'मियां कप्तान बनोगे', जानें राज सिंह डूंगरपुर ने कैसे बनाया था मोहम्मद अजहरुद्दीन को टीम इंडिया का कप्तान
भारत की टीम को न्यूजीलैंड में 18 नवंबर से शुरू सीरीज में 3 टी20 और 3 वनडे इंटरनेशनल खेलने हैं। कई सीनियर को सेलेक्टर्स ने 'रेस्ट' दिया है और हार्दिक पांड्या कप्तान हैं युवा टीम के। न्यूजीलैंड टूर, कई सीनियर
भारत की टीम को न्यूजीलैंड में 18 नवंबर से शुरू सीरीज में 3 टी20 और 3 वनडे इंटरनेशनल खेलने हैं। कई सीनियर को सेलेक्टर्स ने 'रेस्ट' दिया है और हार्दिक पांड्या कप्तान हैं युवा टीम के। न्यूजीलैंड टूर, कई सीनियर टीम में नहीं, युवा टीम और नया कप्तान- क्या ये सब बातें किसी और सीरीज की याद दिलाती हैं? जी हां- भारत के 1989-90 के न्यूजीलैंड टूर की। क्या हुआ तब?
1989-90 में पाकिस्तान गई थी टीम और कप्तान थे कृष्णमाचारी श्रीकांत। भले ही टीम ने 4 में से कोई टेस्ट नहीं जीता पर पाकिस्तान में सीरीज में कोई टेस्ट न हारना, कोई साधारण उपलब्धि नहीं था। इनाम- नेशनल सेलेक्शन कमेटी के, उस समय के चेयरमैन, राज सिंह डूंगरपुर ने दिलीप वेंगसरकर, कृष्णमाचारी श्रीकांत और रवि शास्त्री को अगले टूर (न्यूजीलैंड) के लिए टीम से निकाल दिया। ये किस्सा भारत के क्रिकेट इतिहास में खूब चर्चा में रहता है कि टीम के लिए नए कप्तान की तलाश करते हुए वे मोहम्मद अजहरुद्दीन के पास गए और उनसे पूछा- 'मियां, कप्तान बनोगे?'
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अजहरुद्दीन को उस समय कप्तान बनाना न सिर्फ आश्चर्यजनक, लगभग वैसा ही फैसला था जो 1971 में सेलेक्शन कमेटी के चेयरमैन विजय मर्चेंट ने लिया था- अजीत वाडेकर को कप्तान बनाकर। सेलेक्शन कमेटी के चेयरमैन के तौर पर विजय मर्चेंट और राज सिंह डूंगरपुर- दोनों ही इतनी प्रभावशाली शख्सियत थे कि वास्तव में सेलेक्शन कमेटी को 'वन मैन कमेटी' बना दिया था। हटाए गए तीन क्रिकेटर अशांति फैला रहे थे, दबी आवाज में बोल रहे थे- राज सिंह पर इसका कोई असर नहीं हुआ और एक नए युवा कप्तान के साथ उन्होंने भारतीय क्रिकेट में एक नया युग शुरू किया। राज सिंह के साथ तब आकाश लाल, रमेश सक्सेना, गुंडप्पा विश्वनाथ और नरेन तम्हाने सेलेक्टर थे। इनमें से तीन टेस्ट क्रिकेटर थे- तब भी गैर टेस्ट क्रिकेटर राज सिंह कमेटी के चेयरमैन थे।
सच ये है कि अजहरुद्दीन को कप्तान बनाने के पीछे का किस्सा भारतीय क्रिकेट इतिहास के उन संदर्भ में से एक है जिसकी सच्चाई पूरी तरह मालूम ही नहीं। ये महज- मियां, कप्तान बनोगे कहने का किस्सा नहीं है।
भले ही श्रीकांत की कप्तानी में पाकिस्तान में सीरीज के चारों टेस्ट ड्रा रहे पर राज सिंह डूंगरपुर उनकी कप्तानी से कतई प्रभावित नहीं थे। उस पर श्रीकांत खुद बैट के साथ फ्लॉप रहे- 4 टेस्ट की 7 पारी में सिर्फ 97 रन 13.85 औसत से और टीम के बल्लेबाजों में सबसे ख़राब रिकॉर्ड उनका था। 3 वनडे की 2 पारी में श्रीकांत ने 48 रन बनाए। उस पर उम्र भी बढ़ रही थी- इसलिए राज सिंह मन ही मन ये तय कर चुके थे कि इस फार्म पर श्रीकांत के लिए टीम इंडिया में कोई जगह नहीं। इसका मतलब था कप्तान भी नया चाहिए।
इस सोच के पीछे की एक और वजह थी टीम से 'बागी' माहौल बदलना- वह जो खिलाड़ियों ने, वेस्टइंडीज के पिछले टूर से लौटते हुए दिखाया था। बोर्ड के मना करने के बावजूद, पैसा कमाने के चक्कर में कई खिलाड़ी अमेरिका चले गए थे क्रिकेट खेलने। इस पर जब बोर्ड ने सजा दी तो खिलाड़ी कोर्ट चले गए। खैर वह एक अलग किस्सा है। तब तक अज़हर की छवि ऐसे क्रिकेटर की थी जिसका ध्यान सिर्फ क्रिकेट पर था। उस समय की एक रिपोर्ट में लिखा है- वे बागी क्रिकेटर नहीं थे। इसलिए राज सिंह ने मन ही मन तय कर लिया कि अज़हर को अगला कप्तान बनाएंगे।
दलीप ट्रॉफी सेमी फाइनल था बंगलौर में। पूरी सेलेक्शन कमेटी मौजूद थी वहां। तब पहली बार राज सिंह ने अज़हर को अगला कप्तान बनाने का जिक्र किया। जवाब में अज़हर को दब्बू, शर्मीला और बिना जोश वाला तो कह दिया पर इतनी हिम्मत किसी और सेलेक्टर ने नहीं दिखाई कि कप्तान बनने के लिए किसी और का नाम सुझा दें। सन्नाटा तोड़ने के राज सिंह ने बाउंसर फेंका और बोले- 'अज़हर पसंद नहीं आ रहा। किसी और का नाम आप लोग ले नहीं रहे तो ऐसा करते हैं कि टीम को बिना कप्तान न्यूजीलैंड भेज देते हैं और बेदी (वे टूर के लिए क्रिकेट मैनेजर थे) को कह देते हैं कि ये ड्यूटी भी निभा लो।' सेलेक्टर्स सकते में आ गए और एक मिनट भी नहीं लगा और सभी का वोट अज़हर के लिए हो गया।
तब बोर्ड अध्यक्ष बीएन दत्त थे- कप्तान घोषित करने से पहले, सिस्टम के अनुसार उनकी मंजूरी जरूरी थी। जब उन्हें, फोन पर, अज़हर को कप्तान बनाने के बारे में बताया गया तो वे भी हैरान थे पर कुछ बोले नहीं। सिर्फ इतना पूछा- 'क्या और किसी का नाम भी चर्चा में आया?' जब पता लगा कि अज़हर सभी की पसंद हैं तो बड़े हैरान हुए थे।
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इस सब के बाद ही राज सिंह डूंगरपुर ने अज़हरुद्दीन से पूछा था- 'मियां कप्तान बनोगे?'