Girish nagarajegowda
गिरीश नागराजेगौड़ा : वह एथलीट जिसने माता-पिता के पछतावे को गर्व में बदल दिया
यह कहानी शुरू होती है कर्नाटक के हासन जिले के होसनगर से, जहां नागराजेगौड़ा और जयम्मा ने सोचा भी नहीं थी कि 26 जनवरी के ऐतिहासिक दिन पर जिस खुशी को वह आधा ही सेलिब्रेट कर रहे थे, वह 24 साल बाद देश में एक नया कीर्तिमान लिख रहा होगा। 1988 में पैदा हुए गिरीश वह एथलीट हैं जिन्होंने 4 सितंबर 2012 को लंदन में हुए पैरालंपिक खेलों में पुरुषों के हाई जंप एफ42 इवेंट में सिल्वर मेडल जीता था। मेडल भी कोई साधारण नहीं, बल्कि देश के लिए अपने आप में ऐसा पहला पदक था। भारत ने पैरालंपिक में इस इवेंट में अब तक कोई मेडल नहीं जीता था।
गिरीश के माता-पिता नागराजेगौड़ा और जयम्मा को सोमवार आधी रात को लंदन से अपने मोबाइल फोन पर कॉल के जरिए इस खबर की जानकारी मिली थी। माता-पिता को यकीन नहीं हो रहा था। वह बेटा जिसकी दिव्यांगता को ठीक करने के लिए डॉक्टर ने सर्जरी कराने की सलाह दी थी, लेकिन मां-बाप डर के चलते ऐसा नहीं कर पाए। तब उनके पास इतने पैसे भी नहीं थे। सालों बाद जब तक उनको अपनी भूल के बारे में पता चला, तब तक समय निकल चुका था। बेटे को 'सामान्य' करने का समय निकल गया था, लेकिन बेटा तब तक 'असामान्य' उपलब्धि हासिल कर बहुत आगे बढ़ चुका था।