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1997 में हार के डर से क्रिकेट छोड़ना चाहते है महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर

दुनिया के महानतम बल्लेबाजों में गिने जाने वाले पूर्व भारतीय खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर अपनी आत्मकथा

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Saurabh Sharma
By Saurabh Sharma
Jan 29, 2015 • 04:08 AM

नई दिल्ली, 02 नवंबर (हि.स.) । दुनिया के महानतम बल्लेबाजों में गिने जाने वाले पूर्व भारतीय खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर अपनी आत्मकथा ‘प्लेइंग इट माई’ वे में स्वीकार किया है कि उन्होंने हार के डर से 1997 में क्रिकेट छोड़ने का मन बना लिया था । उस समय सचिन राष्ट्रीय टीम की कप्तानी इस खिलाड़ी के हाथ में थी और टीम लगातार हार का सामना कर रही थी। ऐसे में हताशा के अंतिम चरण पर पहुंच चुके इस खिलाड़ी ने क्रिकेट छोड़ने का मन बना लिया था।

Saurabh Sharma
By Saurabh Sharma
January 29, 2015 • 04:08 AM

दुनियाभर में छह नवंबर तेंदुलकर की आत्मकथा ‘प्लेइंग इट माई वे’ का विमोचन होना है जिसमें इस महान बल्लेबाज ने कप्तान के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान की हताशा का भी जिक्र किया है। तेंदुलकर की किताब के अनुसार कि मुझे हार से नफरत है और टीम के कप्तान के रूप में मैं लगातार खराब प्रदर्शन के लिए खुद को जिम्मेदार मानता था। इससे भी अधिक चिंता की बात यह थी कि मुझे नहीं पता था कि इससे कैसे उबरा जाए क्योंकि मैं पहले ही अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहा था। उन्होंने कहा कि मैंने अंजलि (उनकी पत्नी) से कहा कि मुझे डर है कि मैं लगातार हार से उबरने के लिए शायद कुछ नहीं कर सकता। लगातार करीबी मैच हारने से मैं काफी डर गया था। मैंने अपना सब कुछ झोंक दिया और मुझे भरोसा नहीं था कि क्या मैं 0.1 प्रतिश्त भी और दे सकता हूं।

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जाने माने खेल पत्रकार और इतिहासविद बोरिया मजूमदार के सह लेखन वाली इस आत्मकथा में तेंदुलकर ने अपने अंर्तराष्ट्रीय करियर के सबसे बुरे दौर का खुलासा करते हुए कहा कि इससे मुझे काफी पीड़ा पहुंच रही थी और इन हार से निपटने में मुझे लंबा समय लगा। मैं पूरी तरह से खेल से दूर होने पर विचार करने लगा था क्योंकि ऐसा लग रहा था कि कुछ भी मेरे पक्ष में नहीं हो रहा था। तेंदुलकर का यह बुरा दौर 1997 के समय का है जब भारतीय टीम वेस्टइंडीज का दौरा कर रही थी। पहले दो टेस्ट ड्रा कराने के बाद भारतीय टीम तीसरे में जीत की ओर बढ़ रही थी और उसे सिर्फ 120 रन का लक्ष्य हासिल करना था। लेकिन भारतीय टीम सिर्फ 81 रन पर ढेर हो गई जिसमें सिर्फ वीवीएस लक्ष्मण ही दोहरे अंक में पहुंच पाए। तेंदुलकर ने कहा कि सोमवार 31 मार्च 1997 भारतीय क्रिकेट के इतिहास का काला दिन था और निश्चित तौर पर मेरे कप्तानी कॅरियर का सबसे खराब दिन था। इससे एक दिन पहले रात को सेंट लारेंस गैप में एक रेस्टोरेंट में डिनर के दौरान मुझे याद है कि मैंने वेटर से मजाक किया कि कौन वेस्टइंडीज की जीत की भविष्यवाणी कर रहा है। उसे विश्वास था कि अगली सुबह एंब्रोस भारत को ध्वस्त कर देगा। उन्होंने कहा कि इस मैच की पहली पारी में फ्रेंकलिन रोज ने मुझे बाउंसर की थी और मैंने पुल करते हुए छक्का जड़ा था। मैंने वेटर को वह शाट याद दिलाया और मजाक में कहा कि अगर एंब्रोस मुझे बाउंसर फेंकने की कोशिश करेगा तो मैं गेंद को मारकर एंटीगा पहुंचा दूंगा।

हिन्दुस्थान समाचार/धीरेन्द्र/अनूप

 

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