IPL: टीम के सपोर्ट स्टाफ में एक ऐसा नाम जिसकी दुनिया में कोई मिसाल नहीं !

Updated: Mon, May 16 2022 10:59 IST
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एमएस धोनी की चेन्नई सुपर किंग्स के सपोर्ट स्टॉफ में एक नाम ऐसा है जिसका जिक्र हो सकता है आपको टीम के ऑफिशियल परिचय में पढ़ने को न मिले। वजह साफ़ है- टीम फ्रेंचाइजी  ने कोई ऑफिशियल कॉन्ट्रैक्ट नहीं किया और न ही इस कॉन्ट्रैक्ट का कोई ऑफिशियल स्पांसर है। इतना ही नहीं, ये सपोर्ट स्टॉफ तभी नजर आता है, जब टीम चेन्नई में खेलती है। आप को ये सारा जिक्र किसी पहेली जैसा लग रहा होगा। नाम जानेंगे तो और भी हैरान रह जाएंगे।

कोविड -19 महामारी की शुरुआत के दिनों में जब कई काम करने वाले तंगी में थे तो कुछ हाथ उनकी मदद के लिए भी आगे आए। उन दिनों की एक खबर ये भी थी कि भारत के पूर्व सीमर इरफान पठान ने जो चैरिटी की और चेन्नई के आर भास्करन को 25,000 रुपये की मदद दी। आईपीएल स्थगित होने से उनके पास से एकदम काम चला गया था और गुजारा मुश्किल हो रहा था। कौन हैं ये आर भास्करन? चेन्नई में उन्हें, चेन्नई सुपर किंग्स का ऑफिशियल कॉबलर (मोची) कहते हैं। उन्हें ये टाइटल किसने दिया- कोई नहीं जानता।

भास्करन 1993 से चेन्नई के वलजाह रोड पर बैठे हैं। धीरे-धीरे, करीब के स्टेडियम से क्रिकेटर छोटी- छोटी मरम्मत के लिए आने लगे और वे चेन्नई की क्रिकेट से जुड़ गए। आईपीएल शुरू होने के बाद तो विदेशी क्रिकेटर भी आने लगे। इसीलिए वे चेन्नई टीम के ऑफिशियल कॉबलर बन गए और मैच के दिनों  में तो उन्हें  एमए चिदंबरम स्टेडियम के अंदर, खिलाड़ियों और मैच ऑफिशियल के एरिया के बाहर, एक छोटे से वर्क स्टेशन से काम करने दिया जाता है- खिलाड़ी और ऑफिशियल उनके पास जाते रहते हैं, न पुलिस रोकती है और न एंटी करप्शन वाले। उस दिन का काम का खर्चा धोनी की टीम वाले देते हैं। कोविड के बाद से दिक्कत ये आ रही है कि चेन्नई में मैच नहीं तो काम नहीं ! उनका परिवार है- भास्करन, उनकी पत्नी, दो बेटे, एक बेटी और एक बहू के साथ एक छोटे से घर में रहते हैं। जब इरफ़ान के मदद करने की खबर सोशल मीडिया पर शेयर हुई तो कई क्रिकेट प्रेमियों ने भी भास्करन की मदद की।

भास्करन बताते हैं कि आईपीएल के दिनों में, उन्हें हर मैच के 1,000 रुपये मिलते थे और साथ में सीएसके के खिलाड़ियों से टिप अलग से मिल जाती थी। सीजन के आखिर में, खिलाड़ी और कोच मिलकर एक बड़ी टिप भी दे जाते थे। वे 2019 को याद करते हैं- धोनी ने टिप दी और उसके अलावा उन्हें लगभग 25,000 रुपये मिले।आईपीएल न होने से वे हमेशा की तरह सड़क पर ही बैठने लगे पर कोविड की सख्ती में काम भी चला गया।

क्रिकेटरों का काम करते-करते वे क्रिकेटरों के जूतों और पैड की सिलाई से लेकर हेलमेट की मरम्मत तक के एक्सपर्ट हो गए हैं। भास्करन कहते हैं वे एमएस धोनी सहित सीएसके के कई खिलाड़ियों के लिए 'दोस्त' हैं- वे उनका हाल-चाल पूछते हैं।

आप चेन्नई जाएं तो पहली नज़र में, शहर के चेपॉक स्टेडियम के ठीक बाहर, भास्करन की सड़क के किनारे की जूता-मरम्मत की दुकान, काफी साधारण दिखती है। ध्यान से देखें तो मोची के चारों ओर अखबारों की कतरनें टंगी हैं- उन क्रिकेटरों की ख़बरों वाली जो उनके पास आते रहते हैं तरह-तरह की मरम्मत के काम के लिए। उनके ग्राहकों में सचिन तेंदुलकर, एमएस धोनी (जिन्हें वह बातचीत में एमएस कहते हैं), ड्वेन ब्रावो और डेविड वार्नर शामिल हैं। चेपॉक में क्रिकेट से वे पिछले 30 साल से भी ज्यादा से जुड़े हैं और स्टेडियम को अपना 'दूसरा घर' कहते हैं। कोई उन्हें स्टेडियम में जाने से नहीं रोकता। वन डे और टेस्ट मैचों के अलावा, भास्करन रणजी ट्रॉफी मैचों में भी स्टेडियम में मौजूद रहते हैं- 'जब भी स्टेडियम में कोई मैच होता है, मुझे अंदर बुलाया जाता है।'

उनका कहना है कि सबके पास नया सामान आता है पर खिलाड़ी हमेशा अपने पुराने गियर से भावुकता में जुड़े रहते हैं। जैसे कि- एमएस अपने भाग्यशाली पीले जूते और घुटने के पैड पहनते हैं और इन्हीं से सीएसके के लिए आईपीएल में खेलते हैं। खिलाड़ियों के पास कुछ ख़ास हेलमेट और जूते होते हैं जिन्हें वे भाग्यशाली मानते हैं। जब भी, मैच के बीच में कोई मुश्किल आती है, तो वे 10 मिनट के अंदर, फौरन मरम्मत और सुधार कर खिलाड़ी को ग्राउंड में जाने से पहले दे दे ते हैं।

भास्करन इस जगह आए कैसे ? वे 1993 से यहां बैठ रहे हैं। इससे पहले, यही काम करने वाले उनके ससुर यहां बैठते थे। वे स्टेडियम नहीं जाते थे पर एक बार मुश्किल में भास्करन को स्टेडियम बुलाया गया तो वे चले गए- उसके बाद से यहां की क्रिकेट का हिस्सा बन गए।

कई यादें हैं उनके पास। 

एमएस धोनी : वे स्टेडियम में होते हैं, तो नाम से बुलाते हैं। हैलो कहते हैं। मेरे पास बैठते हैं और यह भी बताते हैं कि कैसा काम चाहते हैं। एमएस धोनी को वे 2005 से चेपॉक आते देख रहे  है। वह उनका डेब्यू टेस्ट था। 2020 में भी, जब सीएसके का कैंप था, तो वह भास्करन से मिलने आए, साथ बैठकर बात की- चाय भी पी। वह जोर देकर कहते हैं कि भास्करन उनसे सिर्फ तमिल में बात करें- वह उन्हें हमेशा 'माची (भाई)'  कहते हैं, हाल - चाल पूछते हैं। दोस्त हैं उनके।

सचिन तेंदुलकर : एक बार पैड सिलवाए थे। बकल वाले पैड- आज के पैड से अलग। आज के सिंथेटिक पैड में छेद की जरूरत नहीं और अगर फट जाए तो स्ट्रैप ठीक करें। कुछ साल पहले, सचिन ने उनके परिवार के लिए एक आईपीएल मैच के लिए टिकट का भी इंतजाम कराया था- और बाद में परिवार से मिले भी।

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इन सब खट्टी- मीठी यादों के बीच वे अपनी दिक्कतों को भूल जाते हैं। पूरी क्रिकेट की दुनिया में ऐसी और कोई मिसाल नहीं।  

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