1983 वर्ल्ड कप की पूरी कहानी, जब टीम इंडिया ने किया क्रिकेट इतिहास का सबसे बड़ा उलटफेर

Updated: Fri, Sep 29 2023 15:30 IST
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भारतीय क्रिकेट टीम ने अपना पहला वर्ल्ड कप साल 1983 में जीता था और कपिल देव की कप्तानी में जब टीम इंडिया ने ये करिश्मा किया तो खुद खिलाड़ियों को भी यकीन नहीं हुआ कि वो कैसे जीत गए। फाइनल में भारत ने ताकतवर वेस्टइंडीज को मात देकर इस करिश्मे को अंजाम दिया था। उस समय भारत में क्रिकेट इतना पोपुलर नहीं था यही कारण है कि फैंस उस वर्ल्ड कप की बहुत कम बात करते हैं लेकिन हम इस आर्टिकल में उस वर्ल्ड कप के बारे में बहुत बात करने वाले हैं और आपको इतिहास में लेकर जाने वाले हैं। तो चलिए आपको बताते हैं कि कैसे कपिल देव की टीम ने अपना नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज करवाया।

1983 वर्ल्ड कप की शुरुआत

वर्ल्ड कप 1983 (आधिकारिक तौर पर प्रूडेंशियल कप '83) क्रिकेट वर्ल्ड कप टूर्नामेंट का तीसरा संस्करण था। ये टूर्नामेंट 1983 में 9 से 25 जून तक इंग्लैंड में आयोजित किया गया था। इस आयोजन में आठ देशों ने भाग लिया। प्रारंभिक मैच चार-चार टीमों के दो ग्रुपों में खेले गए और प्रत्येक देश ने अपने ग्रुप में दूसरी टीमों के साथ दो बार खेला। प्रत्येक ग्रुप की टॉप दो टीमें सेमीफाइनल के लिए क्वालीफाई हुईं।

फॉर्मैट

सभी मैच प्रति पारी 60 ओवरों के थे और पारंपरिक सफेद कपड़ों में और लाल गेंदों से खेले गए थे। इस दौरान कोई भी डे-नाइट मैच नहीं था।

आठ टीमें

इस टूर्नामेंट के लिए कुल 8 टीमों ने क्वालीफाई किया (सात पूर्ण आईसीसी सदस्य, जिनमें हाल ही में नियुक्त पूर्ण सदस्य श्रीलंका और जिम्बाब्वे शामिल थे)। इन 8 टीमों को 2 ग्रुपों में बांटा गया। ग्रुप ए में इंग्लैंड, न्यूज़ीलैंड, श्रीलंका और पाकिस्तान की टीमें थी जबकि ग्रुप बी में भारत, वेस्टइंडीज, ऑस्ट्रेलिया, जिम्बाब्वे की टीमें थी।

सेमीफाइनल की कहानी

ग्रुप ए से इंग्लैंड और पाकिस्तान ने सेमीफाइनल के लिए क्वालिफाई किया जबकि ग्रुप बी से भारत और वेस्टइंडीज की टीम ने सेमीफाइनल के लिए क्वालिफाई किया। पहले सेमीफाइनल में भारत का सामना इंग्लैंड से हुआ जहां 22 जून को ओल्ड ट्रैफर्ड में इंग्लैंड ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया। अंग्रेज बल्लेबाजों भारतीय गेंदबाजों के सामने बड़ा स्कोर बनाने में असफल रहे और पूरी टीम 60 ओवरों में 213 रन बनाकर ऑल आउट हो गई। इंग्लैंड के लिए ग्रीम फाउलर (59 गेंदों में 33 रन, 3 चौके) ने सबसे ज्यादा रन बनाए। जबकि भारत के लिए कपिल देव ने ग्यारह ओवर में 35 रन देकर 3 विकेट लिए। वहीं, मोहिंदर अमरनाथ और रोजर बिन्नी ने दो-दो विकेट लिए। जवाब में, भारतीय टीम ने यशपाल शर्मा (115 गेंदों में 61, 3 चौके, 2 छक्के) और संदीप पाटिल (32 गेंदों में 51, 8 चौके) की शानदार अर्धशतकीय पारियों के चलते 54.4 ओवर में ही लक्ष्य हासिल कर लिया और 6 विकेट से जीत हासिल करके फाइनल में जगह बना ली। मोहिंदर अमरनाथ (92 गेंदों में 46 रन, 4 चौके, 1 छक्का) को उनके हरफनमौला प्रदर्शन के लिए मैन ऑफ द मैच का पुरस्कार मिला।

 

दूसरा सेमीफाइनल

उसी दिन ओवल में पाकिस्तान और वेस्टइंडीज के बीच दूसरा सेमीफाइनल खेला गया। वेस्टइंडीज ने टॉस जीतकर पाकिस्तान को बल्लेबाजी के लिए आमंत्रित किया। पाकिस्तानी टीम को अपने बल्लेबाजों से उम्मीद थी कि वो एक बड़ा स्कोर बनाएंगे लेकिन पूरी टीम सिर्फ 60 ओवरों में 8 विकेट खोकर सिर्फ 184 रन ही बना पाई। पाकिस्तान के लिए मोहसिन खान (176 गेंदों में 70 रन, 1 चौका) ने टीम के लिए सबसे ज्यादा रन बनाए। मोहसिन के अलावा और कोई भी पाकिस्तानी बल्लेबाज वेस्टइंडीज के मजबूत गेंदबाजी आक्रमण के खिलाफ ना टिक सका। वेस्टइंडीज के लिए मैल्कम मार्शल (3/28) और एंडी रॉबर्ट्स (2/25) ने गेंद से शानदार प्रदर्शन किया। इस मामूली से लक्ष्य का पीछा करते हुए वेस्टइंडीज ने विव रिचर्ड्स (96 गेंदों में 80 रन, 11 चौके, 1 छक्का) की शानदार पारी के चलते केवल दो विकेट खोकर लक्ष्य को हासिल कर लिया। विवियन रिचर्ड्स को उनकी शानदार बल्लेबाजी के लिए मैन ऑफ द मैच का पुरस्कार दिया गया।

फाइनल की कहानी

भारत वर्ल्ड कप इतिहास का पहला फाइनल खेल रहा था जबकि वेस्टइंडीज लगातार तीसरा वर्ल्ड कप फाइनल खेल रही थी और पूरी दुनिया को ये मैच सिर्फ एक औपचारिकता लग रहा था क्योंकि भारतीय टीम उस समय ताकतवर वेस्टइंडीज के सामने कहीं भी नहीं टिकत थी लेकिन वो कहते हैं ना कि क्रिकेट में जब तक आखिरी गेंद ना फेंकी जाए तब तक कुछ भी हो सकता है, इस मैच में वैसा ही कुछ देखने को मिला।

इस बड़े फाइनल में अंडरडॉग भारत टॉस हार गया और उसे वेस्टइंडीज के खिलाफ पहले बल्लेबाजी करने के लिए कहा गया। इस मैच में भारतीय बल्लेबाजों से तगड़ी लड़ाई की उम्मीद थी लेकिन केवल कृष्णमाचारी श्रीकांत (57 गेंदों में 38) और मोहिंदर अमरनाथ (80 गेंदों में 26) ने ही लड़ने का दमखम दिखाया और बाकी बलल्लेबाजों ने घुटने टेक दिए। गिरते-पड़ते भारतीय टीम 54.4 ओवरों में 183 रन बनाकर ऑल आउट हो गई।

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वेस्टइंडीज के मज़बूत बैटिंग ऑर्डर के लिए 360 गेंदों में 184 रन बनाना बहुत आसान बात थी लेकिन ये फाइनल मुकाबला था और दबाव वेस्टइंडीज पर हावी हो गया।भारतीय गेंदबाजों ने इस मैच में चमत्कारिक गेंदबाजी की और मौसम और पिच की स्थिति का पूरी तरह से फायदा उठाते हुए वेस्टइंडीज को 52 ओवरों में 140 रनों पर समेट दिया। भारतीय टीम की 43 रनों से जीत क्रिकेट इतिहास में सबसे आश्चर्यजनक उलटफेरों में से एक थी। ये अब भी वर्ल्ड कप फाइनल में सफलतापूर्वक बचाव किया गया सबसे कम स्कोर भी रहा। अमरनाथ और मदन लाल ने तीन-तीन विकेट लिए। जबकि वेस्टइंडीज के लिए विव रिचर्ड्स 28 गेंदों में 33 रन बनाए। अमरनाथ सबसे किफायती गेंदबाज थे, उन्होंने अपने सात ओवरों में केवल 12 रन दिए, जबकि 3 विकेट लिए, और उनके हरफनमौला प्रदर्शन के लिए एक बार फिर उन्हें मैन ऑफ द मैच पुरस्कार से सम्मानित किया गया। हैरानी वाली बात ये रही कि 1983 वर्ल्ड कप में कोई 'मैन ऑफ द सीरीज' नहीं दिया गया। इस मैच में वैसे तो कई यादगार पल रहे लेकिन कपिल देव का विवियन रिचर्ड्स का कैच पकड़ना और बाद में लॉर्ड्स की बालकनी में वर्ल्ड कप की ट्रॉफी पकड़ना भारतीय क्रिकेट इतिहास के सबसे सुनहरे पलों में से एक है।

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