घुड़सवारी ओलंपिक का वह ऐसा रोमांचक खेल है, जिसमें न सिर्फ सवार और घोड़े की जुगलबंदी मिलकर प्रतिष्ठित पदक को सुनिश्चित करते हैं। घुड़सवार अपने घोड़े पर सवार होकर नियंत्रण, संतुलन और गति का प्रदर्शन करता है। शक्ति, कौशल और तालमेल पर आधारित इस खेल में जंपिंग, ड्रेसेज और इवेंटिंग जैसी विधाएं शामिल हैं। इस खेल में सवार और घोड़े के बीच गहरा विश्वास होना जरूरी है।
प्राचीन समय के इंसानों की हड्डियों के अध्ययन से पता चलता है कि 3021 से 2501 ईसा पूर्व यूरेशिया के यनमाया संस्कृति के लोगों ने घुड़सवारी शुरू की थी। उस वक्त घोड़े न सिर्फ इंसानों की यात्रा को गति देते थे, बल्कि उनके मवेशियों को संभालने और शिकार करने में भी मदद करते थे।
भारतीय संदर्भ की बात करें तो, माना जाता है कि 1500 ईसा पूर्व आर्यों के साथ भारत में घोड़ों का आगमन हुआ, जिन्हें शक्ति, गति और चपलता के लिए महत्व दिया जाता था। प्राचीन समय में आर्यों के पास उन्नत सैन्य दस्ते में घोड़े और रथ थे, जिसने उन्हें युद्ध में लाभ पहुंचाया।