जब 1975 में 2 इंग्लिश जर्नलिस्ट भारत में क्रिकेट सीरीज को कवर करने सड़क के रास्ते लंदन से मुंबई पहुंचे
India vs England: आपको लगेगा कि ये हेडिंग ही गलत है और सड़क के रास्ते इंग्लैंड में लंदन से भारत पहुंचना संभव ही नहीं- है और ऐसा आज भी किया जा सकता है। ये बात अलग है कि अब बीच
![Charanpal Singh Sobti Charanpal Singh Sobti](https://img.cricketnmore.com/uploads/2021/12/Cricket.jpeg)
![When two English journalists reached Mumbai by road from London to cover a cricket series in India जब 1975 में 2 इंग्लिश जर्नलिस्ट भारत में क्रिकेट सीरीज को कवर करने सड़क के रास्ते लंदन से मुंबई पहुंच](https://img.cricketnmore.com/uploads/2024/01/India-vs-England-Test-lg.jpg)
India vs England: आपको लगेगा कि ये हेडिंग ही गलत है और सड़क के रास्ते इंग्लैंड में लंदन से भारत पहुंचना संभव ही नहीं- है और ऐसा आज भी किया जा सकता है। ये बात अलग है कि अब बीच के देशों के हालात देखते हुए कोई ऐसा एडवेंचर नहीं करता और फिर किसके पास इतना समय है कि लंदन से मुंबई आने में लगभग डेढ़ महीना लगा दे।
दिसंबर 1975 में, इंग्लैंड की मशहूर अखबार द टाइम्स के विश्व प्रसिद्ध जर्नलिस्ट जॉन वुडकॉक और कमेंटेटर/जर्नलिस्ट हेनरी ब्लोफेल्ड (जो शारजाह मैं कमेंट्री के दौरान महिलाओं के ईयर रिंग की तारीफ़ करने के लिए बड़े मशहूर हुए) ऑस्ट्रेलिया में वेस्टइंडीज के विरुद्ध एक असाधारण टेस्ट (पर्थ) जब कवर कर रहे थे तो वहीं आपसी बातचीत में तय किया कि इंग्लैंड के अगले भारत टूर पर एक साथ चलेंगे। ब्लोफेल्ड ने तब वुडकॉक को बताया कि इंग्लैंड के उससे पिछले भारत टूर पर वे ब्रायन जॉन्सटन और माइकल मेलफोर्ड के साथ गए थे और एडवेंचर के तौर पर तय किया था कि अपनी कार पर जाएंगे। ये सुन कर तब तीनों की पत्नियां मिलकर मोर्चे पर आ गईं और सड़क के रास्ते नहीं जा पाए। बहरहाल इस बार ब्लोफेल्ड ने फिर से वही प्रोग्राम बना लिया और वुडकॉक को राजी कर लिया। हां, सेफ्टी के लिए अपनी 'टीम' बड़ी कर ली। तो वे सड़क के रास्ते गए उस ज़माने में जब इंटरनेट भी नहीं था- मदद के लिए या दुनिया स जुड़े रहने के लिए।
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दोस्त आ जुड़े- सिडनी से जूडी केसी, हैंपशायर से एड्रियन (एडी) लिडेल (पुरानी कारें इकट्ठा करने के शौकीन और वे क्लैरट रंग की 1921 रोल्स-रॉयस ले आए) और माइकल बेनेट (मजाकिया और शराबी दोस्त)। ब्लोफेल्ड की पीले रंग की रोवर कार भी गई।
ये सब 6 अक्टूबर, 1976 को सुबह 6.30 बजे बारिश में दो कार पर अल्बर्ट हॉल से निकले- रोल्स में सामान लदा था। दोनों कारों पर स्पांसर के स्टिकर लगे थे- इनमें से एक स्कॉच व्हिस्की बनाने वाले भी थे। तय था कि सब बारी-बारी से कार चलाएंगे। लंदन से पेरिस, वहां से फ्रैंकफर्ट और फिर ऑस्ट्रिया होते हुए यूगोस्लाविया तथा ग्रीस में थेसालोनिकी तक गए। दूसरे राउंड में एजियन के टॉप से इस्तांबुल, बोस्पोरस और एशिया पहुंच गए। अब था टूर का सबसे एडवेंचर वाला पड़ाव- तब वे एशिया को दूसरी दुनिया कहते थे।
सड़क पर तेज रफ्तार, सामान से लदे ट्रक, लेन ड्राइविंग का तो सवाल ही नहीं, डराने वाले बार-बार बजते हॉर्न, बड़े-बड़े और डरावने गड्ढों के कारण ड्राइविंग बड़ी मुश्किल हो गई इनके लिए। खैर चलते रहे- अंकारा पहुंचे जहां तुर्की की कोई पॉलिटिकल कॉन्फ्रेंस चल रही थी- इस वजह से कहीं ठहरने की जगह नहीं मिली। एक पेट्रोल स्टेशन पर कुछ स्टूडेंट मिल गए और उनमें से एक तुर्की के जज एडवोकेट जनरल का बेटा था। वह उन्हें अपने घर ले गया और वहां आलीशान अपार्टमेंट के ड्राइंग-रूम में कालीन पर रात बिताई।
वहां से सिवास और फिर तेहरान गए- वहां एडी के एक दोस्त के साथ रुके, जो शाह का वकील भी था। उसने महल के ठीक बाहर एक शानदार घर में ठहराया। चार दिन रुके- ईरानी ताज को देखा, तेहरान एयरपोर्ट पर ब्रिटिश एम्बेसी द्वारा आयोजित क्रिकेट मैच देखा (एयरपोर्ट पर क्रिकेट- ये एक अलग स्टोरी है) तथा और भी बहुत कुछ हुआ। हैंगओवर में ही ईरान से अफगानिस्तान दाखिल हुए और जानते थे कि ये टूर का सबसे मुश्किल हिस्सा है।
एंट्री के लिए बॉर्डर पर मीलों लंबी लाइन लगी थी गाड़ियों की पर एक बढ़िया व्हिस्की की बोतल की रिश्वत (जो उनके लिए तब सोने की ईंट कहते थे) काम कर गई। कंधार में, एक दाढ़ी वाले बदमाश से मुलाकात हुई जो इन्हें नकली सिगरेट बेच गया। इसके बाद मशहूर खैबर पास होते हुए काबुल की ठंड की तैयारी हो गई। वहां कर्ज़न का शानदार दूतावास देखा, स्ट्रीट फ़ूड खाया और चिकन स्ट्रीट पर भेड़ की खाल के कोट खरीदे।
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अफगानिस्तान छोड़ने के बाद, पेशावर के डीन होटल में पहुंचे और वहां पिछले टूर की जान-पहचान काम आई। पेशावर से इस्लामाबाद, वहां से लाहौर और तब हुई भारत में एंट्री। भारत में, दिल्ली में, वुडकॉक अपने एक पुराने दोस्त अश्विनी कुमार (भूतपूर्व ओलंपियन) जो तब बॉर्डर सिक्योरिटी फ़ोर्स के चीफ भी थे, से मिले और उन्होंने साउथ दिल्ली के टेकनपुर में, उनके बेस पर दो दिन ठहरने का इंतजाम करा दिया। दिल्ली से राजस्थान देखते हुए बड़ौदा के महाराजा के महल में पहुंच गए। एक रात महल में ही रुके और दो दिन बाद, 22 नवंबर को दोपहर एक बजे के करीब बंबई के ताज महल होटल पहुंच गए। अल्बर्ट हॉल से चले 46 दिन हो गए थे। कारें, अब शिप के रास्ते वापस भेज दीं और इसके बाद टोनी ग्रेग की टीम के साथ क्रिकेट टूर शुरू हुआ।