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इंग्लैंड का वो क्रिकेटर जो 3 'मौत' के बाद भी टेस्ट मैच खेला  

जिम्बाब्वे के क्रिकेट स्टार हीथ स्ट्रीक के बारे में, सोशल मीडिया पर ये खबर आग की तरह फैली कि उनकी मौत हो गई है। क्रिकेट जगत सदमे में था। खबर पर विश्वास करने की सबसे बड़ी वजह ये थी कि

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 England Cricketer Harry Lee The man who played a Test 15 years after his memorial
England Cricketer Harry Lee The man who played a Test 15 years after his memorial (Image Source: Google)
Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti
Sep 18, 2023 • 05:39 PM

जिम्बाब्वे के क्रिकेट स्टार हीथ स्ट्रीक के बारे में, सोशल मीडिया पर ये खबर आग की तरह फैली कि उनकी मौत हो गई है। क्रिकेट जगत सदमे में था। खबर पर विश्वास करने की सबसे बड़ी वजह ये थी कि खबर स्ट्रीक के साथ खेले और दोस्त हेनरी ओलोंगा ने दी थी। नतीजा- 49 साल के स्ट्रीक की कैंसर से मौत पर उनके प्रति श्रद्धांजलि के संदेश वायरल होने लगे। बहुत जल्दी, खुद स्ट्रीक को ही ये बताना पड़ा कि उनकी मौत की खबर महज अफवाह है और झूठ है। 

Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti
September 18, 2023 • 05:39 PM

वैसे हीथ स्ट्रीक ऐसे पहले क्रिकेटर नहीं जिसने 'अपनी मौत की खबर' को सुना या 'अपने लिए श्रद्धांजलि' को पढ़ा। ऐसे क्रिकेटरों के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने मौत को धोखा दिया। कुछ तो ऐसे अभाग्यशाली क्रिकेटर हैं जिन्होंने एक से भी ज्यादा मौके पर अपने निधन की खबर को पढ़ा। आम तौर पर ऐसी खबर में उन क्रिकेट से रिटायर हो चुके क्रिकेटरों का ही नाम आया जो बड़ी उम्र की तरफ जा रहे थे। इस संदर्भ एक क्रिकेटर का किस्सा तो बड़ा ही अनोखा है- एक या दो बार नहीं, उसने तो तीन बार मौत को धोखा दिया और मजे की बात ये है कि 'मरने के बाद' टेस्ट मैच खेला। अगर कोई कहानीकार, अपनी कल्पना की उड़ान से कहानी लिखे तो भी ऐसा प्लॉट नहीं बना पाएगा। 

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इस क्रिकेटर का नाम है- हैरी ली के नाम से मशहूर हेनरी विलियम ली (Henry William Lee) और ये किस्सा है पहले वर्ल्ड वॉर के सालों का। कई क्रिकेटर मरे इस वॉर में। हैरी ली ऑलराउंडर थे- 1906 में 15 साल की उम्र में एमसीसी ग्राउंड स्टाफ में शामिल हुए और 1911 में मिडलसेक्स के लिए डेब्यू किया। बड़े मजेदार किस्म के इंसान थे और कुछ न कुछ अजीब करते ही रहते थे। वॉर के दौरान आर्मी में शामिल हो गए और ड्यूटी पर भेज दिए गए फ्रांस। वहां, ऑबर्स रिज की मशहूर लड़ाई 9 मई, 1915 को शुरू हुई जर्मनी और ब्रिटेन के बीच। ब्रिटेन की 13वीं बटालियन को उसमें बड़ा झटका लगा- उनके 550 में से 499 सैनिक मारे गए और इन्हीं में से एक हैरी ली थे।  

उनके परिवार को, पहले तो उनके लापता होने और बाद में मौत की खबर दी गई। नतीजा- परिवार ने उनकी मेमोरियल सर्विस भी आयोजित कर ली- सभी ने आख़िरी बार याद किया। वे कहां मरे थे- जब ये सब हो रहा था तो वे मौत से लड़ रहे थे। असल में हुआ ये कि घायल और बेहोश हालत में तीन दिनों तक 'नो-मैन्स लैंड' में पड़े रहे- एक गोली से बांई जांघ की हड्डी टूट गई थी और गैंग्रीन की हालत थी। वहां हाथ लगे जर्मनों के जिन्होंने, उन्हें एक जानवरों की ट्रेन में वैलेंसिएन्स भेज दिया। लिली में फ्रेंच रेड क्रॉस के हवाले किए गए। तब तक किसी ने कोई इलाज नहीं किया और दर्द से चीखते थे। 6 हफ्ते के दर्दनाक सफर के बाद हनोवर में जर्मन रेड क्रॉस के हवाले किए गए और उन्होंने, उनकी मरने वाली हालत देखकर अक्टूबर 1915 में वापस ब्रिटेन भेज दिया। 

वहां इलाज मिला पर तब तक चोट बिगड़ गई थी और सर्जरी में एक टांग की लंबाई, दूसरी से कम हो गई। आर्मी की एक्शन ड्यूटी से छुट्टी हो गई और डाक्टरों ने साफ़ कह दिया- अब कभी क्रिकेट नहीं खेल पाएंगे। उन्हें सिल्वर वॉर बैज, 1914-15 स्टार, ब्रिटिश वॉर मेडल और विक्ट्री मेडल से सम्मानित किया गया।

अब सेना ने उन्हें अपने रेवेन्यू ऑफिस में क्लर्क बना दिया। वहां समय मिला तो फिर से क्रिकेट खेलने लगे- एमसीसी के लिए कुछ खेले और अगले साल लांसिंग कॉलेज के विरुद्ध आर्मी सर्विस कोर के लिए 100 भी बनाया। 1917 तक अच्छा क्रिकेट खेल रहे थे।

हैरी ली के दोस्त थे इंग्लैंड के मशहूर क्रिकेटर फ्रैंक टैरेंट। वे एक कॉन्ट्रैक्ट पर 1917 में, कलकत्ता गए कोच के तौर पर तो जोर दे कर, हैरी ली को भी कलकत्ता बुला लिया। हैरी ली को प्लाईमथ से न्यान्ज़ा (Nyanza) नाम की शिप से बंबई जाना था। वे इसके बजाय, नागोया ( Nagoya) नाम की शिप में सवार हो गए क्योंकि उस से सीधे कलकत्ता पहुंचते। किस्मत देखिए कि रवाना होने के लगभग 32 किमी बाद ही, न्यान्ज़ा पर टॉरपीडो से हमला हुआ जिसमें 49 यात्रियों की मौत हो गई। ये था हैरी ली का दूसरी बार मौत से बचना। उधर जिस नागोया से सफर कर रहे थे, उस पर भी रास्ते में हमला किया गया जिसमें कई जान गईं पर वे बच गए। ये था तीसरी बार मौत से बचना।  

तीन बार मौत को धोखा देने के बाद, हैरी ली ने अपने बचे हुए क्रिकेट करियर का भरपूर मजा लिया। भारत में, हैरी ली फुटबॉल और क्रिकेट कोच बने और कूच बेहार के महाराजा के लिए काम किया। भारत में वे खेले भी। ये एक अलग स्टोरी है पर इसमें सबसे ख़ास बात ये है कि भारत में खेल कर ही वे फर्स्ट क्लास क्रिकेट में वापस लौटे। इस तरह उनके क्रिकेट करियर को लाइफ लाइन मिली। लगभग 43 साल की उम्र तक खेले। फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 20,000 से ज्यादा रन और 401 विकेट- मिडलसेक्स ने उनके साथ ही 1920 में काउंटी चैंपियनशिप टाइटल जीता।  

1920 के दशक के आखिर तक दक्षिण अफ्रीका चले गए कोच बन कर। 1930-31 में जब पर्सी चैपमैन की एमसीसी टीम दक्षिण अफ्रीका टूर पर थी तो कई खिलाड़ी चोटिल हुए और जल्दी से इंग्लैंड से किसी को भी बुलाना संभव नहीं था। ऐसे में एमसीसी ने उन्हें बुला लिया और वे टूर मैचों में खेलने लगे। इंग्लैंड सीरीज में 3 टेस्ट के बाद 0-1 से पीछे था और तब हैरी ली को जोहान्सबर्ग में टेस्ट कैप मिली और उनके रिकॉर्ड में टेस्ट खेलना भी आ गया- 18 और 1 के स्कोर बनाए। अभी उनके जीवन में उठा-पटक का किस्सा ख़त्म कहां 
हुआ?  

अभी वे अपना पहला टेस्ट खेले ही थे कि एमसीसी को उस ग्राहमस्टाउन कॉलेज (Grahamstown College) से शिकायत की एक चिट्ठी मिली, जिनके साथ हैरी ली का कोचिंग कॉन्ट्रैक्ट था। कॉलेज ने आरोप लगाया कि हैरी ली, कोचिंग कॉन्ट्रैक्ट की शर्त के मुताबिक़, बिना एनओसी खेल नहीं सकते थे। हैरी ली ने एमसीसी से कहा था कि कॉलेज की इजाजत से ही खेल रहे हैं। इसलिए एमसीसी ने इस बात को पकड़ लिया और हैरी ली से कहा गया कि अपनी गलती की माफी मांगें। हैरी ली की जिद्द थी कि कोई गलती ही नहीं की तो माफी किस बात की? नतीजा- एमसीसी ने उन्हें जो ऑफिशियल इंग्लैंड कैप और ब्लेज़र दिए थे, वे वापस ले लिए। तब भी टेस्ट के रिकॉर्ड में तो उनका नाम रहा ही। सर जैक हॉब्स को बहरहाल उन पर तरस आया और टूर की याद के तौर पर उन्हें अपने पास से टूर टाई दी।

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हैरी ली लगभग 90 साल तक जीवित रहे। तीन 'मौत' के बाद टेस्ट खेलने का ये अनोखा किस्सा है।

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