। और भी नाम सामने आए पर किसी पर भी सहमति न बनी और मजबूरी में इसे डकवर्थ एंड लुईस मेथड का ही नाम दे दिया। 

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- चरनपाल सिंह सोबती
 

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