'अंधों की नगरी में एक था नवाब', कहानी टाइगर की जिसने 1 आंख से जीती दुनिया
टाइगर पटौदी ने 20 साल की उम्र में अपनी एक आंख गंवाने के बावजूद क्रिकेट जगत में एक मिसाल कायम की। टाइगर पटौदी की ये कहानी काफी ज्यादा दिलचस्प है।
शाही अंदाज खूंखार मिज़ाज आंखे इतनी तेज की उड़ते पंछी के पर गिन ले और बैटिंग का तो पूछो ही मत शॉट ऐसे कि गेंद को नहीं गेंदबाज को ही स्टेडियम के बाहर फेंक दे। हम बात कर रहे हैं मंसूर अली खान पटौदी की जिसे दुनिया टाइगर पटौदी के नाम से जानती है। साल 1961 पटौदी के नवाब इफ्तिखार खान और भोपाल की नवाब बेगम सजीदा सुल्तान के इकलौते बेटे टाइगर पटौदी ने टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू किया और अपनी विस्फोटक बल्लेबाजी से भारतीय क्रिकेट की तस्वीर ही बदल कर रख दी।
रनों का अंबार लगाने के बाद हुआ था सिलेक्शन: टाइगर पटौदी जब 20 साल के थे तब उनका सिलेक्शन टीम इंडिया में हुआ था। हालांकि, टीम इंडिया में उनका सिलेक्शन कोई अंचभे की बात नहीं थी क्योंकि बीते 4 साल अगर उठाकर देखें तो पाएंगे कि इस खिलाड़ी ने इंग्लैंड में चैंपियनशिप जीतने के अलावा रिकॉर्ड की झड़ी लगाते हुए रनों का अंबार लगा दिया था।
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बाईं आंख के सहारे की गेंदबाजों की धुनाई: ये बात बेहद कम लोग जानते हैं कि पटौदी ने अपनी जिंदगी सिर्फ बाईं आंख के सहारे ही गुजारी है। इंग्लैंड के होव शहर में एक भयानक सड़क हादसे के चलते उनकी एक आंख ने काम करना पूरी तरह से बंद कर दिया था। डॉक्टर ने ऑपरेशन किया और कॉटेंक्ट लेंस लगाकर उन्हें दिखने भी लगा लेकिन, जब वो क्रिकेट के मैदान पर उतरे तो एकदम से जज्बात बदल गए हालात बदल गए।
बैटिंग में हुई हदपार दिक्कत: कॉटेंक्ट लेंस उनकी ज्यादा मदद नहीं कर पा रहा था। एक आंख में दिक्कत के चलते उन्हें 140kph से ज्यादा की रफ्तार से आने वाली गेंदों को खेलने में हदपार दिक्कते हुई। यहां तक कि उन्हें कई बार खेल के दौरान 1 की जगह 2-2 गेंदें दिखने लगती थी। MCC के खिलाफ होने वाले मैच में वो शामिल हुए अब यहां पर उनका रंग पूरी तरह से उड़ा हुआ था।
टोपी से घायल आंखों को ढककर की थी बैटिंग: इस बार उनकी बैटिंग में ना तो कोई स्टाइल था ना फॉर्म वो सिर्फ मैदान पर अंधी बल्ला चलाते हुए नजर आए। बामुश्किल उनके बल्ले से 35 रन निकले। इस घटना ने उन्हें इतना ज्यादा फ्रस्टेट कर दिया कि उनके सब्र का बांध पूरी तरह से टूट गया और गुस्से में आकर उन्होंने कॉटेंक्ट लेंस उतारकर फेंक दिया। इसके बाद टोपी से घायल आंखों को ढककर उन्होंने बैटिंग की थी।
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गुस्से में लिए फैसले ने बदल दी जिंदगी: गुस्से में लिया हुआ ये फैसला उनकी जिंदगी बदलने वाला था। एक आंख से खेलते ही मानो पुराना पटौदी मैदान पर लौट आया हो। वही मिजाज, वहीं अंदाज लेकिन, इस बार बस एक आंख से आधा मैदान दिख रहा था। अपने एक्सिडेंड के 6 महीने बाद टाइगर पटौदी ने टेस्ट डेब्यू किया और अपने तीसरे मैच में ही शतक जड़ दिया। 21 साल 77 दिन की उम्र में उन्हें टीम इंडिया का कप्तान बना दिया गया। ये एक ऐसा रिकॉर्ड है जिसे टूटने में 40 साल लग गए।
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कुछ इस तरह रहा इंटरनेशनल करियर: इसके बाद टाइगर पटौदी अगले 17 साल तक क्रिकेट खेलते रहे भले ही आज उनके करियर को लोग कुछ खास नहीं समझते पर ये उनके लीडरशिप का ही कमाल था जिसके चलते टीम इंडिया में एक सोच पैदा हुई कि चाहे हालात कैसे भी हों परिस्थिति कैसी भी हो हम इस खेल को अपनी शर्तों पर अपनी तरह से खेलकर जीत सकते हैं। टाइगर पटौदी ने 46 टेस्ट मैच में 34.91 की औसत से 2793 रन बनाए थे।