भारत का अभाग्यशाली क्रिकेटर? फर्स्ट क्लास में बल्लेबाजी की औसत में टॉप 8 में सिर्फ एक खिलाड़ी ऐसा जिसने कोई टेस्ट नहीं खेला 

Updated: Fri, Mar 22 2024 09:16 IST
Shantanu Sugwekar one batsman who is relatively unheard but has a stellar domestic record (Image Source: Instagram)

Shantanu Sugwekar: पिछले कुछ दिनों में, क्रिकेट में कुछ ऐसी चर्चा हुई जिनमें बार-बार भारत के एक खिलाड़ी का जिक्र जुड़ा पर हैरानी की बात तो ये है कि उस खिलाड़ी की चर्चा तो दूर, शायद क्रिकेट प्रेमियों की मौजूदा बिरादरी ने तो वह नाम भी न सुना होगा। देखिए : 

 

1. एक अनोखा रिकॉर्ड तब बना जब इस साल जनवरी में बेल्जियम में जन्मे जिम्बाब्वे के क्रिकेटर अंतुम नकवी (Antum Naqvi) ने जब अपना 8वां फर्स्ट क्लास मैच खेला (हरारे में माताबेलीलैंड टस्कर्स के विरुद्ध मिडवेस्ट राइनो के लिए)। उस मैच में बनाए 300* की बदौलत उनका करियर रिकॉर्ड 8 मैच में 715 रन,102.14 औसत था और ये 8 मैच के बाद सबसे बेहतर औसत में एक है। 7 बल्लेबाज का, 8 मैच के बाद औसत इससे भी बेहतर रहा है (इनमें टेस्ट क्रिकेटर बिल पोंसफोर्ड 113.33 और बाहर शाह 103.27 भी हैं) पर टॉप पर एक भारतीय खिलाड़ी है- शांतनु सुगवेकर (औसत 164.40) और इसमें 1989 में पुणे में मध्य प्रदेश के विरुद्ध महाराष्ट्र के लिए बनाए  299* शामिल हैं। ये ठीक है कि वे इन 8 मैच में जो 11 पारी खेले उनमें से 6 में नॉट-आउट रहे (जिससे औसत एकदम बढ़ गई) पर रिकॉर्ड तो है। 

2. जब फर्स्ट क्लास क्रिकेट में रन का अंबार लगाने के बावजूद सरफराज खान को टेस्ट खेलने का मौका नहीं मिल रहा था तो उनके फर्स्ट क्लास क्रिकेट में बड़े औसत का जिक्र होता था। इस समय उनका बैटिंग औसत 68.53 है पर वे टेस्ट खेल चुके हैं। जो कभी टेस्ट नहीं खेले, उनमें सबसे बड़े टेस्ट औसत के रिकॉर्ड में भी हैरानी की बात है कि टॉप पर एक भारतीय क्रिकेटर है और ये और कोई नहीं, यही शांतनु सुगवेकर हैं- 85 मैच में 6563 रन, औसत: 63.10)।

इन दो बड़े रिकॉर्ड में टॉप पर जिस भारतीय बल्लेबाज का नाम है- उनकी पहचान यही है कि इस समय क्रिकेट को चाहने वालों ने उनका नाम भी नहीं सुना होगा। और देखिए उनका फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 63.10 का औसत भारतीय घरेलू क्रिकेट के इतिहास में तीसरा सबसे बड़ा बल्लेबाजी औसत है।रणजी ट्रॉफी मैच में 299* का स्कोर बनाने वाले भी एकमात्र खिलाड़ी हैं।

इस बार इन्हीं शांतनु सुगवेकर की बात करते हैं। इतना बढ़िया रिकॉर्ड और तब भी वे हमेशा कहते रहे कि क्रिकेट उनका पहला प्यार कभी नहीं था- ये तो बैडमिंटन था। इंटर-स्कूल टूर्नामेंट से शुरुआत हुई, बैडमिंटन में जूनियर नेशनल स्तर तक पहुंचे और तब क्रिकेट में एंट्री हुई। 12 साल के थे तो बल्लेबाजी शुरू की और ऐसा खेले कि अंडर 15 महाराष्ट्र टीम में सेलेक्शन हो गया और यहां से ही क्रिकेट को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया और बैडमिंटन बैक फुट पर हो गई। 

सुगवेकर 1986 में भारत की अंडर-19 टीम के साथ ऑस्ट्रेलिया टूर पर गए- उन्हें मिडिल आर्डर बल्लेबाज के तौर पर चुना था लेकिन पता नहीं क्यों उन्हें, बिना प्रैक्टिस, पेसर के रोल में नई गेंद से गेंदबाजी के लिए कह दिया। सच ये है कि एडिलेड में उन्हें टॉस के बाद कहा गया कि गेंदबाजी की शुरुआत करेंगे। इस रोल में नाकामयाब तो होना ही था। नंबर 9 पर बल्लेबाजी की। ये उनके लिए बड़ा खराब टूर रहा।  

इस समय फर्स्ट क्लास क्रिकेट में औसत के हिसाब से टॉप 8 (निम्नतम योग्यता : 50 पारी) में से वे अकेले हैं जो कभी टेस्ट नहीं खेले। उनसे ऊपर डॉन ब्रैडमैन, विजय मर्चंट, जॉर्ज हेडली, सरफराज़ खान, अजय शर्मा, बिल पोंसफोर्ड और बिल वुडफुल का नाम है और ये सभी टेस्ट खेल चुके हैं। 

पुणे में, शहर के सेंटर में डेक्कन जिमखाना है- ये क्लब 1906 से है। 1980 और 90 के दशक तक महाराष्ट्र के ज्यादातर क्रिकेटर पुणे से थे और ये डेक्कन जिमखाना, पीवाईसी हिंदू जिमखाना या पूना क्लब के लिए क्लब टूर्नामेंट में नाम कमाने के बाद आगे बढ़ते थे। शांतनु सुगवेकर डेक्कन जिमखाना से थे और महाराष्ट्र टीम के गोल्डन पीरियड का एक ख़ास हिस्सा थे- 1988 से 1996 के बीच टीम, 8 बार रणजी ट्रॉफी नॉकआउट राउंड में खेली।.

उनके 299* पर ही रह जाने की भी स्टोरी बड़ी मजेदार है। 1988-89 में, पुणे के नेहरू स्टेडियम में मध्य प्रदेश के विरुद्ध मैच था ये। आख़िरी बल्लेबाज अनिल वाल्हेकर थे और जैसे ही अनिल (38) ने अपने स्टंप्स को हिलते देखा तो उन्हें सीधे दूसरे छोर पर खड़े सुगवेकर का ख्याल आया जो अपने 300 से सिर्फ एक रन दूर थे। सुगवेकर, उस क्षण को याद करते हुए आज भी कहते हैं- 'उसी पल वाल्हेकर ने बुरी तरह से रोना शुरू कर दिया। वह पिच पर इतना रो रहा था कि मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं- उन्हें क्या कहूं।'

सुगवेकर आगे कहते हैं- 'कुछ मिनट बाद, मैंने उनसे कहा- जो होना होता है, हो जाता है। इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं। इसके बाद ही मैं पवेलियन वापस आया और वहां मुझे एहसास हुआ कि मैं तिहरा शतक बनाने से चूक गया हूं और ऐसा मौका मुझे शायद फिर कभी न मिले। इससे भी ज्यादा परेशानी मुझे अनिल की वजह से हो रही थी- वे बिल्कुल चुप थे और बुरी तरह से निराश।' महाराष्ट्र ने मैच पारी और 262 रन से जीता और क्वार्टर फाइनल के लिए क्वालीफाई किया लेकिन अगले मैच में तमिलनाडु से 39 रन से हार गए। 

उन दिनों में, सुगवेकर, संतोष जेधे और सुरेंद्र भावे खेलते थे महाराष्ट्र के लिए और बल्लेबाजी लाइन-अप बड़ी मजबूत थी। तीनों ने रन बनाए, महाराष्ट्र एक मजबूत टीम बन गई और इनके साथ 1988 से 1996 के बीच, सिर्फ 1989-90 में रणजी नॉकआउट राउंड में नहीं खेले।

1990 से 2007 तक, इंग्लैंड में, नॉर्थ लेंकशायर लीग में खेले और संदीप पाटिल की कप्तानी में वे (तब टीम में सचिन तेंदुलकर भी थे) सनग्रेस मफतलाल के लिए भी खेले। सनग्रेस मफतलाल के लिए ही, टाइम्स शील्ड डिवीजन ए मैच में रेलवे के विरुद्ध (1994 में) लंच के समय, सनग्रेस का स्कोर 90-3 था। सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था। तेंदुलकर के साथ, सिर्फ दो सैशन में 400 रन की पार्टनरशिप निभाई थी। 

इसी सब को देखते हुए और ख़ास तौर पर ये कि फर्स्ट क्लास करियर औसत 63.10 रहा (जो भारत में विजय मर्चेंट और अजय शर्मा के बाद तीसरा सबसे बड़ा औसत है) तो ये आश्चर्य की बात है कि उन्हें कभी इंडिया कैप नसीब नहीं हुई। सेलेक्टर, टीम इंडिया में जगह के लिए उनके दावे को बार-बार नजरअंदाज करते रहे। वे कहते हैं- 'वास्तव में क्या गलत हुआ- मुझे नहीं पता। मैं भी भारत के लिए खेलना चाहता था पर ये कभी समझ नहीं आया कि टीम इंडिया में शामिल होने के लिए मुझे और क्या करना चाहिए?'

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2007 में वे क्रिकेट से रिटायर हो गए। हमेशा जिक्र उन बदकिस्मत क्रिकेटर में से एक के तौर पर होता रहा जो, रन बनाने के बावजूद, कभी सेलेक्टर्स का ऐसा विश्वास नहीं जीत पाए जो टेस्ट खेलने के लिए जरूरी था। और तो और उन सालों में  मिलिंद गुंजल, सुरेंद्र भावे,श्रीकांत कल्याणी, श्रीकांत जाधव और संतोष जेधे जैसे खिलाड़ियों में से भी कोई बेहतर घरेलू रिकॉर्ड के बावजूद जरूरी, उस बॉक्स पर टिक नहीं लगा सका जिससे टेस्ट टीम में सेलेक्शन होता। यहां तक कि महाराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन के चुनाव में जब आने की हिम्मत जुटाई तो वहां भी अपने पीआर में मात खा गए। काउंसलर (Councilor) की पोस्ट के लिए सिर्फ 2 वोट मिले- इनमें से एक वोट तो अपना था। वहां भी एमसीए की अंदरूनी राजनीति में फिट नहीं बैठे।
 

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