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1979 Oval Test: जब Oval Stadium में भारत टेस्ट इतिहास की सबसे बड़ी जीत दर्ज करने से चूक गया था

1979 Oval Test: जब भी भारत के ओवल, इंग्लैंड में टेस्ट खेलने की बात होती है तो अतीत में झांकने पर सबसे पहले जो टेस्ट याद आता है वह है 1979 का इंग्लैंड-भारत टेस्ट। वह सीरीज का चौथा टेस्ट था और

Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti June 07, 2023 • 09:54 AM
1979 Oval Test: जब Oval Stadium में भारत टेस्ट इतिहास की सबसे बड़ी जीत दर्ज करने से चूक गया था
1979 Oval Test: जब Oval Stadium में भारत टेस्ट इतिहास की सबसे बड़ी जीत दर्ज करने से चूक गया था (Image Source: Google)
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1979 Oval Test: जब भी भारत के ओवल, इंग्लैंड में टेस्ट खेलने की बात होती है तो अतीत में झांकने पर सबसे पहले जो टेस्ट याद आता है वह है 1979 का इंग्लैंड-भारत टेस्ट। वह सीरीज का चौथा टेस्ट था और भारत सीरीज में 1-0 से पीछे था। ये वही टेस्ट है जिसमें जीत की 438 रन बनाने की बड़ी और लगभग असंभव चुनौती के बावजूद भारत एक समय जीत के कगार पर था। जब टेस्ट ड्रा के तौर पर खत्म हुआ तो शायद यही खुशी थी कि टेस्ट में हार बच गई। अगर भारत वो टेस्ट मैच जीत जाता तो इस फॉर्मेट के इतिहास की में लक्ष्य का पीछा करते हुए हासिल की गई सबसे बड़ी जीत होती (2023 तक भी)।  जीत की उम्मीद को संभव सा बनाया था सुनील गावस्कर के मास्टर क्लास 221 ने जिन्हें सर लेन हटन ने भी ओवल में खेली, सबसे बेहतरीन पारी में से एक गिना। उनका साथ दिया चेतन चौहान (80- पार्टनरशिप 213 रन) और दिलीप वेंगसरकर (52) ने। 

जब भी इस टेस्ट की बात होती है तो गावस्कर मास्टर क्लास का जिक्र करते हुए लिख दिया जाता है कि भारत अभाग्यशाली था कि टेस्ट न जीत सका। क्या महज यही बात है? एक तरफ गावस्कर अपनी बेहतरीन बल्लेबाजी से जीत को संभव बनाने की कोशिश में लगे थे तो दूसरी तरफ कुछ ऐसी बात हुई जिसने भारत के टेस्ट न जीत पाने में बराबर की भूमिका निभाई। यहां तक कि, आज जिन माइक ब्रेयरली को 'क्रिकेट पंडित' कहते हैं- वे भी अपनी किताब 'आर्ट ऑफ़ कैप्टेंसी' में इस टेस्ट का जिक्र करने पर मजबूर हुए। इस टेस्ट में खेली बेहतरीन क्रिकेट के बावजूद यही वह टेस्ट था जिसकी वजह से एस वेंकटराघवन की कप्तानी गई।  

टेस्ट सीरीज के पहले टेस्ट में हार और उसके बाद दो ड्रा- तब ओवल टेस्ट खत्म कर घर लौटने के करीब थी टीम और इसीलिए खिलाड़ी बाद खुश थे। ये बड़ा लंबा टूर हो गया था- टेस्ट से पहले वर्ल्ड कप भी खेले थे। उस पर सुनील गावस्कर ने तो सीरीज ड्रा करने की उम्मीद से माहौल और खुशी वाला कर दिया था। अब सीधे टेस्ट पर चलते हैं :

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इंग्लैंड 305 के जवाब में भारत 202 रन पर आउट। ज्योफ्रे बॉयकॉट (125) के शतक की बदौलत जब इंग्लैंड ने 334-8 पर पारी समाप्त घोषित की तो उन्हें यही लगा था कि टेस्ट उनकी गिरफ्त में है। इस भारतीय टीम से जीत के लिए 438 रन बनाने की उम्मीद किसी ने नहीं की थी हालांकि लगभग तीन साल पहले ही वेस्टइंडीज के विरुद्ध 400 से ज्यादा रन बनाकर टेस्ट जीते थे। ऐसे कमाल रोज-रोज देखने को नहीं मिलते। 

चौथे दिन ओपनर सुनील गावस्कर और चेतन चौहान ने 76 रन जोड़ दिए। अगले दिन दोनों ओपनर उसी अंदाज में आगे खेले। पहले विकेट के लिए 213 रन बने और जीत की उम्मीद की नींव रखी जा चुकी थी। उस समय, तीन घंटे में जीत के लिए 225 रन की जरूरत थी और 9 विकेट हाथ में थे। दिलीप वेंगसरकर (52) ने भी गावस्कर का अच्छा साथ दिया और दोनों अटैक के मूड में थे। चाय पर स्कोर 304-1 था। अब जीत के लिए 134 रन की जरूरत थी और और भारत अचानक जीत के लिए फेवरिट बन गया था। जैसे ही भारत की जीत की उम्मीद की खबर फैली- ओवल भरने लगा। इंग्लिश टीम बौखला गई- ग्राउंड पर बैट का जोर और स्टैंड्स में भारतीय समर्थकों का बढ़ता शोर।  

माइक ब्रेयरली इस स्थिति के लिए तैयार नहीं थे- टेस्ट में हार के बारे में तो सोचा भी नहीं था। नतीजा उन्होंने वही किया जो उससे पहले कई कप्तान कर चुके थे- ओवर रेट एकदम धीमा कर दिया। भीड़ शोर कर रही थी पर उन पर कोई असर नहीं हुआ। मेंडेटरी ओवर शुरू होने से पहले के आधे घंटे में, इंग्लैंड ने स्पिनरों (पीटर विली और फिल एडमंड्स) के अटैक पर होने के बावजूद सिर्फ 6 ओवर फेंके।

मेंडेटरी ओवर की शुरुआत में, स्कोर 328-1 और तब- 110 रन की जरूरत और 9 विकेट बाकी थे। उसी समय इयान बॉथम ने वेंगसरकर का एक कैच छोड़ा। गावस्कर ने अपने 200 रन पूरे किए। 12 ओवर बाकी थे तो स्कोर 366-1 था और जीत के लिए 76 रन चाहिए थे। इसके बावजूद टेस्ट न जीते तो कौन जिम्मेदार था?

तभी वेंगसरकर ने एडमंड्स की गेंद पर सीधे बॉथम को कैच दे दिया। उससे भी बड़ी गलती वेंकट ने की और फिजूल में बैटिंग आर्डर बदल दिया। बैटिंग के लिए आना था गुंडप्पा विश्वनाथ को -भारत के एक और टॉप बल्लेबाज। विश्वनाथ और गावस्कर दोनों ने तब 100 बनाए थे जब भारत ने तीन साल पहले कैरेबियन में 403 रन को चेज किया था- वह तब टेस्ट इतिहास का दूसरा सबसे बड़ा लक्ष्य था।

और भी बड़ा तमाशा ये कि वेंकट के पास इस समय बैटिंग को टॉप गियर में डालने की कोई स्ट्रेटजी नहीं थी। विश्वास कीजिए- तब ड्रेसिंग रूम में एक-दो नहीं, 5 खिलाड़ी बल्लेबाजी के लिए पैड बांधकर बैठे हुए थे। किसी को नहीं मालूम था कि अगला विकेट गिरा तो कौन जाएगा? किस तरह से ये अपने आप को चुनौती के लिए तैयार कर रहे होंगे?
 
विशी के बजाय, युवा कपिल देव (जो तब टेस्ट क्रिकेट में अपना पहला पूरा सीजन खेल रहे थे) को भेज दिया- नतीजा 5 गेंद में 0 पर आउट। तब भी वेंकट ने विशी को रोक लिया- यशपाल शर्मा आ गए। तब तक, चालाक माइक ब्रेयरली ने महसूस कर लिया था कि टीम इंडिया का थिंक टैंक 'ब्लैंक' हो चुका है। बाद में उन्होंने द आर्ट ऑफ़ कैप्टेंसी में ये माना भी और लिखा- 'मुझे लगता है वेंकट का बैटिंग आर्डर बदलना एक ब्लंडर था।'

वे इयान बॉथम को वापस अटैक पर ले आए। अब 8 ओवर में 49 रन चाहिए थे। यहीं सुनील गावस्कर भी क्रिकेट की परंपरा को तोड़ कर एक बहुत बड़ी गलती कर गए। गावस्कर ने पीने के लिए पानी मंगाया। खेल रुक गया। कहते हैं सेट बल्लेबाज, बिना कुछ बदले खेलते रहते हैं।  

बॉथम का इस स्पैल में पहला ओवर- गावस्कर, की एक पल के लिए एकाग्रता हटी और मिड-ऑन पर डेविड गॉवर के लिए कैच। उनके 221 रन 8 घंटे और 10 मिनट में 443 गेंद पर बने।यही टर्निंग पॉइंट था।  

विश्वनाथ आखिर में 389-5 के स्कोर पर आए- 11 गेंद में 15 रन बनाकर चेज को फिर शुरू कर दिया पर कैच दे दिया। फिर बॉथम ने यजुर्वेन्द्र और यशपाल को लगातार ओवर में आउट किया। बॉथम के इस स्पैल में 4 ओवर ने उन्हें 3 विकेट दिलाए थे। वेंकट ने तब अपना आख़िरी गलत दांव खेला- करसन घावरीको रोक कर खुद बैटिंग के लिए आ गए। जल्दी ही रन आउट हुए और अब भारत हार के कगार पर था।  

मैच का आखिरी ओवर- विकेटकीपर भरत रेड्डी और घावरी क्रीज पर, जीत के लिए 15 रन चाहिए थे और दो विकेट बाकी थे। जब एक गेंद बची थी तो 9 रन की जरूरत थी- स्कोर 429-8 था। यहां दोनों कप्तान ड्रॉ के लिए राजी हो गए- ब्रेयरली के चेहरे पर सकून था और वेंकट गुस्से में। 

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इस ड्रा के साथ भारत ने सीरीज 0-1 से गंवा दी। जो वेंकट 'हीरो' बन सकते थे- वे इस टेस्ट के बाद कप्तानी गंवा बैठे और उनकी जगह गावस्कर ने ले ली।


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