1979 Oval Test: जब भी भारत के ओवल, इंग्लैंड में टेस्ट खेलने की बात होती है तो अतीत में झांकने पर सबसे पहले जो टेस्ट याद आता है वह है 1979 का इंग्लैंड-भारत टेस्ट। वह सीरीज का चौथा टेस्ट था और भारत सीरीज में 1-0 से पीछे था। ये वही टेस्ट है जिसमें जीत की 438 रन बनाने की बड़ी और लगभग असंभव चुनौती के बावजूद भारत एक समय जीत के कगार पर था। जब टेस्ट ड्रा के तौर पर खत्म हुआ तो शायद यही खुशी थी कि टेस्ट में हार बच गई। अगर भारत वो टेस्ट मैच जीत जाता तो इस फॉर्मेट के इतिहास की में लक्ष्य का पीछा करते हुए हासिल की गई सबसे बड़ी जीत होती (2023 तक भी)। जीत की उम्मीद को संभव सा बनाया था सुनील गावस्कर के मास्टर क्लास 221 ने जिन्हें सर लेन हटन ने भी ओवल में खेली, सबसे बेहतरीन पारी में से एक गिना। उनका साथ दिया चेतन चौहान (80- पार्टनरशिप 213 रन) और दिलीप वेंगसरकर (52) ने।
जब भी इस टेस्ट की बात होती है तो गावस्कर मास्टर क्लास का जिक्र करते हुए लिख दिया जाता है कि भारत अभाग्यशाली था कि टेस्ट न जीत सका। क्या महज यही बात है? एक तरफ गावस्कर अपनी बेहतरीन बल्लेबाजी से जीत को संभव बनाने की कोशिश में लगे थे तो दूसरी तरफ कुछ ऐसी बात हुई जिसने भारत के टेस्ट न जीत पाने में बराबर की भूमिका निभाई। यहां तक कि, आज जिन माइक ब्रेयरली को 'क्रिकेट पंडित' कहते हैं- वे भी अपनी किताब 'आर्ट ऑफ़ कैप्टेंसी' में इस टेस्ट का जिक्र करने पर मजबूर हुए। इस टेस्ट में खेली बेहतरीन क्रिकेट के बावजूद यही वह टेस्ट था जिसकी वजह से एस वेंकटराघवन की कप्तानी गई।
टेस्ट सीरीज के पहले टेस्ट में हार और उसके बाद दो ड्रा- तब ओवल टेस्ट खत्म कर घर लौटने के करीब थी टीम और इसीलिए खिलाड़ी बाद खुश थे। ये बड़ा लंबा टूर हो गया था- टेस्ट से पहले वर्ल्ड कप भी खेले थे। उस पर सुनील गावस्कर ने तो सीरीज ड्रा करने की उम्मीद से माहौल और खुशी वाला कर दिया था। अब सीधे टेस्ट पर चलते हैं :
इंग्लैंड 305 के जवाब में भारत 202 रन पर आउट। ज्योफ्रे बॉयकॉट (125) के शतक की बदौलत जब इंग्लैंड ने 334-8 पर पारी समाप्त घोषित की तो उन्हें यही लगा था कि टेस्ट उनकी गिरफ्त में है। इस भारतीय टीम से जीत के लिए 438 रन बनाने की उम्मीद किसी ने नहीं की थी हालांकि लगभग तीन साल पहले ही वेस्टइंडीज के विरुद्ध 400 से ज्यादा रन बनाकर टेस्ट जीते थे। ऐसे कमाल रोज-रोज देखने को नहीं मिलते।