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Cricket Tales: कौन बनेगा करोड़पति - सवाल 7.5 करोड़ रुपये का भारतीय क्रिकेटर गुंडप्पा विश्वनाथ के बारे में

Cricket Tales - कुछ दिन पहले, कौन बनेगा करोड़पति (केबीसी) 14 पर 1 करोड़ रुपये का इनाम जीतने वाली प्रतियोगी ने वास्तव में क्विज़ शो को तब क्विट करने का फैसला किया था जब वे 7.5 करोड़ रुपये के सवाल

Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti October 28, 2022 • 20:57 PM
KBC
KBC (Image Source: Google)
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Cricket Tales - कुछ दिन पहले, कौन बनेगा करोड़पति (केबीसी) 14 पर 1 करोड़ रुपये का इनाम जीतने वाली प्रतियोगी ने वास्तव में क्विज़ शो को तब क्विट करने का फैसला किया था जब वे 7.5 करोड़ रुपये के सवाल का जवाब नहीं दे पाईं। ये सवाल था भारतीय क्रिकेटर गुंडप्पा विश्वनाथ के बारे में- 'फर्स्ट क्लास क्रिकेट डेब्यू पर, दोहरा शतक बनाने वाले पहले भारतीय, गुंडप्पा विश्वनाथ, ने किस टीम के विरुद्ध ये उपलब्धि हासिल की थी?' ऑप्शन थे- A. सेना, B. आंध्र, C. महाराष्ट्र, D. सौराष्ट्र। यहां तक कि उनका- जवाब का अनुमान भी गलत निकला। सही जवाब है आंध्र। वे इस सवाल का जवाब नहीं दे पाईं- इससे भी ख़ास मुद्दा ये है कि, बिना कोई बाहरी मदद लिए, आज के कितने क्रिकेट प्रेमी इस सवाल का सही जवाब दे सकते थे?

विशी' के नाम से मशहूर, दाएं हाथ के बल्लेबाज, गुंडप्पा विश्वनाथ ने 19 साल की उम्र में फर्स्ट क्लास क्रिकेट में खेलना शुरू किया। रणजी ट्रॉफी के 1967-68 सीज़न में 11 नवंबर 1967 से खेले गए मैच में, विजयवाड़ा में, आंध्र प्रदेश के विरुद्ध मैसूर (अब कर्नाटक) के लिए खेले। ओपनर के जल्दी आउट होने के बाद, गुंडप्पा विश्वनाथ ने पारी को संभाला और एलबीडब्ल्यू आउट होने से पहले 230 रन बनाए। मैसूर का कुल स्कोर 460 रन था।

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जवाब में पहली पारी में आंध्र को सिर्फ 181 रन पर आउट कर दिया। आंध्र ने फॉलोऑन किया और दूसरी पारी में 360 रन बनाए। ये कहीं चर्चा नहीं होती कि इस पारी में कर्नाटक ने 10 गेंदबाज का प्रयोग किया और इनमें से एक गुंडप्पा विश्वनाथ भी थे। फर्स्ट क्लास क्रिकेट में गुंडप्पा विश्वनाथ ने जो 15 विकेट लिए- उनमें से पहला इसी पारी में लिया था। तीन दिन का ये मैच ड्रा रहा। इस डेब्यू दोहरे शतक ने गुंडप्पा विश्वनाथ को जल्दी ही टेस्ट टीम में जगह दिलाने में बड़ी ख़ास भूमिका निभाई थी।

संयोग देखिए गुंडप्पा विश्वनाथ ने 1969 में कानपुर में ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध अपने टेस्ट डेब्यू पर भी शतक बनाया और इस तरह फर्स्ट क्लास और टेस्ट डेब्यू दोनों में 100 का रिकॉर्ड बनाया। ऐसा करने वाले वह पहले भारतीय बल्लेबाज थे।

गुंडप्पा विश्वनाथ शुरू से क्रिकेट तो बढ़िया खेलते थे पर शरीर से कमजोर थे। एक बार तो उनके इस कमजोर शरीर को देखकर ही उन्हें स्टेट की स्कूल क्रिकेट टीम में नहीं चुना था।

जब विश्वनाथ ने 1967-68 सीज़न के दौरान आंध्र प्रदेश के विरुद्ध रणजी ट्रॉफी में डेब्यू किया तो इस मैच की भी एक दिलचस्प कहानी है। कर्नाटक (तब मैसूर) टीम में उनके चार टॉप खिलाड़ी नहीं थे (टेस्ट ड्यूटी पर थे) और इससे टीम कमजोर हो गई थी। मैटिंग विकेट पर पहले बल्लेबाजी करते हुए, मैसूर ने तेज गेंदबाज वेंकट राव और आरपी गुप्ता की तेज गेंदबाजी पर जल्दी-जल्दी दो विकेट खो दिए। विश्वनाथ बल्लेबाजी करने आए और गार्ड ले रहे थे तो उस छोटे कद के बल्लेबाज के पतले-दुबले फ्रेम को देखकर, गेंदबाजों को उन पर तरस आ रहा था। हमदर्दी भी महसूस की और उन्हें आउट करने से पहले 'कुछ रन' बनाने का मौका देने का फैसला किया।

जो डेब्यू कर रहा हो, उसे अगर शुरुआत में कुछ आसान रन मिल जाएं तो और क्या चाहिए? विश्वनाथ को इन्हीं रन की जरूरत थी। उसके बाद, उन्होंने विकेट के चारों ओर अपने स्ट्रोक खेलना शुरू किया और 230 रन बनाने के बाद ही पवेलियन लौटे।

डेब्यू के संदर्भ में, गुंडप्पा विश्वनाथ के करियर में मंसूर अली खान पटौदी की बड़ी ख़ास भूमिका रही। पटौदी ने उन्हें एक रणजी ट्रॉफी मैच में खेलते देखा था और तब से पसंद करने लगे थे। पटौदी के कहने पर ही, 1969 में कानपुर में ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध दूसरे टेस्ट के लिए प्लेइंग इलेवन में गुंडप्पा विश्वनाथ को शामिल किया था। पहली टेस्ट पारी में विश्वनाथ 0 पर आउट।

तब पटौदी ने ही हौसला दिया था और कहा था- परेशान होने की कोई जरूरत नहीं, चिंता मत करो, तुम 100 बनाओगे। दूसरी पारी में शतक लगाने के बाद विश्वनाथ ने अपने कप्तान को निराश नहीं किया।

पटौदी ने विश्वनाथ में बहुत पहले असाधारण टेलेंट को तो देखा ही था, अपने अनुभव से एक और सलाह भी दी थी। ये सलाह थी- पानी से भरी बाल्टी को उठाने की प्रेक्टिस करो ताकि मसल्स मजबूत और डेवलप हो सकें। गुंडप्पा विश्वनाथ ने इस सलाह को पल्लू से बांध लिया और जुट गए प्रेक्टिस करने। इसी से कलाइयों में गजब की मजबूती आई और गेंद उनके बैट से तेजी से बाउंड्री तक पहुंचने लगी। कलाइयों से विश्वनाथ ने जो स्ट्रोक लगाए वे 'आर्ट' थे- मानो किसी मधुर म्यूजिक से समा बांधा जा रहा हो। आज तक उन्हें आर्टिस्टिक बल्लेबाज के तौर पर याद किया जाता है।

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