'दूल्हा भाई' वाला पारिवारिक ड्रामा जो एक खिलाड़ी के लगभग 48 साल की उम्र में टेस्ट डेब्यू की वजह बन गया!

Updated: Sun, Oct 26 2025 15:49 IST
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हाल ही में, पाकिस्तान ने 38 साल और 299 दिन की उम्र में, खब्बू स्पिनर आसिफ अफरीदी (Asif Afridi) को दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध रावलपिंडी टेस्ट में डेब्यू कराया और वे उनके लिए, सबसे बड़ी उम्र में टेस्ट डेब्यू करने वालों की लिस्ट में तीसरे नंबर पर आ गए। इस सदी की बात करें तो वे टेस्ट डेब्यू करने वालों में दूसरे सबसे बड़ी उम्र के खिलाड़ी हैं। 2018 में आयरलैंड के एड जॉयस (39 साल 231 दिन) ने तो इससे भी बड़ी उम्र में डेब्यू किया था। आसिफ 57 फर्स्ट क्लास क्रिकेट मैच (198 विकेट) के अनुभव से टेस्ट खेले। 

पाकिस्तान के लिए जिन दो खिलाड़ियों ने उनसे भी बड़ी उम्र में टेस्ट डेब्यू किया, उनमें से पहला नाम मीरान बख्श (जिन्हें बक्स भी लिखते हैं) का है जो 47 साल और 284 दिन (विरुद्ध भारत, लाहौर, 1955) की उम्र में अपना पहला टेस्ट खेले और दूसरा नाम आमिर इलाही का है 44 साल और 45 दिन (विरुद्ध भारत, दिल्ली, 1952) की उम्र के साथ।

सबसे बड़ी उम्र में टेस्ट डेब्यू करने वाले खिलाड़ी जेम्स साउथर्टन हैं जो 49 साल और 119 दिन की उम्र में अपना पहला टेस्ट मैच इंग्लैंड के लिए 1877 में मेलबर्न में ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध खेले थे। उनके बाद मीरान बख्श हैं। मीरान बख्श की स्टोरी बेहद दिलचस्प, रहस्यमयी और कई सब-प्लॉट से बनी हुई है। बस समझ लीजिए कि उनका टेस्ट डेब्यू एक ऐसा प्रयोग था जिसमें न तो कोई तुक थी और न कोई सही वजह। एक पारिवारिक ड्रामा इस टेस्ट डेब्यू की वजह बन गया। 

जब भारत की टीम 1954-55 में पाकिस्तान टूर पर गई, तब पाकिस्तान टीम में ऑफ स्पिनर के तौर पर जुल्फिकार अहमद खेलते थे। सीरीज शुरू होने से पहले, अचानक ही उन्होंने कह दिया कि वे इसमें नहीं खेलेंगे। कोई वजह नहीं बताई पर उस 'वजह' को जानते सब थे। असल में स्टोरी ये है कि तब पाकिस्तान टीम के कप्तान और सर्वे-सर्वा अब्दुल हफीज कारदार उनके दूल्हा भाई (बहन शहज़ादी के पति) थे। जब टीम 1954 में इंग्लैंड टूर पर गई थी तो कारदार ने चुपचाप, टूर के दौरान ही एक इंग्लिश लड़की से शादी कर ली। जब इस शादी का पिटारा खुला तो पारिवारिक ड्रामा शुरू हो गया। इसी नाराजगी में जुल्फिकार ने कारदार की कप्तानी में खेलने से इंकार कर दिया। 

जुल्फिकार के न खेलने से टीम में एक ऑफ स्पिनर की जगह बन गई। सीरीज के पहले दो टेस्ट तो कामचलाऊ इंतजाम के साथ खेल लिए पर एक विशेषज्ञ ऑफ स्पिनर की कमी बड़ी महसूस हो रही थी। इसी वेकेंसी को भरने के लिए पाकिस्तान ने मीरान को एक विशेषज्ञ ऑफ स्पिनर के तौर पर टेस्ट खेलने बुला लिया। 47 साल 284 दिन की उम्र में लाहौर में भारत के विरुद्ध तीसरे टेस्ट में वे पाकिस्तानी टीम की जर्सी पहन खेले पर साफ़ नजर आ रहा था कि इस उम्र में वह कारदार की स्कीम में फिट नहीं हो रहे। सिर्फ दो टेस्ट ही खेल पाए। कारदार कभी भी मीरान के टैलेंट पर भरोसा करते नजर नहीं आए। 

खैर, मीरान न सिर्फ एक टेस्ट खिलाड़ी, बड़े अलग तरह के खिलाड़ी के तौर पर इतिहास का हिस्सा बन गए। एक ऐसे खिलाड़ी जो सिर्फ अपने पक्के इरादे के दम पर ही टेस्ट खेल पाया। उनके पिता, मशहूर रावलपिंडी क्लब में, ग्राउंड्समैन थे। काम में अपने पिता की मदद करते हुए वे खेलने लगे और बिना किसी सही कोचिंग ऑफ-स्पिन गेंदबाजी शुरू कर दी। इस गेंदबाजी ने उन्हें, क्रिकेट प्रेमी इंग्लिश आर्मी अफसरों का फेवरिट बना दिया। वे नेट्स और लोकल क्लब मैचों में मीरान का इस्तेमाल करने लगे। थे तो ये सब दूसरे ग्रेड के क्रिकेट मैच। बेहतर दर्जे की क्रिकेट तो मीरान ने 42 साल की उम्र में खेलना शुरू किया।

1948-49: रावलपिंडी में, पाकिस्तान टूर पर आई पहली इंटरनेशनल टीम वेस्टइंडीज के विरुद्ध कमांडर-इन-चीफ इलेवन के लिए खेलते हुए पहली पारी में 5-62 की गेंदबाजी की जिसमें जॉर्ज हेडली और वॉलकॉट के विकेट भी थे। 

1949-50: कॉमनवेल्थ इलेवन टीम पाकिस्तान आई तो उनके विरुद्ध रावलपिंडी मैच में 82 रन देकर 10 विकेट (दोनों पारी में 5) लिए। मेहमान टीम में ऑस्ट्रेलिया के टेस्ट स्पिनर जॉर्ज ट्राइब भी थे। वे भी उनकी गेंदबाजी से बड़े प्रभावित हुए और उनकी तारीफ की।

इस तरह के मैच कभी फर्स्ट क्लास क्रिकेट मैच नहीं गिने गए। 

1949-50: अपने 43वें जन्मदिन से कुछ हफ्ते पहले, 1950 में सीलोन इलेवन (श्रीलंका) के विरुद्ध कमांडर-इन-चीफ इलेवन के लिए खेले और ये फर्स्ट क्लास क्रिकेट में डेब्यू था। 

विश्वास कीजिए कि इसके बाद अगले 5 साल में कोई और फर्स्ट क्लास मैच नहीं खेला। इसके बाद तो सीधे जनवरी 1955 में 47 साल और 284 दिन की उम्र में लाहौर टेस्ट में खेले। कारदार खुद ही सभी फैसले लेते थे। उन्हें मकसूद अहमद 'मेरी मैक्स' ने मीरान को खिलाने का सुझाव दिया था। टेस्ट के पहले दिन चमकती सफ़ेद क्रिकेट किट में (जबकि बाकी खिलाड़ी ऑफ-व्हाइट किट में थे), डाई किए काले बालों के साथ, मीरान सबसे अलग नजर आ रहे थे और वास्तव में ज़्यादा घुलते-मिलते नहीं थे।

1954-55 टेस्ट डेब्यू: मीरान बख्श ने लगभग सभी भारतीय बल्लेबाजों को परेशान किया। भारत की पहली पारी के 251 रन में उनका प्रदर्शन 48-20-82-2 था। हैरानी की बात ये कि दूसरी पारी में कारदार ने 8 गेंदबाज इस्तेमाल किए लेकिन मीरान को तकलीफ नहीं दी। 

1954-55 पेशावर टेस्ट: इस टेस्ट में पाकिस्तान ने 127 ओवर फेंके जिसमें मीरान को सिर्फ 10 ओवर मिले। कोई विकेट नहीं मिला।

इसके साथ ही उनका टेस्ट करियर खत्म हो गया। बहरहाल क्रिकेट करियर जारी रहा। तब तक संयोग से पाकिस्तान क्रिकेट की लाइफ-लाइन क़ायदे-आज़म ट्रॉफी शुरु हो गई थी। इसमें मीरान ऑफ स्पिनर के तौर पर चमकते रहे। 1956-57 में अपना सबसे बेहतर प्रदर्शन किया और ईस्ट पाकिस्तान (व्हाइट्स) के विरुद्ध ढाका में सर्विसेज के लिए 15 रन देकर 6 विकेट लिए और उन्हें 33 रन पर आउट कर दिया। 

1958-59: उनका आखिरी क्रिकेट सीज़न था और सर्विसेज के विरुद्ध रावलपिंडी में 72 रन देकर 9 विकेट लिए। लगभग 51 साल की उम्र तक कायदे-आजम ट्रॉफी में खेले। फर्स्ट क्लास क्रिकेट करियर रिकॉर्ड: 15 मैच में 19.43 औसत से 48 विकेट।

दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध मौजूदा सीरीज के पहले टेस्ट में, जब नोमान अली ने 39 साल की उम्र में विकेट लिए, तो ये 70 से भी ज्यादा साल में ऐसा पहला मौका था जब  पाकिस्तान के लिए, 39 साल या इससे भी बड़ी उम्र में किसी ने टेस्ट में विकेट लिया। 1955 में भारत के विरुद्ध लाहौर में मीरान के विकेट फौरन याद आ गए। संयोग से रावलपिंडी टेस्ट ने तो मीरान को और भी ज्यादा चर्चा दिला दी। 

एक मजेदार बात ये कि रावलपिंडी क्रिकेट स्टेडियम में मीरान बख्श के नाम पर एक एनक्लोजर है। स्टेडियम में आने वाले मेहमान कई बार गलतफहमी में ये समझ लेते हैं कि किसी 'पीर बाबा' के नाम पर, इस एनक्लोजर का नाम रखा है।

नोट : इस तरह के सभी रिकॉर्ड में उम्र टेस्ट के पहले दिन की लिखते हैं। 

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चरनपाल सिंह सोबती

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