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इंग्लैंड से निकलकर कैसे 1987 वर्ल्ड कप की मेजबानी भारत को मिली, 1983 फाइनल की इस घटना से हुई थी शुरूआत

वर्ल्ड कप 2023 यानि कि भारत चौथी बार मेजबान। इससे पहले 1987, 1996 और 2011 में वर्ल्ड कप के मेजबान थे। पिछले तीनों मौके पर, पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देश साथ थे। चार बार वर्ल्ड कप का भारतीय

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 How India Pakistan ended up hosting the 1987 World Cup Cricket?
How India Pakistan ended up hosting the 1987 World Cup Cricket? (Image Source: Google)
Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti
Sep 20, 2023 • 12:01 PM

वर्ल्ड कप 2023 यानि कि भारत चौथी बार मेजबान। इससे पहले 1987, 1996 और 2011 में वर्ल्ड कप के मेजबान थे। पिछले तीनों मौके पर, पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देश साथ थे। चार बार वर्ल्ड कप का भारतीय उपमहाद्वीप में आयोजन किसी आश्चर्य से कम नहीं- ख़ास तौर पर तब जबकि तय तो ये था कि वर्ल्ड कप हमेशा इंग्लैंड में खेलेंगे। इसलिए वर्ल्ड कप का आयोजन इंग्लैंड से बाहर निकालना अपने आप में किसी इतिहास से कम नहीं। कैसे कर दिखाया था ये?

Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti
September 20, 2023 • 12:01 PM

1983- उस साल वह हुआ जिसके बारे में सोचा भी नहीं था। लॉर्ड्स में वर्ल्ड कप फाइनल में वेस्टइंडीज के सामने वह टीम इंडिया जिसे पिछले दोनों वर्ल्ड कप में खेली क्रिकेट देखकर इस तरह की क्रिकेट के लिए 'अनाड़ी' कहा था। उस जीत की जो स्टोरी हैं उनमें से एक ख़ास ये कि भारतीय क्रिकेट बोर्ड चीफ एनकेपी साल्वे (वे सांसद थे उस समय) ने 25 जून के फाइनल से पहले, दो और पास मांगे- उन्हें ये पास न तो इंग्लिश बोर्ड और न ही आईसीसी ने दिए। तब जो हुआ उसी ने क्रिकेट को बदला>

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उस एक घटना पर साल्वे ने तय कर लिया था कि जिस वर्ल्ड कप पर इंग्लैंड वाले इतना अकड़ रहे हैं- वही उनसे छीन लेना है। तब तक सोच ये थी कि इंग्लैंड से बाहर वर्ल्ड कप नहीं हो सकता। वे जानते थे कि जब तक एशिया के और क्रिकेट देश साथ नहीं होंगे- ये संभव नहीं। भारत ने वर्ल्ड कप जीता 25 जून को और उसी दिन साल्वे ने स्कीम पर काम शुरू कर दिया था। 26 जून- उनके बहनोई ने टीम के सम्मान में जो लंच दिया उसमें पाकिस्तान क्रिकेट के चीफ एयर मार्शल नूर खान भी मेहमान थे। वहीं नूर खान को तैयार किया कि मिलकर वर्ल्ड कप इंग्लैंड से छीनेंगे। 

अब और एशियाई देशों का साथ जरूरी था और इन दोनों की कोशिश से ये इस मुहिम में जुड़ते चले गए। सबसे ख़ास था एशिया के तीसरे टेस्ट देश श्रीलंका का साथ- तब के बोर्ड चीफ गामिनी दसनायके भी तैयार हो गए, इस शर्त पर कि श्रीलंका कोई खर्चा नहीं करेगा। समीकरण ये था कि आईसीसी में कुल वोट थे 37 और इनमें से 8 टेस्ट देशों के दो-दो और 21 एसोसिएट्स सदस्य देशों का एक-एक वोट। वोट जुटाने के 'एकता' में पहले तो बनी एशियन क्रिकेट काउंसिल, फिर  शुरू हुआ एशिया कप और अब बारी थी वर्ल्ड कप की। 

1983 में लाहौर और दिल्ली की जिन मीटिंग में एशिया कप पर चर्चा कर रहे थे तो साथ ही साथ वर्ल्ड कप के लिए भी तैयारी चल रही थी। लाहौर मीटिंग के बाद, जगमोहन डालमिया ने वर्ल्ड कप को इंग्लैंड से बाहर निकालने के लिए एक बुनियादी स्कीम बना ली थी। जैसे ही इसकी खबर लीक हुई- लंदन में हंगामा हो गया। बड़ी आलोचना हुई, क्रिकेट को बांटने का आरोप लगा, स्कीम में गलतियां निकालीं और जब चर्चा हुई तो बिना देरी उसे नामंजूर कर दिया। सबसे बड़ी दलील थी कि दिन लंबा न होने से भारतीय उपमहाद्वीप में 60 ओवर वाले मैच नहीं हो सकते। एशियाई देश पहला राउंड इस दलील पर जीते कि ये जरूरी नहीं कि मैच 60 ओवर का हो। तब तक 50 ओवर के मैच शुरू हो चुके थे। ऐसे में वर्ल्ड कप में भी तो 50 ओवर वाले मैच हो सकते हैं।  

इंग्लैंड का विरोध तब भी जारी रहा। यहां से शुरू हुआ 'राजनीति' और 'कूटनीति' का खेल। सबसे पहले तोड़ा ऑस्ट्रेलिया को- उन्हें  वायदा किया कि अब वे साथ दें तो 1992 का वर्ल्ड कप ऑस्ट्रेलिया को दिलाने में उनका साथ दिया जाएगा। इस पर वे नर्म पड़ गए पर ऑस्ट्रेलिया की शर्त थी कि अगर वोटिंग हुई तो वे इंग्लैंड के विरुद्ध वोट नहीं देंगे।

इसलिए वोटिंग में स्थिति भी अभी कमजोर ही रह गई। यहां पहचाना एसोसिएट सदस्य देशों के एक-एक वोट की कीमत को। उन्हें 'लॉलीपॉप ' दी पैसे की। तब क्रिकेट में सिस्टम था गारंटी मनी का- खेलने आओ तो तय रकम मिलती थी। इंग्लैंड वाले इन सदस्य देशों को गारंटी मनी में सिर्फ 3-4 हजार पौंड दे रहे थे। भारत ने वायदा किया वर्ल्ड कप के मुनाफे में से हर एक को 20,000 पाउंड की गारंटी का। इन देशों में क्रिकेट को बढ़ावा देने के लिए ये रकम बहुत जरूरी और बहुत बड़ी थी। और तो और अब, हर टेस्ट देश के लिए भी गारंटी मनी बढ़ाना जरूरी हो गया था- ये कर दी 75,000 पौंड। हर टीम को ये भी कहा कि वर्ल्ड कप में हिस्सा लेने का पूरा खर्चा भी मिलेगा। ये सब ऑफर तो कर दिया पर एनकेपी साल्वे ने भी माना कि वे नहीं जानते थे कि इस पैसे का इंतजाम कहां से और कैसे होगा?

वोटिंग हुई और विश्व कप एशिया में आ गया। भारत मुख्य मेजबान- फाइनल भारत को मिला। साथ में पाकिस्तान था। मजे की बात ये है कि दोनों देश की सरकार ने तब पूरा सपोर्ट किया और 1987 में वर्ल्ड कप की ऐसी मेजबानी की कि सभी ने तारीफ़ की। दो देश में एक टूर्नामेंट खेलने का ये अनोखा प्रयोग था और सब इंतजाम बिना दिक्कत हुआ।    

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सिर्फ 1987 का वर्ल्ड कप इंग्लैंड से बाहर नहीं आया- आईसीसी में पावर का समीकरण बदल गया और वर्ल्ड कप की मेजबानी के लिए रोटेशन का सिलसिला शुरू हुआ। इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया का वीटो अधिकार भी चला गया। 
 

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