क्या विदेशी खिलाड़ी भी कभी भारत की दलीप ट्रॉफी में खेले हैं- नाम जानेंगे तो हैरान रह जाएंगे 

Updated: Mon, Sep 23 2024 08:46 IST
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Duleep Trophy: इस घरेलू सीजन के दलीप ट्रॉफी मैच खेले जा रहे हैं इन दिनों। जिस टूर्नामेंट को, जोनल टीम के बीच मैचों के साथ शुरू किया, आयोजन के सफर में न सिर्फ टूर्नामेंट का स्वरूप बदलता रहा, टीम का नाम भी। इस सीजन में इंडिया ए, इंडिया बी, इंडिया सी और इंडिया डी टीम खेल रही हैं। दलीप ट्रॉफी का मतलब है भारत का घरेलू फर्स्ट क्लास मैचों का टूर्नामेंट और आम छवि यही है कि इंग्लैंड या ऑस्ट्रेलिया की तरह, भारत की घरेलू क्रिकेट में विदेशी खिलाड़ी नहीं खेलते। क्या आप विश्वास करेंगे कि दलीप ट्रॉफी में विदेशी खिलाड़ी तो क्या, विदेशी टीम भी खेल चुकी हैं। कैसे और कब?

इसके लिए 2003 के साल पर चलते हैं और वह 6 जून का दिन था जब मुंबई में रणजी ट्रॉफी कप्तान और कोच की कॉन्फ्रेंस में, टीम इंडिया के क्रिकेटरों के घरेलू टूर्नामेंट न खेलने के मसले पर बोलते हुए, तब के बीसीसीआई चीफ जगमोहन डालमिया ने कहा था कि बहुत ज्यादा इंटरनेशनल क्रिकेट खेली जा रही है और क्रिकेटरों के पास समय ही कहां है कि घरेलू टूर्नामेंट खेलें। वे ये मान गए कि इन सीनियर के खेलने से ही घरेलू क्रिकेट और बेहतर हो सकता है। वहीं, तब की बीसीसीआई टेक्निकल कमेटी के चीफ सुनील गावस्कर ने भी इस पर सहमति दी और बताया कि घरेलू क्रिकेट को और बेहतर और रोमांचक बनाने के लिए ही, बीसीसीआई अगले साल से दलीप ट्रॉफी टूर्नामेंट में खेलने विदेशी टीम बुला सकता है। 

चूंकि इंग्लिश काउंटी सीजन सितंबर तक खत्म हो जाता है, इसलिए चैंपियनशिप विजेता काउंटी या बांग्लादेश टीम (उन सालों में ये चर्चा थी कि उनके स्तर में सुधार के लिए बीसीसीआई उनकी मदद करे और अपने घरेलू टूर्नामेंट में खेलने दे) खेल सकते हैं। विदेश से एक टीम के आने का मतलब था टूर्नामेंट में कुल 6 टीम (5 जोनल टीम पहले से खेल रही थीं) और इनके दो ग्रुप बनाकर मैच की गिनती बढ़ जाती। यही हुआ और 2003-04 सीजन से दलीप ट्रॉफी में विदेशी टीम का खेलना शुरू हो गया। देखिए इनके खेलने का रिकॉर्ड :

इंग्लैंड ए :  2003-04 एवं 2007-08 सीजन 

बांग्लादेश ए (क्रिकेट बोर्ड इलेवन) : 2004-05 सीजन 

जिम्बाब्वे क्रिकेट यूनियन प्रेसिडेंट्स इलेवन : 2005-06 सीजन

श्रीलंका ए : 2006-07 सीजन

बीसीसीआई का ये प्रयोग एक नई शुरुआत तो था पर कोई ख़ास कामयाब नहीं रहा क्योंकि इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे बोर्ड एक अच्छी टीम भेजने से कतराते रहे जबकि 
2008-09 सीजन के लिए ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका ने घरेलू सीजन की तारीखों के टकराव की दलील पर टीम भेजने से इंकार कर दिया। तब तक देश में सिक्योरिटी का मसला भी उछल चुका था हालांकि ऑफिशियल तौर पर किसी ने भी इसे वजह नहीं बनाया। उस सीजन में, तब फिर से 5 टीम के साथ नॉक-आउट फॉर्मेट में खेले। बीसीसीआई ने विदेशी टीम बुलाने का सिलसिला भी यहीं रोक दिया। जो टीम आई भीं, वे कैसी थीं (या कैसा खेलीं) इसका अंदाजा इसी से लगाया कि किसी ने दलीप ट्रॉफी को नहीं जीता और सच ये है कि श्रीलंका ए के अतिरिक्त किसी भी टीम ने फाइनल भी नहीं खेला।   

दलीप ट्रॉफी में, जिस अकेले विदेशी खिलाड़ी ने घरेलू खिलाड़ियों से चर्चा में मुकाबला किया वे केविन पीटरसन थे- भारत में अपना पहला टेस्ट खेलने से दो साल पहले और तब उनके बारे में कोई ख़ास जानकारी भी नहीं थी। 2003-04 दलीप ट्रॉफी में उनका बैट खूब चमका। तब पीटरसन नॉटिंघमशायर के लिए खेलते थे और अनकैप्ड थे और 15 खिलाड़ियों वाली इंग्लैंड ए टीम के साथ आए। उस टीम में मैट प्रायर, साइमन जोन्स, माइकल लम्ब, साजिद महमूद, एड स्मिथ और जेम्स ट्रेडवेल समेत कई और आगे इंग्लैंड के लिए खेलने वाले क्रिकेटर थे। 23 साल के पीटरसन ने 2 मैच खेले, सीजन के रन-चार्ट में टॉप पर रहे 86.25 औसत से 345 रन के साथ जिसमें दो 100 और एक 50 थे। पहले मैच में ही, गुड़गांव में साउथ जोन (जिनके अटैक में युवा श्रीसंत और अनुभवी खब्बू  स्पिनर सुनील जोशी भी थे) के विरुद्ध दो 100 बनाए (104 और 115) पर तब भी इंग्लैंड ए टीम मैच हार गई। ये गजब का मैच था और सीजन के टॉप भारतीय स्कोरर वेणुगोपाल राव के 228 (साथ में एस श्रीराम 117 और एस बद्रीनाथ 100*) की बदौलत साउथ जोन ने चौथी पारी में 501 रन का टारगेट भी हासिल कर लिया 503-4 बनाकर।

उसके बाद अमृतसर में ईस्ट जोन (टीम में धोनी भी थे) के विरुद्ध अगले मैच में पीटरसन ने 32 और 94 रन बनाए। इस टूर के रिकॉर्ड ने ही पीटरसन को, इंग्लैंड टेस्ट टीम में जगह दिलाने में ख़ास भूमिका निभाई थी और 2005 की एशेज में यादगार शुरुआत की। विश्वास कीजिए, उस समय की कुछ भारतीय अखबारों में ये भी लिखा गया था कि पीटरसन को भारत में ही रुकने के लिए राजी करो ताकि वह भारत के लिए इंटरनेशनल क्रिकेट खेलने के लिए क्वालीफाई कर सके। ये तो न हुआ पर इसी पीटरसन ने बाद के सालों में इंग्लैंड टीम के लिए भारत टूर पर 9 टेस्ट में, दो 100 और चार 50 के साथ 43.93 औसत से बल्लेबाजी की जिसमें 2012 में मुंबई में 186 रन भी थे जिन्हें पीटरसन के करियर की सबसे बेहतरीन इनिंग में से एक गिनते हैं और विजडन ने बाद में इसे 2010 के दशक की सबसे बेहतरीन टेस्ट इनिंग में नंबर 3 पर रखा था।

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वैसे क्या इसी के साथ विदेशी खिलाड़ियों या विदेशी टीम के दलीप ट्रॉफी में खेलने की चर्चा खत्म हो गई? लगभग सभी, दलीप ट्रॉफी में विदेशी खिलाड़ियों के खेलने की चर्चा, इंग्लैंड ए के फरवरी-मार्च 2004 में खेलने से शुरू करते हैं पर एक और स्टोरी ये है कि कुछ विदेशी खिलाड़ी, इससे भी पहले दलीप ट्रॉफी में खेले थे।1962-63 सीजन की दलीप ट्रॉफी में चार विदेशी खिलाड़ी खेले और इनका खेलना तो और भी ख़ास था क्योंकि ये किसी विदेशी टीम के लिए नहीं, भारत की जोनल टीमों में खेले- लेस्टर किंग ईस्ट जोन के लिए, चार्ली स्टेयर्स वेस्ट जोन के लिए, चेस्टर वॉटसन नॉर्थ जोन के लिए और रॉय गिलक्रिस्ट साउथ जोन के लिए। ये कैसे हुआ- ये एक अलग स्टोरी है।  
 

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