पिछली ऑस्ट्रेलिया-पाकिस्तान टेस्ट सीरीज जितनी ग्राउंड पर चर्चा में रही- उससे ज्यादा ग्राउंड के बाहर। इसके लिए सबसे ज्यादा उस्मान ख्वाजा जिम्मेदार रहे- एक मौजूदा मसले पर अपने प्रोटेस्ट की वजह से। उनका भले ही जूते पर मेसेज हो या आर्मबैंड प्रोटेस्ट- कोई भी आईसीसी को पसंद नहीं आया। आईसीसी ने चेतावनी दी- आईसीसी के नियम राजनीति, धर्म या नस्ल से संबंधित व्यक्तिगत संदेशों के प्रदर्शन की इजाजत नहीं देते। इस दलील का भी कोई फायदा नहीं हुआ कि ऐसी मिसाल हैं जहां आईसीसी गाइडलाइन को तोड़ा और ऐसे व्यक्तिगत संदेश दिखाने की मंजूरी दी जो राजनीति, धर्म या नस्ल जैसे मसले से जुड़े थे।
क्या किसी को याद है कि भारतीय क्रिकेट में कब पहली बार क्रिकेट को सीधे राजनीति से जोड़ा गया? मजे की बात ये है कि ये वह केस है जिसमें आईसीसी ने तो कोई एक्शन नहीं लिया पर उस घटना ने भारत के क्रिकेट इतिहास पर बहुत बड़ा असर डाला।
इन दिनों इंग्लैंड की टीम भारत में है और भारत ने 1932 में इंग्लैंड के विरुद्ध ही अपना पहला टेस्ट खेला था। भारत को टेस्ट में 158 रन से हार मिली पर टेस्ट के दौरान कुछ क्षण ऐसे भी आए जब मेजबान इंग्लिश टीम बैकफुट पर थी। इंग्लिश क्रिकेट के जानकारों ने भी टीम इंडिया के खेल की तारीफ की। इसमें दो सबसे ख़ास बात थीं- पहली तो ये कि देश पर इंग्लैंड का शासन होने के बावजूद टीम में सभी भारतीय खिलाड़ी थे और दूसरी ये कि भारत से सभी टॉप क्रिकेटर इंग्लैंड टूर पर नहीं गए थे। अगर नंबर 1 टीम के साथ खेलते तो न जाने इतिहास क्या होता?