तेंदुलकर के 141* और विराट कोहली की वर्ल्ड कप जीत वाले ग्राउंड में कमर्शियल बिल्डिंग बनाने का प्रोजेक्ट तैयार
भारतीय क्रिकेट की इन दो ख़ास उपलब्धियों में एक समानता है- किनरा ओवल, कुआलालंपुर, मलेशिया। सिर्फ इन दो उपलब्धियों के लिए नहीं, बहुत कुछ और भी ऐसा है- जिससे ये ग्राउंड भारतीय क्रिकेट से जुड़ता है।
* 2006 में वेस्टइंडीज के विरुद्ध 141* को सचिन तेंदुलकर की सबसे बेहतरीन वन डे सेंचुरी में से एक गिना जाता है।
* 2008 के अंडर-19 वर्ल्ड कप को भारत ने जीता और टीम के कप्तान विराट कोहली को पूरी क्रिकेट की दुनिया ने नोट किया।
भारतीय क्रिकेट की इन दो ख़ास उपलब्धियों में एक समानता है- किनरा ओवल, कुआलालंपुर, मलेशिया। सिर्फ इन दो उपलब्धियों के लिए नहीं, बहुत कुछ और भी ऐसा है- जिससे ये ग्राउंड भारतीय क्रिकेट से जुड़ता है। साथ में ये भी सच है कि उस नई 'दोस्ती' के बाद बीसीसीआई ने इस ग्राउंड को भुला दिया और इसका जिक्र सिर्फ रिकॉर्ड बन गया। अब यही हकीकत है और 30 जून के बाद इस ग्राउंड में क्रिकेट के निशान मिटाने की शुरुआत हो जाएगी- कभी लगेगा ही नहीं कि यहां क्रिकेट खेलते थे।
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सीधी सी बात है। ग्राउंड मलेशिया क्रिकेट के पास था लीज पर। ग्राउंड पेरुमहान किनरारा बरहाद (PKB) का और 2018 में लीज ख़त्म होने के बाद मलेशिया क्रिकेट के पास इतना पैसा नहीं था कि इस जमीन पर बाजार की कीमत के हिसाब से लीज देते। मालिक जमीन वापस पाने के लिए कोर्ट तक चले गए। 2019 में सरकार ने ग्राउंड को बचाया और दो साल की मोहलत दिला दी। हालात नहीं बदले तो फिर से कोर्ट गए जहां क्रिकेट की हार हुई। 30 जून को मलेशिया क्रिकेट, इस ग्राउंड की जमीन, इसके मालिकों के हवाले कर देगी। इसी के साथ यहां से जुड़ी क्रिकेट की यादें इतिहास होकर रह जाएंगी। इस महंगी जमीन पर आने वाले सालों में कमर्शियल बिल्डिंग बनाने का प्रोजेक्ट तैयार है।
आप आज विश्वास भी नहीं करेंगे कि कभी बीसीसीआई ने इस ग्राउंड को 'अपना' कहा था- यहां वन डे इंटरनेशनल क्रिकेट लाए और ग्राउंड पर बेतहाशा पैसा खर्च कर इसे इंटरनेशनल क्रिकेट योग्य बनाया। इसके बाद अगर बीसीसीआई ने इस ग्राउंड को भुलाया न होता तो शायद 30 जून जैसा दिन भी न आता। ये ग्राउंड बीसीसीआई के उस बड़े खर्चे के नुक्सान को हमेशा याद कराएगा।
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इतना ही नहीं, संयोग से जब बीसीसीआई में बड़ी कीमत पर आईपीएल मीडिया अधिकार बेचने का जश्न मनाया जा रहा है तो विश्वास कीजिए कि इसी ग्राउंड से बीसीसीआई ने क्रिकेट को 'टेलीविजन पर देखा जाने वाला प्रॉडक्ट' बनाकर बेचने का प्रयोग शुरू किया था और उसी से आज के दिन तक पहुंचे। इस ब्यौरे में लिखी हर लाइन के पीछे कोई न कोई स्टोरी है- अब सब इतिहास है।
मलेशिया के कुआलालंपुर में क्रिकेट स्टेडियम- किनरा ओवल। 2003 में लीज पर मिली जमीन पर बना। बीसीसीआई में उन सालों में 'ऑफ शोर क्रिकेट' की बड़ी चर्चा थी- इसीलिए शारजाह, सिंगापुर और टोरंटो में भी खेले। इनमें से मलेशिया क्रिकेट की हालत सबसे पतली थी- इसीलिए बीसीसीआई ने इस ग्राउंड को, आसानी से, पैसे की बदौलत 'अपना' बना लिया। जिन शर्तों पर बीसीसीआई ने यहां भारत, ऑस्ट्रेलिया और वेस्ट इंडीज के बीच वन डे मैचों का टूर्नामेंट आयोजित किया वह अनोखी थीं। उस समय की दो टॉप टीम ऑस्ट्रेलिया और वेस्ट इंडीज को प्रति मैच 1 करोड़ रुपये की एपीयरेंस फीस बीसीसीआई ने दी थी
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मैच भारत में टेलीविजन के प्राइम टाइम पर देखे जा सकें- इसलिए उन्हें फ्लड लाइट्स में खेलना जरूरी था। ऐसे में बीसीसीआई ने तब 4 मिलियन डॉलर खर्चे यहां फ्लड लाइट्स लगवाने के लिए। ग्राउंड और पिच एक्सपर्ट बुलाए। और भी बहुत कुछ मशीनरी और सामान जुटाया क्रिकेट के लिए वहां- ये सब टावर और मशीनरी कुछ दिन पहले उस नीलामी में 'सामान के ढेर' में थे जो ग्राउंड पर हुई- सामान बेचकर पैसा इकट्ठा करने के लिए ताकि कोर्ट के आदेश के हिसाब से ग्राउंड छोड़ने से पहले मालिकों को लीज का पूरा बकाया दे सकें। ये सब बीसीसीआई ने मलेशिया के गिनती भर क्रिकेट के शौकीनों के लिए नहीं किया था- बाहर के बाजार में क्रिकेट को टेलीविजन के लिए बेचने का प्रयोग था ये। जो पैसा बीसीसीआई उन सालों में भारत के शहरों के स्टेडियम की हालत सुधारने पर नहीं खर्च करती था- वहां खर्च कर दिया। ये चूंकि एक नाकामयाब और जबरदस्त घाटे वाला प्रयोग था- इसलिए अपनी आदत के मुताबिक़ बीसीसीआई ने कभी इसका जिक्र तक नहीं किया।
रिकॉर्ड के लिए- 2006 में जो वन डे ट्रायंगुलर यहां खेला उसका नाम डीएलएफ कप था। टीम इंडिया ने भी बीसीसीआई का साथ नहीं दिया- कप जीतना तो दूर, फाइनल में भी नहीं पहुंचे। ऑस्ट्रेलिया ने फाइनल में वेस्टइंडीज को 127 रनों से हराकर कप जीता- टूर्नामेंट में अपने 5 मैचों में से 3 में जीत हासिल की थी। ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज ब्रेट ली को बेहतरीन गेंदबाजी के लिए प्लेयर ऑफ द सीरीज घोषित किया। सभी मैच 12 से 24 सितंबर 2006 के बीच खेले गए थे।