90 के दौर में रोमेश कालुवितराना, मोईन खान, एडम गिलक्रिस्ट और मार्क बाउचर जैसे खिलाड़ियों ने विकेटकीपर-बल्लेबाज की भूमिका को नए आयाम दिए थे। इन्होंने दिखाया था कि एक विकेटकीपर न सिर्फ विकेटकीपिंग ग्लव्स, बल्कि बल्ले के साथ भी टीम की जीत में अहम योगदान दे सकता है।
यही वजह रही कि रोमेश कालुवितराना जैसे विकेटकीपर को 1996 के विश्व कप में श्रीलंकाई पारी की ओपनिंग का जिम्मा सौंपा गया, जिन्होंने शुरुआती 15 ओवरों के खेल को ही बदल दिया। ऑस्ट्रेलिया को तीन विश्व कप खिताब जिताने वाले एडम गिलक्रिस्ट 2007 के विश्व कप में 'प्लेयर ऑफ द मैच' तक रहे। मार्क बाउचर साउथ अफ्रीका के लिए बल्लेबाजी में संकटमोचक साबित हुए, तो दूसरी ओर मोईन खान ने पाकिस्तान के लोअर और मिडिल ऑर्डर में बल्लेबाजी करते हुए बेहतरीन मैच फिनिशर की भूमिका निभाई।
पूरे विश्व ने 90 के दौर में इन विकेटकीपर-बल्लेबाजों का जलवा देखा था, जिन्होंने आधुनिक क्रिकेट की बल्लेबाजी की झलक दिखाई थी। इसके बाद 21वीं सदी की शुरुआत में विकेटकीपर-बल्लेबाजों के आक्रामक अंदाज को आगे बढ़ाते हुए क्विंटन डी कॉक, एमएस धोनी, जॉनी बेयरस्टो और ऋषभ पंत जैसे खिलाड़ी उबरकर सामने आए, जिन्होंने सफेद गेंद क्रिकेट के साथ टेस्ट मैचों का भी बैटिंग स्टाइल बदलने में अहम योगदान दिया।