अंशुमन गायकवाड़ (Anshuman Gaekwad) के निधन पर उनके बारे में बहुत कुछ लिखा गया- रन बनाने की टेलेंट, हिम्मत और बिना किसी डर, टीम के लिए खेलना उनकी सबसे बड़ी खूबी थे। 1982-83 में जालंधर में पाकिस्तान के विरुद्ध धीमे 201 रन के लिए मशहूर हुए तो 1975-76 में जमैका में बहते खून में घायल होकर भी 81 रन बनाए। इसे ही उनकी हिम्मत की सबसे बड़ी मिसाल गिनते हैं।
एक और भी मिसाल है जिसका कहीं जिक्र नहीं होता शायद इसलिए कि ये उनके करियर के शुरू के दिनों का किस्सा है और ये कोई इंटरनेशनल मैच नहीं था। सच ये है कि ये क्रिकेट के, हिम्मत के मामले में, सबसे अनोखे किस्से में से एक है। सब जानते हैं वे साहसी क्रिकेटर थे, बिना हेलमेट सबसे तेज गेंदबाजों को खेलना, सिर या शरीर पर गेंद लगने से न घबराना पर नजर कमजोर होने के बावजूद, मजबूरी में बिना चश्मा लगाए बल्लेबाजी- ऐसा शायद, उनके अलावा किसी ने न किया होगा।
1974-75 में, कोलकाता में ईडन गार्डन्स में वेस्टइंडीज के विरुद्ध टेस्ट डेब्यू के बाद बहुत जल्दी अपनी हिम्मत और पिच पर टिकने की खूबी के साथ पहचान बनाई। उनकी इसी बल्लेबाजी ने आगे के बल्लेबाज का काम आसान कर दिया। ये किस्सा है 1979 के इंग्लैंड टूर का। ये भारत की क्रिकेट के लिए बड़ा ख़ास साल था क्योंकि न सिर्फ इंग्लैंड में दूसरे वर्ल्ड कप में खेले- एक 4 टेस्ट की सीरीज भी खेले। पहले वर्ल्ड कप के मैच हुए जिसमें भारत के हाथ निराशा ही लगी। उसके बाद सीरीज शुरू हुई जिसमें 16 फर्स्ट क्लास मैच में सिर्फ 1 में जीत मिली- इसकी तुलना में 3 हार और 12 ड्रॉ रहे। 4 टेस्ट की सीरीज इंग्लैंड ने 1-0 से जीती।