विराट कोहली और रवि शास्त्री की जुगलबंदी के युग से पहले भारतीय क्रिकेट टीम के लिए तेज गेंदबाजों की रफ्तार हमेशा विशेष आकर्षण का विषय रही है। आज भी 150 किलोमीटर प्रति घंटा के गेंदबाज महज गति के दम पर ही ध्यान खींच लेते हैं। भारतीय संदर्भ में तो यह और भी खास हो जाता है, क्योंकि गति लंबे समय से हमारी पहचान नहीं थी। ऐसे में जिन तेज गेंदबाजों ने इस मिथक को तोड़ने की कोशिश की, वे चर्चित हो गए। ऐसे ही मजबूत कद-काठी के एक पेसर थे विक्रम राजवीर सिंह।
क्रिकेट फैंस में वीआरवी सिंह के नाम से पहचान बनाने वाले इस बॉलर का जन्म 17 सितंबर को हुआ था। वे दाएं हाथ के तेज गेंदबाज थे। जब वीआरवी का उदय हो रहा था, तब भारतीय क्रिकेट में तेज गेंदबाजों की गति को लेकर आलोचना होती थी और श्रीनाथ के बाद टीम इंडिया को नैसर्गिक पेसर की सख्त दरकार थी।
ऐसे में पंजाब के लंबे-चौड़े बॉलर वीआरवी का आगमन ठंडी हवा के झोंके सरीखा था। भारतीय टीम में आगमन से पहले ही उन्ही गति से उन्हें प्रसिद्ध कर दिया था। वह 90 मील प्रति घंटा और कई बार उससे भी तेज गेंद गति से बॉलिंग करते थे। इस स्पीड का आदी भारतीय घरेलू क्रिकेट भी नहीं था। यही वजह से अपने पहले ही डोमेस्टिक सीजन में वीआरवी ने गति से कहर ढाया था। उन्होंने उस सीजन में मात्र सात रणजी मैच खेले, लेकिन 20.67 की औसत से 34 विकेट हासिल किए।