बल्लेबाजी पर उठ रहे सवालों का शुभमन गिल ने बखूबी जवाब दिया : पार्थिव पटेल
इंग्लैंड में पांच मैचों की श्रृंखला में, भारत के टेस्ट टीम के कप्तान के रूप में गिल की पहली सीरीज 2-2 की बराबरी पर समाप्त हुई।
वह श्रृंखला में सर्वाधिक रन बनाने वाले खिलाड़ी भी रहे। गिल ने 10 पारियों में 75.40 की औसत से 754 रन बनाए। गिल के बल्ले से चार शतक आए। उन्हें सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी चुना गया।
गिल ने 75.40 की औसत से 750 रन बनाए। चार शतक भी जड़े। गिल के बल्ले से सभी चार शतक अलग-अलग परिस्थितियों में आए।
पटेल ने जियोहॉटस्टार पर कहा कि जब गिल बल्लेबाजी के लिए उतरे थे, तो सवाल उठ रहे थे कि क्या वह विदेशी पिच पर अच्छा प्रदर्शन कर पाएंगे? क्या वह लगातार अच्छा प्रदर्शन कर पाएंगे? लेकिन उन्होंने सभी सवालों के आसानी से जवाब दिए। हेडिंग्ले में गिल ने पहली पारी में 147 रन बनाए, तो दूसरी पारी में लोगों ने कहा कि उस बड़े स्कोर के बाद उन्होंने अपना विकेट गंवा दिया। एजबेस्टन में पहली पारी में 269 रन आए तो चर्चा होने लगी कि कहीं यह रन कम न पड़ जाए। लेकिन उन्होंने दूसरी पारी में 161 रन बनाए।
पटेल ने आगे कहा, "तीसरे टेस्ट में, वह दोनों पारियों में जल्दी आउट हो गए, और उनके फॉर्म पर फिर से सवाल उठने लगे, जबकि पिछले मैच में उन्होंने पहले ही 430 रन बना लिए थे। और फिर मैनचेस्टर में वह शतक आया, एक ऐसा मैच जिसे भारत को ड्रॉ कराना था। जब भी कोई चुनौती आई है, जब भी सवाल पूछे गए हैं, गिल ने अपने बल्ले से उनका बखूबी जवाब दिया है।"
पूर्व क्रिकेटर ने रवींद्र जडेजा के बल्लेबाजी कौशल के बारे में भी बात की, जिसे अक्सर कम आंका जाता है। जडेजा ने भारत के लिए 516 रन बनाए, जिसमें पांच अर्धशतक और एक नाबाद शतक शामिल है, जिसकी बदौलत भारत मैनचेस्टर में चौथा टेस्ट ड्रॉ कराने में कामयाब रहा।
पटेल ने आगे कहा, "तीसरे टेस्ट में, वह दोनों पारियों में जल्दी आउट हो गए, और उनके फॉर्म पर फिर से सवाल उठने लगे, जबकि पिछले मैच में उन्होंने पहले ही 430 रन बना लिए थे। और फिर मैनचेस्टर में वह शतक आया, एक ऐसा मैच जिसे भारत को ड्रॉ कराना था। जब भी कोई चुनौती आई है, जब भी सवाल पूछे गए हैं, गिल ने अपने बल्ले से उनका बखूबी जवाब दिया है।"
Also Read: LIVE Cricket Score
पटेल ने कहा कि जिस तरह से उन्होंने बल्लेबाजी की और जो निरंतरता दिखाई, वह भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण थी। जो बात केएल राहुल पर लागू होती है, वह रवींद्र जडेजा पर भी लागू होती है। एक सीनियर खिलाड़ी के लिए ऐसे मौकों पर डटे रहना बेहद जरूरी है, और जडेजा ने इस सीरीज में बिल्कुल यही किया है।