संध्या अग्रवाल: टीम इंडिया की वो खिलाड़ी जो महिला क्रिकेट ने एक टेस्ट में दो 100 लगाने की करीब पहुंची
Sandhya Agarwal: क्या आपने गौर किया कि 19 अक्टूबर को इंदौर के होल्कर स्टेडियम में भारत-इंग्लैंड मैच शुरू होने से पहले, मैच शुरू होने की प्रतीक वाली घंटी किसने बजाई? एक महिला को ये सम्मान दिया और वह कोई और नहीं, इंदौर की अपनी संध्या अग्रवाल थीं। हो सकता है आज के क्रिकेट प्रेमियों ने तो उनका नाम भी न सुना हो।
एक पूर्व भारतीय क्रिकेटर, जिनमे नाम कई साल तक किसी भी भारतीय के सबसे बड़े टेस्ट स्कोर का रिकॉर्ड रहा। मिताली ने 2002 में 214 रन बनाकर यह रिकॉर्ड तोड़ा था। संध्या ने 1986 में वुर्स्टर में इंग्लैंड के विरुद्ध 190 रन बनाए थे और तब तो ये महिला क्रिकेट में ही टॉप टेस्ट स्कोर था और इसके लिए बेट्टी स्नोबॉल के 189 रन का रिकॉर्ड तोड़ा था।
संध्या उन कुछ महिला क्रिकेटर में से एक हैं जिनका करियर औसत 50 से ज़्यादा रहा है। कम से कम 10 पारी खेली भारत की टेस्ट क्रिकेटर में से सिर्फ शेफाली वर्मा (63.00), स्मृति मंधाना (57.18), संध्या अग्रवाल (50.45) और हेमलता काला (50.30) का नाम इस लिस्ट में हैं।
संध्या का घरेलू और विदेश में खेले टेस्ट का रिकॉर्ड बड़ा दिलचस्प है:
घरेलू: 6 टेस्ट, 9 पारी, 537 रन, 59.66 औसत
विदेश: 7 टेस्ट, 14 पारी, 573 रन, 44.07 औसत
भारत की ओर से, बाहर कम से कम 10 पारी खेली क्रिकेटर में से सिर्फ मिताली राज (47.64) का बल्लेबाजी औसत उनसे बेहतर है। भारत के लिए बाहर सिर्फ मिताली राज (214), संध्या अग्रवाल (190 और 132), स्मृति मंधाना (127), शुभांगी कुलकर्णी (118) और शांता रंगास्वामी (108) ने 100 बनाए हैं और संध्या ने तो ऐसे दो 100 बनाए हैं।
किसी भी महिला क्रिकेटर ने एक टेस्ट में दो 100 नहीं लगाए हैं पर इस रिकॉर्ड के लिए सबसे करीबी नाम संध्या अग्रवाल का है- 1983-84 में मुंबई में ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध 134 और 83 रन बनाए थे।
संध्या अग्रवाल ने यह सब तब हासिल किया जब भारत में महिला क्रिकेट के लिए कोई सही ढांचा तक नहीं था और साथ में, न कोचिंग की सही सुविधा और न ही बीसीसीआई का सपोर्ट। अपने शहर इंदौर में, वह नेहरू स्टेडियम के करीब की गलियों में लड़कों के साथ खेलकर बड़ी हुईं। तब शायद ही कभी लेदर बॉल से खेला हो, वह तो कॉर्क बॉल की प्रॉडक्ट हैं। न अपने खेल की बेहतरी का पता था और न ये कि लड़कियां इंटरनेशनल क्रिकेट खेलती हैं। मैच खेलने ट्रेन से सफर करो तो रिजर्वेशन जैसी बुनियादी सुविधा भी तब लक्जरी थी।
बहरहाल जब भारत के लिए खेलना शुरू किया, तो घरेलू फ्रंट पर भी हालात बदले। ख़ास तौर पर तब जब खुद क्रिकेट के शौकीन माधवराव सिंधिया ने रेलवे मिनिस्टर बनने के बाद रेलवे को सबसे मजबूत टीम में से एक बनाने की कोशिश शुरू की। उन्होंने 1985 में संध्या अग्रवाल को रेलवे में नौकरी का ऑफर दिया और रेलवे को एक मजबूत टीम बनाने का जिम्मा सौंपा।
1984 में अहमदाबाद में ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध टेस्ट डेब्यू 71 रन के स्कोर के साथ और मुंबई में अगली दो पारी में स्कोर 134 और 83 थे। उसी सीरीज़ में वनडे डेब्यू भी किया और 64 रन बनाए। अगले साल, न्यूजीलैंड के विरुद्ध कटक में 106 और लखनऊ में 98 रन बनाए। 1986 में इंग्लैंड के अपने पहले टूर में ब्लैकपूल में दूसरे टेस्ट में 132 रन और वुर्स्टर के अगले टेस्ट में बड़े स्कोर वाला रिकॉर्ड बना। पिछला वर्ल्ड रिकॉर्ड 1935 से चला आ रहा था। संध्या ने 190 रन बनाए और उस रिकॉर्ड को तो तोड़ दिया पर 200 बनाने से चूक गईं।
ऐसे शानदार स्कोर और वे बल्लेबाजी की सुपरस्टार थीं। किस्मत देखिए के इस टॉप फार्म के बावजूद अगले लगभग पांच साल तक भारत ने कोई इंटरनेशनल क्रिकेट खेला ही नहीं और इसमें 1988 का वर्ल्ड कप भी निकल गया। इंटरनेशनल क्रिकेट खेलने के लिए पैसा ही नहीं था।
उधर ब्रिटिश मीडिया ने उनकी बेहतरीन बल्लेबाजी की तारीफ से ज्यादा, धीमी बल्लेबाजी और सिर्फ अपने रिकॉर्ड के लिए खेलने के आरोप के साथ आलोचना शुरू कर दी। ब्लैकपूल में 132 रन 6 घंटे और 27 मिनट में बनाए थे जबकि वुर्स्टर में 9 घंटे और 23 मिनट तक क्रीज पर टिककर 523 गेंद पर 190 रन बनाए। ये कोई ध्यान नहीं देता कि उस समय भारत के लिए टेस्ट ड्रॉ के लिए खेलना भी 'जीत' था। ब्लैकपूल टेस्ट पर, एक ब्रिटिश अखबार ने लिखा, 'उन्होंने बेट्टी स्नोबॉल का 1935 से चला आ रहा रिकॉर्ड भले ही एक रन से तोड़ दिया पर साथ ही लगभग हर दर्शक का बेहतर क्रिकेट देखने की इच्छा भी खत्म कर दी। यह बड़ी तकलीफ देने वाली, बेहद लंबी लेकिन एक शानदार उपलब्धि थी।'
1995 में क्रिकेट से रिटायर हुईं तो उन कुछ क्रिकेटर में से एक रहीं जिन्होंने रेलवे स्टाफ के तौर पर एक्टिव नौकरी की और नियमित ड्यूटी दी। वैसे अपनी पसंदीदा पारी के तौर पर वे ब्लैकपूल टेस्ट के 132 को चुनती हैं। भारतीय क्रिकेटर में सबसे ज़्यादा टेस्ट रन (1,110) का रिकॉर्ड आज भी उनके नाम है और सच तो ये है कि 1,000 टेस्ट रन बनाने वाली अकेली भारतीय खिलाड़ी हैं।रिटायर होने के बाद, मध्य प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन से भी जुड़ी और बीसीसीआई की वूमन कमेटी की मेंबर बनीं। 2017 में उन्हें एमसीसी ने लाइफ मेंबरशिप का ऑफर दिया।
ये देखकर अच्छा लगता है कि पूर्व भारतीय महिला क्रिकेटरों को इंटरनेशनल मैचों की शुरुआत से पहले की घंटी बजाने का सम्मान दिया जा रहा है। इस साल मिताली राज ने एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी में इंग्लैंड के विरुद्ध पुरुष टेस्ट के चौथे दिन का खेल शुरू करने के लिए घंटी बजाई थी।
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चरनपाल सिंह सोबती