एशेज़ ट्रॉफी के जन्म में छुपा प्यार: आयवो ब्लाय और फ्लोरेंस की अनकही कहानी

Updated: Wed, Nov 26 2025 08:00 IST
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Ivo Bligh England Captain: इन दिनों खेल रहे 2025-26 एशेज सीरीज के शुरू होने से पहले, इंग्लैंड के कप्तान बेन स्टोक्स (Ben Stokes) ने कहा था कि वह ऑस्ट्रेलिया में, एशेज जीतने वाले इंग्लैंड के कप्तान की लिस्ट में, शामिल होने के लिए बेताब हैं। इंग्लैंड के कप्तानों लिए ऑस्ट्रेलिया में एशेज जीतना कभी आसान नहीं रहा है। तब भी, एक इंग्लैंड कप्तान तो ऐसे हैं जो ऑस्ट्रेलिया से न सिर्फ एशेज, अपनी दुल्हन भी ले आए। 

जहां तक एशेज की शुरुआत की बात है, तो आम तौर पर यही मानते हैं कि अगस्त 1882 में ओवल में जब ऑस्ट्रेलिया ने इंग्लिश टीम को हराया तो बड़ा शोर हुआ। 'द स्पोर्टिंग टाइम्स' अखबार ने तो इसे इंग्लिश क्रिकेट की 'मौत' का नाम दे दिया और दुख जताते हुए एक नकली शोक संदेश भी छाप दिया। इस संदेश के आखिर में लिखा था: 'शव का अंतिम संस्कार कर, राख ऑस्ट्रेलिया ले जाएंगे।'

उसी साल, बाद में जब एक इंग्लिश टीम, ऑस्ट्रेलिया गई तो कप्तान इवो ब्लाइ ने कहा था कि वह एशेज वापस लाने आए हैं। इसी स्टेटमेंट से प्रेरणा ले, जब सिडनी टेस्ट में जीत के साथ ही वे सीरीज जीते तो कुछ युवा महिलाओं ने उन्हें एक छोटा सा टेराकोटा का कलश दिया। यही एशेज है और ये मानते हैं कि उसमें जलाई क्रिकेट बेल की राख है।

यह है इवो ब्लाइ की स्टोरी और कैसे उन्होंने 'एशेज की अपनी तलाश' पूरी की। इवो की टीम सीरीज का पहला टेस्ट हार गई थी पर उसके बाद इंग्लैंड ने मेलबर्न और सिडनी में जीत के साथ वापसी की। एशेज के इस ब्यौरे के पीछे एक लव स्टोरी भी है जिसका एशेज में कोई जिक्र नहीं है।

ब्लाइ न सिर्फ एशेज, अपनी दुल्हन, फ्लोरेंस मर्फी को भी वहां से इंग्लैंड लाए। मर्फी मेलबर्न में एक गवर्नेस के तौर पर काम कर रही थीं और उन महिलाओं में थीं जिन्होंने ब्लाइ को एशेज गिफ्ट की। एक और अनोखा रिकॉर्ड: ब्लाइ इंग्लैंड के अकेले ऐसे कप्तान हैं जिन्होंने टेस्ट मैच के दौरान अपनी लेडी लव को शादी के लिए प्रपोज किया।

तो, एशेज की शुरुआत, एक लव स्टोरी के इर्द-गिर्द घूमती है। इवो ब्लाइ एक ब्रिटिश अमीर आदमी के बेटे थे। जब इंग्लिश क्रिकेट की 'मौत' वाला नकली शोक संदेश उन्होंने पढ़ा तो उसी साल की सर्दियों में ऑस्ट्रेलिया टूर का इंतज़ाम करने में जुट गए (एशेज वापस लाने की अपनी इच्छा पूरी करने के लिए)। जो टीम बनी उसमें से क्रिकेटरों का पहला बैच शिप से रवाना हुआ। इनमें टीम कप्तान भी थे। 

उस शिप के यात्रियों में मेलबर्न क्रिकेट क्लब के प्रेसिडेंट सर विलियम क्लार्क और उनकी दूसरी पत्नी जेनेट भी थे। ब्लाइ और जेनेट बहुत जल्दी दोस्त बन गए, हालांकि वह उनसे उम्र में बहुत बड़ी थीं। टेराकोटा का कलश, जो अब एशेज है, उन्होंने ही दिया था (उन्होंने इसे इटली से खरीदा था)।

मेलबर्न पहुंचे तो क्लार्क ने उनके रहने का इंतज़ाम अपने विशाल मेंशन में ही किया। उस घर में 19 साल की एक बड़ी खूबसूरत गवर्नेस फ्लोरेंस मर्फी थी। आयरिश मूल की ये लड़की, बीचवर्थ के एक गोल्ड कमिश्नर और पुलिस मजिस्ट्रेट की सातवीं और सबसे छोटी संतान थीं। ब्लाइ को उनसे पहली नज़र में ही प्यार हो गया और उसके बाद तो उनकी पूरी कोशिश रहती थी कि वह उनके आस-पास ही रहें। 

जेनेट को बहुत जल्दी ब्लाइ के फ्लोरेंस के लिए प्यार का एहसास हो गया। उन्हें इस पर कोई आपत्ति नहीं थी पर वे दोनों के स्टेटस के फर्क से डरती थीं। जेनेट ने तो ब्लाइ को ये भी चेतावनी दी कि अगर वे सिर्फ़ मर्फी के सुंदर चेहरे पर फिदा हैं तो इस किस्से को यहीं भूल जाएं। इंग्लैंड के कप्तान ब्लाइ ने 1883 के नए साल की पूर्व संध्या पर फ्लोरेंस को प्रपोज किया और तब मेलबर्न में टेस्ट चल रहा था।

सीरीज के बाद ब्लाइ इंग्लैंड लौट आए। अपने माता-पिता से फ्लोरेंस से शादी की मंज़ूरी ली और जल्दी ही फिर से ऑस्ट्रेलिया चले गए। वहां क्लार्क परिवार ने ही शादी का सारा इंतजाम किया और सनबरी के सेंट मैरी चर्च में दोनों की शादी हो गई। तो इस लव स्टोरी के साथ, मशहूर इंग्लिश कप्तान अपनी दुल्हन ऑस्ट्रेलिया से ले आए। फ्लोरेंस रोज मर्फी इस तरह उस इंग्लिश क्रिकेटर का दिल जीतने के बाद मिसेज़ इवो ब्लाइ (बाद में काउंटेस ऑफ डार्नेल) बन गईं।

स्पष्ट है फ्लोरेंस उस एशेज से बड़ी नजदीक से जुड़ी थीं। उनके अनुसार एशेज के उस कलश में, असल में एक स्कार्फ की राख है। जेनेट, हवा की वजह से शिफॉन स्कार्फ़ पहनती थीं और जब सिडनी टेस्ट में जीत के बाद ब्लाइ को एशेज गिफ्ट करना था तो जल्दबाजी में उनके ही दो स्कार्फ को जला, अवॉर्ड सेरेमनी के लिए एशेज़ तैयार की थी। जिस मेंशन में ये सभी रहते थे, उसका नाम रूपर्ट्सवुड (Rupertswood) मेंशन है। ये आज भी मौजूद है और उसके गेट पर इसे एशेज की शुरुआत और जन्म की जगह बताने वाला, एक बोर्ड लगा हुआ है। 

इस स्टोरी से एक नया सवाल ये सामने आ गया कि उस कलश में वास्तव में किसकी राख है- किसी बेल की या स्कार्फ की? ब्लाइ परिवार के अपने नोट्स के मुताबिक़ इंग्लैंड की  सिडनी में 69 रन से जीत के बाद जब ब्लाइ रूपर्ट्सवुड मेंशन लौटे तो साथ में टेस्ट में इस्तेमाल दो बेल्स भी लाए थे। उन्हें यादगार के गिफ्ट कर दिया। इनमें से एक बेल को पेन होल्डर में बदल दिया था और ये लॉर्ड्स म्यूजियम में एशेज के कलश के बगल में रखा है।

एमसीसी ने कभी एशेज कलश में मौजूद राख (या और कुछ भी) की साइंटिफिक एनालिसिस की इजाज़त नहीं दी। वैसे 1998 में, ब्लाइ के बेटे की 82 साल की पत्नी ने ये दावा किया कि कलश में रखी एशेज किसी बेल की नहीं, उनकी सास के स्कार्फ की है। 

समय के साथ, फ्लोरेंस सोसाइटी में अपने पति से आगे निकल गईं। एक शौकिया पेंटर के तौर नाम चमकाया। बाद में एक कामयाब रोमांटिक नॉवेलिस्ट बनीं। उधर 
इवो 1900 में डार्नेल के 8वें अर्ल बने। पहले वर्ल्ड वॉर के दौरान, इस जोड़े ने अपने घर ‘कोबहम हॉल’ को घायल ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों के इलाज के लिए एक अस्पताल में बदल दिया। 1919 में, वॉर में ऐसे ही योगदान के सम्मान में, फ्लोरेंस को डेम ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर का टाइटल मिला।

इवो ब्लाइ की अप्रैल 1927 में 68 साल की उम्र में नींद में ही मौत हो गई। उनकी मौत के बाद फ्लोरेंस ने एशेज वाला वह कलश एमसीसी को सौंप दिया। 

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चरनपाल सिंह सोबती

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