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Cricket Tales: जो हिम्मत नवाब पटौदी के साथ 1962 वेस्टइंडीज टूर में दिखाई वह आज भी मिसाल है

Cricket Tales: भारत की टीम वेस्टइंडीज टूर पर है। टेस्ट सीरीज के लिए रोहित शर्मा कप्तान और अजिंक्य रहाणे उप कप्तान। इनमें से रहाणे को उप कप्तान बनाने के फैसले की बड़ी चर्चा है और ये सेलेक्टर्स की सोच की तरफ

Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti July 08, 2023 • 12:36 PM
Mansoor Ali Khan Pataudi
Mansoor Ali Khan Pataudi (Image Source: Google)
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Cricket Tales: भारत की टीम वेस्टइंडीज टूर पर है। टेस्ट सीरीज के लिए रोहित शर्मा कप्तान और अजिंक्य रहाणे उप कप्तान। इनमें से रहाणे को उप कप्तान बनाने के फैसले की बड़ी चर्चा है और ये सेलेक्टर्स की सोच की तरफ साफ़ इशारा है- वे भविष्य की तैयारी में, किसी युवा खिलाड़ी को अनुभव दिलाने के इतने अच्छे मौके का फायदा नहीं उठा पाए। वेस्टइंडीज टूर और उप कप्तान के इस मुद्दे को एक-साथ देखें तो सीधे 1962 का वेस्टइंडीज टूर याद आता है। क्या हुआ था तब?

1961-62 में टेड डेक्सटर की इंग्लिश टीम के विरुद्ध भारत ने अपनी पिचों पर जो क्रिकेट खेली उसकी इंग्लैंड में भी बड़ी तारीफ़ हुई थी- टेस्ट सीरीज को भारत ने 2-0 से जीता था।तब भी वह भारतीय क्रिकेट में बदलाव का दौर था- सीनियर थे टीम में पर साथ-साथ बेहतर युवा खिलाड़ी भी आ रहे थे। इसी टेस्ट सीरीज में, मंसूर अली खान पटौदी ने टेस्ट डेब्यू किया था। सीरीज के सफल कप्तान, नारी कांट्रेक्टर को ही वेस्टइंडीज के अगले टूर के लिए कप्तान बनाए रखना कोई मुश्किल मुद्दा नहीं था- सवाल था कि उप कप्तान किसे बनाएं? ठीक आज की तरह से ये सवाल सबसे बड़ी चर्चा था।

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यहां नाम आता है नवाब पटौदी का। 40 टेस्ट में भारत के कप्तान। वही, जो सिर्फ एक आंख से देखने के बावजूद अपने समय में सबसे बेहतर बल्लेबाज में से एक गिने गए। जब वे एक कार एक्सीडेंट में दाहिनी आंख खोने के कुछ महीने बाद क्रिकेट में लौटे तो सेलेक्टर्स को उनमें ऐसी टेलेंट नज़र आई कि नेट्स में चार महीने की प्रेक्टिस के बाद, हैदराबाद में टेड डेक्सटर की एमसीसी टीम के विरुद्ध बोर्ड प्रेसीडेंट इलेवन का कप्तान बना दिया। कप्तानी तो वे इससे पहले भी कर चुके थे- इंग्लैंड में स्कूल इलेवन और बाद में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की। एक महीने बाद, दिसंबर 1961 में, दिल्ली में इंग्लैंड के विरुद्ध टेस्ट डेब्यू और पहली चार टेस्ट पारियों में स्कोर 13, 64, 32 और 103 थे।

सीरीज जीत में इन स्कोर को देखकर,1962 की शुरुआत में वेस्टइंडीज टूर के लिए, कई सीनियर की मौजूदगी में उन्हें उप-कप्तान बना दिया था- ठीक वैसे ही जैसे अब सुनील गावस्कर ने शुभमन गिल के नाम की वकालत की। जब नारी कॉन्ट्रैक्टर, चार्ली ग्रिफिथ के एक बाउंसर पर बुरी तरह चोटिल हुए बारबाडोस के विरुद्ध मैच में- तब तक भारत सीरीज के पहले दोनों टेस्ट बुरी तरह से हार चुका था। ऐसे मुश्किल माहौल में, उप कप्तान होने के नाते, पटौदी (21 साल 77 दिन) टेस्ट कप्तान बन गए- उस समय, भारत के ही नहीं, टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में सबसे कम उम्र के कप्तान।

बात सिर्फ ये रिकॉर्ड नहीं है- ये सच्चाई है कि उन्हें टूर टीम में उप कप्तान सिर्फ इसलिए बनाया था कि वे कांट्रेक्टर की मौजूदगी में अनुभव हासिल करें और भविष्य के लिए एक कप्तान तैयार हो जाए। अनुभव की बात करें तो टूर टीम में सिर्फ दिलीप सरदेसाई ने उनसे कम मैच खेले थे। टीम के कई सीनियर, पटौदी को मिली प्रमोशन से पहले ही नाराज थे और पटौदी के लिए कई नाराज सीनियर वाली टीम की, कप्तानी करना आसान नहीं था। पॉली उमरीगर- पहले कप्तान रह चुके थे, 14 साल और 56 टेस्ट का अनुभव। विजय मांजरेकर- 11 साल से टेस्ट खेल रहे थे और 44 टेस्ट उनके नाम थे। चंदू बोर्डे- चार साल में 26 टेस्ट खेले थे। अगर सेलेक्टर भविष्य की तैयारी कर रहे थे तो भी पहला हक़ चंदू बोर्डे का था।

उस समय की अखबारों की टूर रिपोर्ट पढ़ें तो साफ़ लिखा है कि जब कांट्रेक्टर की जगह, वास्तव में कप्तान की जरूरत पड़ी तो पटौदी कम अनुभव और युवा होने के नाते 'पहली पसंद' नहीं थे। दूसरी तरफ, कुछ रिपोर्ट में लिखा है कि इन सीनियर में से, अंदर ही अंदर, कोई भी वेस्टइंडीज की खौफनाक तेज गेंदबाज़ी के सामने, टीम की बागडोर संभालने के लिए तैयार नहीं था। मालूम था कि हारना ही है- तब तक टूर में खेले दोनों टेस्ट टीम इंडिया हार चुकी थी।

सिर्फ 3 टेस्ट के अनुभव वाले पटौदी ने एक बार भी ऐसा कुछ नहीं सोचा। कमजोर तेज गेंदबाजी और टीम में गुटबाज़ी ने कप्तान की मुश्किलें बढ़ा दीं पर उन्हें कप्तान बनाना वास्तव में भारतीय क्रिकेट में एक नए युग की शुरुआत थी। विनचेस्टर और ऑक्सफोर्ड दोनों की कप्तानी, पटौदी वंश का नाम, अपनी पहली टेस्ट सीरीज में शानदार बल्लेबाजी- इस सब ने ही सेलेक्टर्स को ये भरोसा दिया था कि पटौदी कप्तानी के लिए फिट हैं । यह फैसला, एक ऐसा जुआ था, जिसमें जोखिम शायद इसलिए कम था कि सेलेक्टर्स जानते थे कि वे एक असाधारण टेलेंट पर दांव लगा रहे हैं। पटौदी ने अपने युवा टेस्ट करियर में जितने भी रन बनाए थे, एक आंख से गेंद खेलकर बनाए- 46 टेस्ट खेले और उनमें से 40 में कप्तान। आज जिस उम्र में दूसरे कप्तान बनने के दावेदार हैं- उससे पहले उनका करियर खत्म हो गया था।

ये भी रिकॉर्ड में दर्ज है कि सीरीज के जिन 3 टेस्ट में पटौदी कप्तान रहे (भारत की तीनों टेस्ट में हार)- उन्हें सीनियर खिलाड़ियों से पूरा सपोर्ट नहीं मिला। तब भी, खुद पटौदी ने कभी इस बात का जिक्र नहीं किया या इसे किसी विवाद का रंग नहीं दिया। पटौदी ने एक इंटरव्यू में कहा था- 'जब मुझे कप्तानी मिली तो मैं सबसे छोटा था, फिर भी डिफॉल्ट में कप्तान बन गया। कई सीनियर ने मेरा साथ दिया। पॉली उमरीगर और विजय मांजरेकर ने काफी सपोर्ट किया। ये सच है कि एक-दो को लगा कि मैंने उनका कप्तान का हक़ छीन लिया है, पर इसके बारे में मैं कुछ नहीं कर सकता था।'

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पॉली उमरीगर उस टूर के बाद और कोई टेस्ट नहीं खेले जबकि विजय मांजरेकर सिर्फ 8 टेस्ट और खेले। सेलेक्टर्स का एक युवा खिलाड़ी को कप्तान बनाने का फैसला टीम इंडिया के लिए एक मास्टर स्ट्रोक बन गया।


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