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जसप्रीत बुमराह का ब्रिसबेन टेस्ट में खेलना क्यों है सबसे ज्यादा जरूरी, इरफान पठान ने बताया

भारत को शुक्रवार से ब्रिसबेन में शुरू हो रहे चौथे टेस्ट मैच में जसप्रीत बुमराह ( Jasprit Bumrah) की सबसे ज्यादा जरूरत होगी। बुमराह को एबडोमिनल स्ट्रेन की शिकायत है और चौथे टेस्ट मैच में उनका खेलना संदिग्ध है। टीम को...

IANS News
By IANS News January 14, 2021 • 17:49 PM
Images for Jasprit Bumrah crucial for Gabba, can adjust length more easily than others says Irfan Pa
Images for Jasprit Bumrah crucial for Gabba, can adjust length more easily than others says Irfan Pa (Indian Fast Bowler Jasprit Bumrah)
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भारत को शुक्रवार से ब्रिसबेन में शुरू हो रहे चौथे टेस्ट मैच में जसप्रीत बुमराह ( Jasprit Bumrah) की सबसे ज्यादा जरूरत होगी। बुमराह को एबडोमिनल स्ट्रेन की शिकायत है और चौथे टेस्ट मैच में उनका खेलना संदिग्ध है। टीम को उनकी काफी जरूरत होगी सिर्फ इसलिए नहीं क्योंकि वह उस तेज गेंदबाजी आक्रमण के इकलौते गेंदबाज बचे हैं जिसने 2018-19 में ऑस्ट्रेलिया में टीम को अहम जीत दिलाई थी। इसलिए भी क्योंकि वह गाबा की विकेट की जरूरत के हिसाब से अपनी गेंदों की लैंथ को आसानी से बदल सकते हैं।

भारत छह साल बाद गाबा में खेल रहा है और मौजूदा आक्रमण में देखा जाए तो सिर्फ रविचंद्रन अश्विन ने ही इस विकेट पर खेला है।

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भारत के पूर्व तेज गेंदबाज इरफान पठान ने गाबा की विकेट को चुनौतीपूर्ण बताया है और ऐसी विकेट बताया है जहां बुमराह आसानी से विकेट के हिसाब से गेंदबाजी कर सकते हैं।

पठान ने आईएएनएस से कहा, "गाबा जैसी विकेट पर, सबसे सही लैंथ बल्लेबाज के पास है वो है 25 इंच बल्लेबाज से आगे। यहां मुझे लगता है कि बुमराह काफी अहम रहेंगे। वह ऑस्ट्रेलिया में सफल रहे हैं क्योंकि वह फुलर लैंथ गेंदबाजी करते हैं। यह लैंथ ब्रिस्बेन में काम आती है जो बाकी भारतीय गेंजबाजों की तुलना में करना उनके लिए आसान होगा। उन्हें थोड़ा बहुत ही एडजस्ट करना होगा।"

बुमराह बल्लेबाज से सात-आठ फीट गेंद को दूर गिराते हैं जिससे बल्लेबाज को उन्हें फ्रंट फुट पर भी खेलने में परेशानी होती है।

भारत के पूर्व तेज गेंदबाज मनोज प्रभाकर ने इस गेंद की लैंथ को बदलने में आने वाली समस्याओं को बताया।

उन्होंने कहा, "जब मैंने ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया था, मैंने देखा था कि कई ऐसी गेंदें जो मुझे भारत में एलबीडब्ल्यू दिला सकती थीं वो स्टम्प के ऊपर से जा रही हैं। इसलिए मुझे उस हिसाब से बदलाव करने पड़े और गेंद को आगे डाला।"

प्रभाकर ने 1991-92 में ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया था। तब विशेषज्ञ कोच, वीडियो एनालिस्ट नहीं हुआ करते थे और न ही ज्यादा विदेशी दौरे हुआ करते थे। इसलिए खिलाड़ी खुद से सीखते थे। अब डाटा भी है और विशेषज्ञ कोच भी।
 


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