टीम इंडिया के इन 2 क्रिकेटरों के पास रहने के लिए नहीं था घर, ऐसे बने दुनिया के टॉप क्रिकेटर
इरफान और यूसुफ पठान की दो भाइयों की जोड़ी शायद भारत क्रिकेट इतिहास की सबसे सफल क्रिकेट जोड़ी हैं। गुजरात के वडोदरा शहर में रहने वाले इन दो भाइयों ने भारत को अपने दम पर कई मुकाबलों में जीत दिलाई। एक तरफ जहाँ इरफान गेंदों को स्विंग कराने के साथ साथ बड़े शॉट खेलने में माहिर तो वही दूसरी तरफ के यूसुफ अपने बल्ले से गेंदबाजों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं होते।
लेकिन अपने घर से भारतीय क्रिकेट टीम में जगह बनाने का उनका यह सफर थोड़ा भी आसान नहीं था।
यूसुफ और इरफान का परिवार आर्थिक रूप से काफी कमजोर था। उनके पास रहने के लिए घर नहीं था। उनके पिता मस्जिद में मुअज्जन (इबादतगाह में अजान देने वाला) का काम करते थे। वह मस्जिद के पीछे बने एक छोटे से कमरे में रहते थे।
उनके माता-पिता की यह इच्छा थी कि उनके दोनों बेटे पढ़ लिख कर किसी ऊंचे पद पर काम करें। लेकिन उनकी पढ़ाई में रुचि बहुत कम थी और वो दिन भर क्रिकेट में मग्न रहते थे।
शुरुआत में वो मस्जिद के परिसर में क्रिकेट खेला करते थे लेकिन लोगों को परेशानी होने के कारण उन्होंने वहाँ खेलना बंद कर दिया। बाद में उनके मामा अहमद ने दोनों को एक बल्ला खरीदकर दिया था। इरफान पठान के क्रिकेट के जज़्बे को भारत के पूर्व कप्तान दत्ता गायकवाड़ ने पहचना और उनकी प्रतिभा को निखारा।
16 साल की उम्र में इरफान पठान ने वडोदरा के लिए फर्स्ट क्लास क्रिकेट के डेब्यू किया। आखिरकार साल 2003 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट टीम में चुने जाने के बाद भारत के लिए उनका खेलने का सपना साकार हुआ। हालाँकि यूसुफ को अपने इंटरनेशनल डेब्यू के लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ा और उन्होंने साल 2007 में भारत के लिए डेब्यू किया।
दोनों 2007 टी-20 वर्ल्ड कप में भारतीय टीम का हिस्सा थे और यूसुफ ने 2011 वर्ल्ड कप में भी अपनी जगह बनाई थी।
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