न्यूजीलैंड के दिग्गज ली जर्मेन जो टेस्ट डेब्यू पर कप्तान बने, अब 50 साल में दूसरी बार होगा ऐसा
साउथ अफ्रीका ने न्यूजीलैंड टूर के लिए जो टेस्ट टीम चुनी उसकी बड़ी चर्चा हो रही है। वजह- टीम में 7 अनकैप्ड क्रिकेटर और कप्तान होंगे 27 साल के नील ब्रांड (Neil Brand), जो वास्तव में इसी के साथ टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू करेंगे यानि कि अपने पहले ही टेस्ट में कप्तान और ऐसा करने वाले 35वें खिलाड़ी बन जाएंगे।
इस लिस्ट में ऐसे क्रिकेटर शामिल हैं जो अपने देश के डेब्यू टेस्ट में कप्तान रहे। बाकी ऐसे जो किन्हीं ख़ास वजह से टेस्ट डेब्यू पर कप्तान बने लेकिन हाल के सालों में ऐसा बहुत कम हुआ है। सच ये है कि ब्रांड, पिछले 50 साल में ऐसा करने वाला दूसरे क्रिकेटर होंगे- उनसे पहले ये रिकॉर्ड 1995 में न्यूजीलैंड के ली जर्मेन के नाम आया था।
ब्रांड को अब टेस्ट डेब्यू पर ही कप्तान बनने का मौका दे रहे हैं तो उसकी वजह सब जानते हैं पर आखिरकार 1995 में ऐसा क्या हुआ था कि ली जर्मेन को टेस्ट डेब्यू पर कप्तान बना दिया? ली जर्मेन की चर्चा करते हैं। वे बड़ी मेहनत से क्रिकेटर बने थे- न सिर्फ क्रिकेट खेले, बहुत सारी क्रिकेट किताबें भी पढ़ीं और खुद अपनी विकेटकीपिंग और बल्लेबाजी को निखारा। 19 साल के थे तो फर्स्ट क्लास क्रिकेट में आए और कैंटरबरी के लिए खेले। 1990 में जब बर्ट वेंस के एक ओवर में 77 रन बनाए तो इस किस्से ने उन्हें खूब मशहूरी दिलाई। ये एक अलग स्टोरी है। कैंटरबरी के कप्तान के तौर पर 1991-92, 1992-93, 1993-94, 1995-96 और 1996-97 में शेल कप 50 ओवर टूर्नामेंट जीते और फर्स्ट क्लास टूर्नामेंट भी 3 बार।
उन सालों में न्यूज़ीलैंड क्रिकेट एक बड़े मुश्किल और विवादस्पद दौर से गुजर रही थी। टीम हार तो रही थी पर साथ में ड्रग्स लेने का किस्सा तथा कुछ और गड़बड़ियों की वजह से लगातार सुर्खियों में थे। परेशान सेलेक्टर्स ने आखिर में तय किया कि एक नए कप्तान के साथ टीम को एक नई पहचान देंगे। ये सोच वास्तव में कोच ग्लेन टर्नर के दिमाग की उपज थी। इस सोच में ली जर्मेन का नाम टॉप पर था क्योंकि सब कैंटरबरी के कप्तान के तौर पर उनकी तारीफ कर रहे थे- साथ वे बहुत अच्छे विकेटकीपर भी थे। ऐसे में, टेस्ट डेब्यू पर कप्तान बना दिए गए ली जर्मेन। उस समय टीम में दो सीनियर मार्टिन क्रो और केन रदरफोर्ड भी थे और ये अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि वे ऐसे फैसले से खुश नहीं थे- क्रो ने बाद में इसे 'मजाक' कहा तो उदास रदरफोर्ड तो मनमुटाव में रिटायर हो गए।
जर्मेन ने टेस्ट डेब्यू किया 1995-96 के भारत टूर पर बेंगलुरु टेस्ट में (तब टीम में मार्टिन क्रो, मार्क ग्रेटबैच और डैनी मॉरिसन जैसे सीनियर भी थे)- दोनों पारी में नंबर 8 पर बल्लेबाजी की तथा 48 और 41 रन बनाए और टॉप स्कोरर थे। उनकी टीम टेस्ट हार गई। अगले दो टेस्ट ड्रॉ रहे और जर्मेन पहले लिटमस टेस्ट में पास हो गए। वह कप्तान रहे दो साल से भी कम और उसमें सिर्फ एक टेस्ट जीत सके। जीत वाला टेस्ट एक रिकॉर्ड था क्योंकि 26 साल में पाकिस्तान में न्यूजीलैंड की ये पहली जीत थी। जब न्यूजीलैंड ने पहली बार वेस्टइंडीज में लिमिटेड ओवर इंटरनेशनल जीता, तब भी वे ही कप्तान थे। इंटरनेशनल क्रिकेट में कीपर के तौर पर उनके नाम एक ख़ास रिकॉर्ड ये है कि जितने बाई (24) रन दिए- उससे ज्यादा विकेट गिराने (29) में हिस्सेदारी थी।
जब न्यूजीलैंड ने ली जर्मेन ने को कप्तान बनाया तो इसे क्रिकेट में एक मिसाल माना गया था और ऐसा मानते हैं कि इसी सोच से प्रभावित होकर कुछ साल बाद साउथ अफ्रीका ने भी युवा ग्रीम स्मिथ को कप्तान बनाया था। स्मिथ बाद में एक कामयाब टेस्ट कप्तान साबित हुए। जर्मेन ने भी न्यूजीलैंड टीम के प्रदर्शन के ग्राफ को सुधारा था और जब स्टीफन फ्लेमिंग कप्तान बने तो जर्मेन की बदौलत टीम मुश्किलों से निकल चुकी थी। जर्मेन 12 टेस्ट खेले और इन सभी में कप्तान थे। तब कप्तान बनने के दावेदार में एडम परोरे भी थे।
टेस्ट कप्तान बनने से पहले- दिसंबर 1994 में, केन रदरफोर्ड की टीम में जर्मेन वनडे डेब्यू कर चुके थे। उसी मंडेला ट्रॉफी ट्रॉफी में (साउथ अफ्रीका में ट्रायंगुलर) जिसमें न्यूजीलैंड की टीम विवादों में फंसी थी- खराब खेलने से लेकर कैनबिस घोटाले तक सब कुछ हुआ। कुछ खिलाड़ियों को तो होटल के कमरे में मारिजुआना का धुंआ उड़ाते पकड़ा भी गया। इसके बाद रदरफोर्ड को हटा दिया और टीम के नंबर 1 कीपर टोनी ब्लेन को भी। मीडिया में न्यूजीलैंड क्रिकेट की बड़ी आलोचना हो रही थी और ऐसे में न सिर्फ ग्लेन टर्नर को कोच बनाया, उन्हें ये अधिकार भी दिया कि जिस तरह के बदलाव का वे सुझाव देंगे- उन्हें माना जाएगा। ऐसे में जर्मेन को कप्तान बनाने पर सहमति बनी थी।
पाकिस्तान में टेस्ट जीत और सीरीज 1-1 से बराबर एक ख़ास उपलब्धि थी पर लगभग उसी समय, उनकी बल्लेबाजी फॉर्म में गिरावट शुरू हो गई। इसी टूर के दौरान टेस्ट में अपना एकमात्र 50 बनाया पर सेलेक्टर्स अब कुछ और बेहतर चाहने लगे थे। 1997 की शुरुआत में, जब इंग्लैंड ने न्यूज़ीलैंड को उन्हीं की पिचों पर 2-0 से हराया तो माहौल एकदम बदल गया। जो सीनियर जर्मेन को टॉप पर देखकर पहले से नाखुश थे- वे अब खुलकर उनकी आलोचना करने लगे। इस उथल-पुथल में पहले टर्नर गए और फिर जर्मेन- 23 साल के फ्लेमिंग नए कप्तान बने। जर्मेन को तो टीम से ही बाहर कर दिया।
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जर्मेन के साथ इस तरह के सलूक पर कैंटरबरी में बड़ा हंगामा हुआ। जर्मेन ने फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेलना जारी रखा लेकिन जल्दी ही 29 साल की उम्र में क्रिकेट से रिटायर हो गए।