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21 साल के टाइगर पटौदी के साथ 1962 में जो हिम्मत दिखाई,क्या आज के टीम इंडिया के सेलेक्टर उसके लिए तैयार हैं?

कुछ ही दिनों में, भारतीय क्रिकेट में बदलाव का दौर चलते-चलते इस मुकाम पर आ पहुंचा है कि टेस्ट क्रिकेट के लिए नए कप्तान की तलाश चल रही है और कोई नाम ऐसा सामने नहीं जिसे सीधे कप्तानी सौंप दें।

Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti January 27, 2022 • 13:30 PM
21 साल के टाइगर पटौदी के साथ 1962 में जो हिम्मत दिखाई,क्या आज के सेलेक्टर उसके लिए तैयार हैं?
21 साल के टाइगर पटौदी के साथ 1962 में जो हिम्मत दिखाई,क्या आज के सेलेक्टर उसके लिए तैयार हैं? (Image Source: Twitter)
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कुछ ही दिनों में, भारतीय क्रिकेट में बदलाव का दौर चलते-चलते इस मुकाम पर आ पहुंचा है कि टेस्ट क्रिकेट के लिए नए कप्तान की तलाश चल रही है और कोई नाम ऐसा सामने नहीं जिसे सीधे कप्तानी सौंप दें। अगला कप्तान कौन? अंजिक्य रहाणे और चेतेश्वर पुजारा ने फॉर्म गंवाने के लिए अपने करियर के सबसे खराब दौर को चुना अन्यथा कप्तान बनने के सबसे जोरदार दावेदार होते। इसलिए रोहित शर्मा, केएल राहुल (साउथ अफ्रीका दौरे में टेस्ट और वन डे में मिले मौके ने सब गड़बड़ कर दी) ,आर अश्विन, जसप्रीत बुमराह और रिषभ पंत जैसे नाम चर्चा में आए। कहाँ पुजारा (95 टेस्ट), अश्विन(84) और रहाणे (82) का टेस्ट अनुभव और कहाँ इनकी तुलना में रोहित एवं राहुल (43) और यहां तक कि पंत (28) और बुमराह (27) भी दावेदार।  

तब भी सुनील गावस्कर ने रिषभ पंत को कप्तान बनाने की वकालत की है और साथ में ये भी कह दिया कि नवाब पटौदी की मिसाल सामने है। ऐसा क्या है नवाब पटौदी की मिसाल में कि गावस्कर ने उन्हें याद किया। आइए देखते हैं पटौदी कैसे कप्तान बने थे।

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मंसूर अली खान पटौदी ( टाइगर पटौदी) ने 40 टेस्ट में भारत की कप्तानी की और 6 शतक बनाए- सभी सिर्फ एक आंख से देखने के बावजूद। 1 जुलाई 1961 को, एक कार एक्सीडेंट में उनकी दाहिनी आंख विंडस्क्रीन से कांच के एक टुकड़े से चोटिल हुई और रोशनी चली गई- तब भी वे क्रिकेट के मैदान पर लौटे। भारत के सेलेक्टर्स को उनमें ऐसी प्रतिभा नज़र आई कि नेट्स में चार महीने की प्रेक्टिस के बाद, हैदराबाद में टेड डेक्सटर की एमसीसी टीम के विरुद्ध बोर्ड प्रेसीडेंट इलेवन का कप्तान बना दिया। वे कप्तानी इससे पहले भी कर चुके थे- इंग्लैंड में स्कूल इलेवन और बाद में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी टीम की। 

एक महीने बाद, दिसंबर 1961 में, दिल्ली में इंग्लैंड के विरुद्ध टेस्ट डेब्यू और पहली चार टेस्ट पारियों में स्कोर 13, 64, 32 और 103 थे। उस सीरीज जीत में काफी हद तक योगदान दिया।  इसी को देखकर,1962 की शुरुआत में वेस्टइंडीज दौरे के लिए, कई सीनियर की मौजूदगी में उन्हें उप-कप्तान बना दिया।

जब कप्तान नारी कॉन्ट्रैक्टर को चार्ली ग्रिफिथ की एक तेज गेंद ने मरने की हालत में पहुंचा दिया, बारबाडोस के विरुद्ध मैच में- तब तक भारत सीरीज के पहले दोनों टेस्ट बुरी तरह से हार चुका था। ऐसे मुश्किल माहौल में, उपकप्तान होने के नाते, पटौदी (21 साल 77 दिन) टेस्ट कप्तान बन गए- उस समय, भारत के ही नहीं, टेस्ट क्रिकेट इतिहास में सबसे कम उम्र के कप्तान। टीम में सिर्फ दिलीप सरदेसाई ने कम मैच खेले थे।


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