क्या टेस्ट 5 दिन से घटाकर 4 दिन का होना चाहिए? एक नज़र आकंड़ों पर

Updated: Fri, Jan 10 2020 12:05 IST
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By RK Agarwal

क्रिकेट के सबसे लंबे और पुराने फॉर्मेट टेस्ट क्रिकेट को रोमांचक बनाने के लिए समय-समय पर कई एतेहासिक बदलाव होते रहे हैं, जिसमें डिसीजन रिव्यू सिस्टम (डीआरएस), बाउंसर का नियम, डे-नाइट टेस्ट और कॉनकशन सब्सीट्यूट का नियम शामिल हैं। अब एक औऱ नया बदलाव चर्चा में है जो है टेस्ट मैच का समय पांच दिन से घटाकर चार दिन का करने का।

इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) की क्रिकेट समिति 2023-2031 सत्र के दौरान वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप के मैचों को औपचारिक रूप से 5 की जगह 4 दिन का करने पर विचार कर रही है। जिससे व्यस्त कार्यक्रम में समय की बचत की जा सके।

यह आश्चर्यजनक नहीं है कि इसके समर्थक वो हैं जो इस खेल को चलाते हैं और खिलाफ वो हैं जो खेल खेलते हैं। आइए नजर डालते है 5 या कम दिन में टीमों द्वारा जीते गए टेस्ट मैचों आंकड़ों पर। (यह आंकड़े 1 जनवरी 2010 से लेकर 31 दिसंबर 2019 तक के हैं)

5 दिन में जीत.            – 149/349 (42.7%)

4 या कम दिन में जीत – 200/349 (57.7%)

टॉप तीन टीमें

  • ऑस्ट्रेलिया: कुल 57 मैच जीते,जिसमें 32 मुकाबले 4 या कम दिन में जीते (56.1%)
  • इंग्लैंड: कुल 57 मैच जीते,जिसमें से 36 मुकाबले 4 या कम दिन में जीते (63.1%)
  • भारत: कुल 56 मैच जीते, जिसें 34 मुकाबले 4 या कम दिन में जीते (60.7%)
 

वनडे और टी-20 इंटरनेशनल क्रिकेट के आने के बाद भी टेस्ट क्रिकेट अभी भी क्रिकेट फैंस के दिल के करीब है। जो लोग 4 दिन के टेस्ट मैच के समर्थन में हैं। उनके अनुसार इससे क्यूरेटर ऐसी पिच बनाने के लिए प्रोत्साहित होंगे जिसपर परिणाम निकले, ना कि सुस्त औऱ ड्रॉ मैच हों। साथ ही इससे खिलाड़ियों का वर्कलोड भी काफी कम हो जाएगा।

अगर एक टीम एक साल में 15 टेस्ट मैच खेलती है तो उसके शेड्यूल में 15 दिन बचेंगे। अगर मैच 4 दिन के अंदर खत्म होगा तो कम पैसा खर्च होगा। हालांकि इससे ब्रॉडकास्टर की विज्ञापन से होने वाली कमाई पर असर पड़ेगा।

जो इसके समर्थन में नहीं है उनके अनुसार यह एक विस्तारित लिमिटेड ओवर खेल बन जाएगा। जो एक दिन बचेगा उसमें क्रिकेट बोर्ड अतिरिक्त वनडे या टी-20 मैच कराना चाहेंगे। तो शेड्यूल लिमिटेड ओवर मुकाबलों से ओवरलोड हो जाएगा। 4 दिन के टेस्ट में कम तैयार हुई पिचों का भी जोखिम रहेगा, जिसके परिणामस्वरूप खिलाड़ियों को चोट भी लग सकती है।

इतिहास गवाह रहा है क्रिकेट की प्रवृत्ति का, पहले प्रस्तावों को नकारना और फिर दिल से उसे स्वीकार करना, टी-20 औऱ डीआरएस इसके उदाहरण हैं।


RK Agarwal

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