डोडा गणेश: जो जितनी जल्दी टीम इंडिया में आए, उतनी जल्दी ही इंटरनेशनल करियर भी खत्म हुआ
कुछ दिन पहले भारत के एक पुराने टेस्ट क्रिकेटर डोडा गणेश (Dodda Ganesh) से जुड़ी एक खबर मीडिया में बड़ी चर्चा में रही। इसमें लिखा था कि डोडा को केन्या टीम का चीफ बनाने के महज एक महीने बाद ही हटा दिया। जो कामचलाऊ कोच लेमेक ओनयांगो (Lameck Onyango) हटे थे डोडा गणेश के आने से, वे वापस अपनी ड्यूटी पर आ गए। इस खबर का पहला इशारा तो यही था कि डोडा गणेश का काम इतना ख़राब था कि एक ही महीने बाद उन्हें हटाने की नौबत आ गई।
इस खबर को लिखने वालों ने ये भी न सोचा कि भारत का एक पुराना क्रिकेटर, जिसे वैसे भी भारत में आज के क्रिकेट प्रेमी कोई ख़ास नहीं जानते, उसका कैसा परिचय दिया जा रहा है? सच्चाई ये है कि क्रिकेट केन्या (Cricket Kenya) ने गलती की और अपने संविधान की शर्तों को पूरा किए बिना, डोडा गणेश को कोच बनाया। बोर्ड का उन्हें कोच बनाने का फैसला मंजूर नहीं हुआ। वे अपनी गलती छिपा गए। नुकसान तो केन्या का है- क्रिकेट में बाक़ी कई एसोशिएट टीम से पीछे रहने के बाद अपनी क्रिकेट को सही राह पर डालने का एक और मौका खो दिया। डोडा तो टीम के साथ मेहनत कर रहे थे। एक समय जिस केन्या क्रिकेट को टेस्ट दर्जा हासिल करने का दावेदार मान रहे थे, वह आज बैकफुट पर है।
इस तरह से एक इंटरनेशनल टीम का कोच बनने का ये जल्दबाजी का प्रमोशन डोडा गणेश के लिए कोई अच्छा अनुभव नहीं रहा। वैसे इस 4 टेस्ट और 1 वनडे इंटरनेशनल खेले क्रिकेटर को ये एहसास पहले से है कि जल्दबाजी का प्रमोशन करियर के लिए कोई ख़ास फायदे वाला नहीं होता। घरेलू क्रिकेट सर्किट में रिकॉर्ड शानदार- कर्नाटक के लिए 2000+ रन और 365 विकेट। 1997 में जब सचिन तेंदुलकर कप्तान थे तो टीम इंडिया में आए और राहुल द्रविड़, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण जैसे दिग्गजों के साथ खेल चुके हैं। कई खिलाड़ियों के बारे में ये लिखा जाता है कि उनका टेलेंट गलत वक्त पर चमका- पहले से टीम में ऐसे खिलाड़ी मौजूद थे कि उन्हें खेलने का सही मौका ही न मिल सका। ये स्टेटमेंट डोडा गणेश के लिए बिलकुल सही है। ऐसे गेंदबाज जिसे, बेहतरीन होने के बावजूद 1990 के दशक के आखिरी सालों में न सिर्फ टीम इंडिया, कर्नाटक टीम में भी एक जगह के लिए जवागल श्रीनाथ, वेंकटेश प्रसाद और अनिल कुंबले जैसे गेंदबाजों से मुकाबला करना पड़ा। अच्छे पेसर थे पर श्रीनाथ और वेंकटेश पहली पसंद थे और ये सब सिर्फ डोडा ने नहीं, सुनील जोशी, डेविड जॉनसन और विजय भारद्वाज जैसों ने भी झेला।
तब भी जो मौका मिला उसमें डोडा गणेश चमके, कर्नाटक की टीम में आ गए और इस तरह के मुकाबले के बावजूद हाई-प्रोफाइल टीम इंडिया में खेलने के दावेदार बन गए।1996 की ईरानी ट्रॉफी में 11 विकेट (6-84 + 5-89) जिनमें नवजोत सिद्धू और वीवीएस लक्ष्मण (दो बार) जैसे टॉप विकेट भी थे, एकदम सिलेक्टर्स के रडार पर ले गए और 1997 के दक्षिण अफ्रीका टूर की टीम के लिए बुलावा आ गया। कई बड़े गेंदबाज मौजूद थे तब पर डोडा को बड़ी चर्चा मिली। उससे उम्मीद का पहाड़ उन पर लाद दिया पर सच ये है कि वे जल्दबाजी में इंटरनेशनल क्रिकेट खेले सही ग्रूमिंग के बिना। नतीजा- 2 टेस्ट में 43 ओवर में 165 की औसत से 1 विकेट। जो एक वनडे जिम्बाब्वे के विरुद्ध खेला उसमें 5 ओवर में 1 विकेट मिला।
ऐसे साधारण से प्रदर्शन के बावजूद, वेस्टइंडीज के अगले टूर के लिए भी टीम में रहे। ब्रिजटाउन टेस्ट में 4 विकेट पर ये टेस्ट भारत के जीत के लिए 120 रन भी न बना पाने के लिए बदनाम हो गया। उस पर जॉर्जटाउन के अगले टेस्ट में कोई विकेट न मिला तो टीम इंडिया से ऐसे बाहर किए गए कि फिर कभी उनके नाम की चर्चा भी नहीं हुई- कभी वापसी नहीं की। जितनी जल्दी टीम में आए- उतनी जल्दी बाहर कर दिए गए।
वे खुद मानते हैं कि एकदम सब कुछ नया और बड़ी जल्दी मिल गया- फ्लाइट में पहली बार सफ़र, 5 स्टार होटल जिनके अंदर तक जाने के बारे में न सोचा था, वहां ठहरने लगे, सीधे दक्षिण अफ़्रीका टूर- ये सब वे पचा न पाए। उस पर लगातार नए गेंदबाजों से मिल रही चुनौती। घटिया बल्लेबाज होने का भी नुकसान हुआ। किसी ने कभी कहा ही नहीं कि बैटिंग पर भी ध्यान दो। 2007 में रिटायर हो गए। उसके बाद पॉलिटिक्स में जाने की जल्दबाजी की बिना सही ग्रूमिंग तो वहां भी मात खाई। वापस क्रिकेट में आ गए और क्रिकेट से प्यार जारी रहा। 2012 रणजी ट्रॉफी के लिए गोवा के कोच थे और अब जब केन्या का ऑफर मिला तो निश्चित तौर पर प्रमोशन था पर ऐसा जो रास न आया।
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- चरनपाल सिंह सोबती