बीसीसीआई का कानून पारदर्शिता, जवाबदेही नहीं दे सकता
नई दिल्ली, 3 मई (Cricketnmore): सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) का संविधान पारदर्शिता, निष्पक्षता और जवाबदेही प्रदान करने में अक्षम है और इन तमाम मूल्यों को बोर्ड में लाने के लिए बड़े बदलावों की जरूरत है। प्रधान न्यायाधीश टी.एस.ठाकुर और न्यायमूर्ति एफ. एम.आई. कलीफुल्ला की खंडपीठ ने कहा, "बीसीसीआई का मौजूदा संविधान पारदर्शिता, निष्पक्षता और जवाबदेही लाने के लिए इस कदर असमर्थ है कि बिना ढांचागत बदलाव के इन चीजों को बोर्ड में लागू नहीं किया जा सकता।"
अदालत ने यह बयान एमिकस क्यूरी गोपाल सुब्रमण्यम के इस बयान के बाद दिया जिसमें उन्होंने अदालत से कहा था कि अगर बीसीसीआई एक सार्वजनिक संस्था होते हुए इन मान्यताओं को नहीं मान रही है, तो बोर्ड के संविधान को गैरकानूनी करार दिया जा सकता है।
सुब्रमण्यम ने अदालत में कहा, "आप (बीसीसीआई) एक सार्वजनिक संस्था हैं, लेकिन आप एक निजी संस्था की हैसियत का लुत्फ उठाना चाहते हैं। अगर आप सार्वजनिक व्यक्तित्व हैं तो आपको निजी व्यक्तित्व को छोड़ना पड़ेगा। ऐसा नहीं हो सकता। आप देश के लिए राष्ट्रीय टीम का चयन करते हैं। यह एक निजी संस्था नहीं हो सकती। यह एक सार्वजनिक संस्था है।"
सुब्रमण्यम ने कहा कि अगर बीसीसीआई ने पहले संवैधानिक मूल्यों का पालन किया होता तो संरचनात्मक सुधारों के लिए न्यायामूर्ति आर. एम. लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू करने की जरूरत ही नहीं पड़ती।
उन्होंने कहा, "सिफारिशें सही दिशा में हैं और संवैधानिक मूल्यों और संस्थागत शुचिता बनाए रखने के लिए कदम भी सही दिशा में उठाए जा रहे हैं।"
उन्होंने कहा कि वह सट्टेबाजी को कानूनी मान्यता देने की सिफारिश का समर्थन करते हैं।
बीसीसीआई की तरफ से दलील दे रहे के.के.वेणुगोपाल ने सट्टेबाजी को कानूनी मान्याता देने पर कहा कि इसके लिए कानून बनाने की जरूरत है, लेकिन बोर्ड इससे सहमत नहीं है क्योंकि सट्टेबाजी के लिए हर राज्य का अपना अलग कानून है।
एजेंसी