टीम इंडिया का वो क्रिकेटर जिसने टेस्ट क्रिकेट खेलने की उम्मीद में ओलंपिक गोल्ड को छोड़ा, भारत के लिए क्रिकेट औऱ हॉकी दोनों खेले
ऐसा नहीं कि ओलंपिक में क्रिकेट की चर्चा नहीं होती। कई खिलाड़ी न सिर्फ क्रिकेट के साथ, अपने देश के लिए किसी और खेल में भी खेले- ओलंपिक में भी हिस्सा लिया। जब भी...
अब आया 1936 का साल। सबसे पहले क्रिकेट के इंग्लैंड टूर की टीम में चयन हुआ और लगभग उसी दौरान ओलंपिक की तैयारी के नेशनल कैंप (कई जगह इसे टीम चयन के लिए ट्रायल्स भी लिखा है) के लिए भी चुन लिया। कई जगह ये गलत लिखा है कि उन्हें ओलंपिक की टीम में चुन लिया था और तब उन्होंने क्रिकेट टूर को चुना। सच ये है कि उन्होंने क्रिकेट टूर को चुना और वे इसीलिए उस नेशनल कैंप में भी नहीं गए। भारत की एक मशहूर खेल पत्रिका 'स्पोर्ट्स एंड पासटाइम (Sport and Pastime) में अपने एक आर्टिकल में गोपालन ने खुद ये बात लिखी। ।
उस समय की एक स्टोरी। तब भारत में एक बड़े बेहतरीन और होशियार खेल अधिकारी थे पंकज गुप्ता। क्रिकेट में कई जगह उन का जिक्र मिलता है पर वे दिल से भारत को खेलों में आगे बढ़ाने के ऐसे दीवाने थे कि हर खेल की मदद के लिए तैयार। उस दौर में महाराजा पटियाला न सिर्फ क्रिकेट, अन्य दूसरे खेलों की भी मदद करते थे। बर्लिन ओलंपिक की हॉकी टीम का खर्चा भी वे ही उठा रहे थे और उन्हीं के कहने पर कई महीने पहले से पंकज गुप्ता को क्रिकेट की ड्यूटी से हटा कर, हॉकी टीम के साथ जोड़ दिया था।
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वे चाहते थे कि भारत की नंबर 1 हॉकी टीम ओलंपिक में जाए और गोल्ड जीते क्योंकि उन दिनों में हिटलर को जवाब देने जैसे किस्से बड़ी चर्चा में थे। जब पंकज गुप्ता को ये पता चला कि गोपालन ने क्रिकेट टूर को चुन लिया है और हॉकी कैंप में भी नहीं आ रहे तो वे गोपालन को राजी करने खुद मद्रास गए। चूंकि पंकज गुप्ता क्रिकेट से भी जुड़े थे इसलिए उन्हें अंदाजा था कि क्रिकेट टीम में मोहम्मद निसार और अमर सिंह जैसे बेहतरीन गेंदबाजों की मौजूदगी के कारण गोपालन को टूर में खेलने के ज़्यादा मौके नहीं मिलेंगे (टेस्ट तो बिलकुल ही नहीं) और तब भी उम्मीद में, गोपालन ने क्रिकेट को चुन लिया था। पंकज गुप्ता ने गोपालन से कहा- 'गोपाला हमारे साथ बर्लिन चलो। वहां तुम्हें पक्का गोल्ड मेडल मिलेगा।' बस यहीं गोपालन का ओलंपिक कनेक्शन खत्म हो गया।
जो पंकज गुप्ता ने अंदाजा लगाया था वही हुआ- गोपालन सिर्फ कुछ ही टूर मैच खेले और टेस्ट तो एक भी नहीं। उधर भारतीय हॉकी टीम ने बर्लिन ओलंपिक में अपना दबदबा साबित किया और अपना लगातार तीसरा गोल्ड जीतकर लौटे। गोपालन का दुर्भाग्य देखिए- इस टूर के बाद कभी भारत की टीम में नहीं चुने गए और उन क्रिकेटर में से एक बन कर रह गए जिनका टेस्ट करियर सिर्फ एक टेस्ट का है। तमिलनाडु और श्रीलंका के बीच कई साल खेले गए सालाना मैच के लिए गोपालन ट्रॉफी उन्हीं के नाम पर है।
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उधर हॉकी के जादूगर के तौर पर मशहूर ध्यानचंद की बायोग्राफी 'गोल' में उनके बारे में लिखा है- 'मैंने पहले सोचा था कि हॉकी उनका दूसरा प्यार है और क्रिकेट पहला, पर ऐसा नहीं था।' और एक बड़ी मजेदार बात ध्यानचंद ने गोपालन की धार्मिक मान्यता के बारे में लिखी- 'जब टीम न्यूजीलैंड टूर से लौटी तो गोपालन कहते थे कि उनसे समुद्र पार करने का पाप हो गया है। इसलिए वे मद्रास में टीम से छुट्टी लेकर अकेले पवित्र जल में डुबकी लगाने रामेश्वरम गए और अगले दिन वापस टीम में मद्रास में शामिल हो गए।'