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T20 World Cup से पहले उस बड़े स्पांसर का ICC को झटका जो भारत में तेज गेंदबाजी की क्रांति लाए 

टी20 वर्ल्ड कप 2024 शुरू होने से पहले आईसीसी को एक बड़ा झटका- रेटिंग के स्पांसर एमआरएफ ने एक लंबी पार्टनरशिप के बाद, आईसीसी को बाय-बाय कह दिया। वे 8 साल से आईसीसी के साथ थे पर उनका क्रिकेट से

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Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti May 31, 2024 • 13:58 PM
MRF has ended its partnership with the International Cricket Council
MRF has ended its partnership with the International Cricket Council (Image Source: Google)

आज भारत में विश्व स्तर के तेज गेंदबाज एक के बाद एक सामने आ रहे हैं- एक समय था जब एक बेहतर तेज गेंदबाज के लिए तरसते थे। तब इसी एमआरएफ ने तेज गेंदबाज तैयार करने के लिए 1987 में, चेन्नई में पेस फाउंडेशन शुरू की। 1987 में, एमआरएफ के मैनेजिंग डायरेक्टर रवि मामन ने वह काम किया जो बीसीसीआई की जिम्मेदारी था।उन्होंने ही सोचा कि कब तक भारत सिर्फ स्पिन-गेंदबाजी के सहारे इंटरनेशनल क्रिकेट खेलता रहेगा? इसलिए पैसा लगाया और पेस फाउंडेशन शुरू की। इस पेस फाउंडेशन ने जवागल श्रीनाथ, वेंकटेश प्रसाद, विवेक राजदान, सुब्रतो बनर्जी, इरफान पठान, जहीर खान, मुनाफ पटेल और आशीष विंस्टन जैदी सहित ढेरों तेज गेंदबाज तैयार किए। आज न सिर्फ भारत से, दूसरे देशों से भी युवा तेज गेंदबाज यहां ट्रेनिंग के लिए आ रहे हैं।

जब भी इस फाउंडेशन का जिक्र होता है तो पहले रेजिडेंट कोच टीए शेखर और विदेशी एक्सपर्ट कोच डेनिस लिली का नाम लिया जाता है। डेनिस लिली अपने समय में नंबर 1 तेज गेंदबाज थे- 70 टेस्ट में 355 और 63 वनडे में 103 विकेट का रिकॉर्ड खुद बता देता है कि कैसे गेंदबाज थे? अभी तो वर्ल्ड सीरीज क्रिकेट की वजह से कई महीने टेस्ट और वनडे नहीं खेले अन्यथा उनके नाम और भी विकेट होते। कभी इंटरनेशनल क्रिकेट खेलने भारत नहीं आए- कतराते रहे। इन लिली को भी एमआरएफ ने एक्सपर्ट कोच के तौर पर बुला लिया था। आज कोई नहीं जानता कि लिली और शेखर को कोच बनाने की स्टोरी क्या है? ये दोनों इस फाउंडेशन की कामयाबी में ख़ास नाम हैं। 

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1987 के साल पर चलते हैं। रवि मामन को पूरी उम्मीद थी कि जब वे अपने इरादे को बीसीसीआई को बताएंगे तो वे मदद करेंगे- हैरानी है कि भारत की क्रिकेट को इस पेस फाउंडेशन से नए तेज गेंदबाज मिलने की उम्मीद के बावजूद बीसीसीआई ने कोई मदद नहीं की। बीसीसीआई ने शायद ये माना हुआ था कि भारत में कभी विश्व स्तर के पेसर तैयार नहीं हो सकते। ऐसे में एमआरएफ को मालूम था कि इस प्रोजेक्ट को खुद आगे बढ़ाना होगा पर उसके लिए एक सही 'क्रिकेट सलाहकार' की जरूरत थी। ये चेन्नई की कंपनी है और फाउंडेशन भी चेन्नई में शुरू करनी थी- सलाहकार भी वहीं से ढूंढा। विश्वास कीजिए एक स्पिनर, तेज गेंदबाज ढूंढने के इस प्रोजेक्ट में उनके पहले सलाहकार थे। ये थे एस  वेंकटराघवन जिन्होंने 57 टेस्ट में 156 विकेट लिए।    

रवि मामन इस फाउंडेशन के लिए ऐसा कोच चाहते थे जो वास्तव में सब बदल दे और तेज गेंदबाज तैयार हों। कई नाम शार्ट लिस्ट हुए और आखिर में नजर टिकी डेनिस लिली पर लेकिन सवाल ये था कि जो लिली कभी भारत नहीं आए थे- क्या अब तैयार होंगे? उनसे संपर्क किया- कोई जवाब नहीं। कुछ खिलाड़ियों ने कोशिश की- कोई जवाब नहीं। उन दिनों ई-मेल या व्हाट्सएप तो होते नहीं थे कि सब फटाफट हो गया। चिट्ठी गई और जवाब का इंतजार करते रहो। हार मान ली थी। तब वेंकटराघवन की सलाह थी कि उनका कोई ऐसा दोस्त ढूंढो जिसे वे कम से कम जवाब तो दें। इसमें चुने गए भारत के विकेटकीपर सैयद किरमानी (वे रवि के साथ स्कूली क्रिकेट खेल भी चुके थे) और वे तैयार भी हो गए लिली को चिट्ठी लिखने के लिए। तो इस तरह पेस फाउंडेशन में दूसरे सबसे बड़े मददगार बने एक विकेटकीपर। 

किस्मत बदली और किरमानी को जवाब आ गया। आखिर में लिली फाउंडेशन में एक्सपर्ट कोचिंग के लिए मान गए पर कुछ शर्तें थीं उनकी। इनमें से ख़ास :

* फाउंडेशन में हर जरूरत को पूरा किया जाएगा ताकि सबसे बेहतर कोचिंग दे सकें। 

* एक ऐसा रेजिडेंट कोच चाहिए जिसे लिली जो बताएं वह आगे सही तरह ट्रेनी को बताए और कोच करे- ये कोई फर्स्ट क्लास या इंटरनेशनल क्रिकेटर हो पर ऐसा जो अभी खेल रहा हो या हाल ही में रिटायर हुआ हो, खुद भी गेंदबाजी कर सके और जिससे ट्रेनी ट्रेनिंग ले लें। 

* उनके काम के तरीके में कोई दखलंदाजी नहीं होगी। 

अब एक लोकल कोच चुनने का सवाल आ गया। सबसे पहले मदन लाल और आबिद अली शार्ट लिस्ट हुए। बात नहीं बनी। तब वेंकटराघवन (जो उस समय तमिलनाडु क्रिकेट एसोसिएशन के सेक्रेटरी थे) ने 32 साल के टीए शेखर का नाम लिया। वे तब तक, घुटने की चोट से जूझने के बावजूद, फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेल रहे थे। वे एकदम कोचिंग में आने के लिए तैयार नहीं थे पर एक रोल मॉडल के साथ काम करने के लालच में अपना इरादा बदल लिया। शेखर ने कई साल बाद कहा- 'लिली गजब के कोच थे। उन्हें देखते ही गेंदबाजी की चाह पैदा होती थी। आप उनसे कुछ भी पूछ सकते हैं। तेज गेंदबाजी के बारे में उन जैसा बात करने वाला कोई और नहीं देखा। दूसरे लोग जो कंप्यूटर से देख सकते थे- डेनिस अपनी नंगी आंखों से देख सकते थे। उन्होंने कोई किताब नहीं दिखाई या कोई बड़ा लेक्चर नहीं दिया। वे गेंदबाजों से गेंदबाजी करवाते, उसका वीडियो बनाते और उन्हें दिखाते।'

शेखर मान तो गए पर उनकी एक बड़ी शर्त थी कि खेलना बंद नहीं करेंगे। बात बन गई और लिली ने भी मद्रास के एक लंबे और मजबूत तेज गेंदबाज, 2 टेस्ट और 4 वनडे खेले शेखर के लिए मंजूरी दे दी। सबसे पहले शेखर ने एसपीआईसी में नौकरी छोड़ी- ये बीसीसीआई के अध्यक्ष रह चुके एसी मुथैया की पेट्रोकेमिकल कंपनी थी। अब एमआरएफ स्टाफ में आ गए। जानते थे कि टीम इंडिया में वापसी का कोई रास्ता नहीं बचा इसलिए 1991 में फर्स्ट क्लास क्रिकेट से रिटायर हो गए। 

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पहला ट्रेनिंग कैंप सितंबर 1987 में चेन्नई में लगा। डेनिस लिली आए। अपना काम किया और लौट गए- किसी फंक्शन में जाने, बड़े लोगों से मिलने या इंटरव्यू देने में उनकी कोई रूचि नहीं थी। तो ऐसे शुरू हुआ भारत में तेज गेंदबाज तैयार करने का प्रोजेक्ट जो आज तक चल रहा है। पहला कैंप एमए चिदंबरम स्टेडियम में लगा। यहां एक ऐसे खिलाड़ी ने तेज गेंदबाज बनने के लिए ट्रायल में हिस्सा लिया जिसे आज सब 'गॉड ऑफ़ क्रिकेट' कहते हैं। खैर लिली ने उन्हें नहीं चुना और शायद उनके इस फैसले ने भारतीय क्रिकेट की भलाई की नई स्टोरी लिख दी। ये किस्सा फिर कभी।
 

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