यशपाल शर्मा - भारत के संकटमोचक
1983 वर्ल्ड कप भारतीय क्रिकेट टीम के लिए क्रिकेट के मैदान पर बदलते युग का आरंभ था तो वहीं वर्ल्ड कप जैसे बड़े टूर्नामेंट को जीताने में जिस खिलाड़ी ने छुपा रूस्तम बनकर टीम भारत के लिए जीत के दरवाजे
1983 वर्ल्ड कप भारतीय क्रिकेट टीम के लिए क्रिकेट के मैदान पर बदलते युग का आरंभ था तो वहीं वर्ल्ड कप जैसे बड़े टूर्नामेंट को जीताने में जिस खिलाड़ी ने छुपा रूस्तम बनकर टीम भारत के लिए जीत के दरवाजे खोले थे वो और कोई नहीं भारतीय बल्लेबाजी क्रम के मिडिल ऑर्डर बल्लेबाज यशपाल शर्मा थे।
1983 वर्ल्ड कप के लिए जब भारतीय टीम का चयन हुआ तो अंतिम 13 में यशपाल शर्मा का भी नाम था। 1983 वर्ल्ड कप से पहले तक यशपाल शर्मा के ने 30.25 की बल्लेबाजी औसत के साथ केवल 556 रन थे। इस साधारण से प्रदर्शन से यह बिल्कुल भी नहीं लग रहा था कि वर्ल्ड कप टीम में यशपाल शर्मा का चयन सही है,पर क्रिकेट मैदान पर कब किसी खिलाड़ी की किस्मत साथ देदे किसी को पता नहीं रहता है । ऐसा ही कुछ क्रिकेट – ए – मैदान पर यशपाल शर्मा के साथ वर्ल्ड कप में हुआ।
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वेस्टइंडीज के साथ पहले ही लीग मैच में यशपाल शर्मा ने अपनी बल्लेबाजी से जीत की जो पटकथा तैयार करी वो अंत तक सकारात्मक सोच के साथ चलने में मददगार साबित हुई थी । इस मैच में वेस्टइंडीज के खतरनाक गेंदबाजी अटैक के सामने भारतीय बल्लेबाजी कमजोर साबित हो रही थी और भारत के 3 बहुमुल्य विकेट केवल 76 रन पर पवेलियन लौट गए थे और यशपाल शर्मा बल्लेबाजी करने आए थे।
यशपाल शर्मा ने संदीप पाटिल के साथ मिलकर संभल कर वेस्टइंडीज गेंदबाजी का सामना किया और दोनों ने मिलकर 49 रन की पार्टनरशिप करी । लेकिन टीम का स्कोर जब केवल 125 रन ही था तो पाटिल भी आउट होकर पवेलियन लौट गए थे। 141 रन के स्कोर तक आते-आते भारत के लिए वेस्टइंडीज के सामने सम्मानजनक स्कोर तक पहुंचने की जिम्मेदारी यशपाल शर्मा के कंधों पर आ गई थी । यशपाल शर्मा ने इस कठीन चुनौती पर अपने – आप को साबित किया और वेस्टइंडीज जैसी शक्तिशाली टीम के समक्ष 263 रन सम्मानजनक स्कोर खड़ा करने में अहम रोल निभाया। यशपाल ने जब होल्डिंग के गेंद पर आउट हए तब तक शर्मा ने 120 गेंद का सामना करते हुए 89 रन की उम्दा पारी खेली थी।
उनकी इस उम्दा बल्लेबाजी का ही करिश्मा था कि भारतीय टीम ने वर्ल्ड कप “83 के अपने पहले अभियान को सपलतापूर्वक पूरा कर वेस्टइंडीज को 34 रन से पटखनी दी थी। यशपाल शर्मा को उनके शानदार और संघर्षपूर्ण बल्लेबाजी के लिए मैन ऑफ द मैच से नवाजा गया था।
यशपाल शर्मा ने वर्ल्ड कप “83 में ऐन मौके पर स्पेशल प्रदर्शन करके भारत को कड़े मुकाबले में जीत दिलाई। ऐसा ही एक और प्रदर्शन यशपाल शर्मा का लीग मैच में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आया जब चेल्म्सफोर्ड के मैदान पर एक बार फिर भारतीय टीम की बल्लेबाजी ऑस्ट्रेलियन गेंदबाजी अटैक के सामने चरमरा गई। तब यशपाल शर्मा ने तेजी से रन बटोरकर टीम भारत का स्कोर 247 तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया थी । हालांकि इस मैच में भारतीय गेंदबाजों ने बेहतरीन प्रदर्शन करके टीम ऑस्ट्रेलिया को 129 रन पर समेट दिया था। इस मैच में यशपाल शर्मा ने केवल 40 गेंद पर 40 रन बनाएं जो कि ऑस्ट्रेलिया को बहुत भारी पडा था।
वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल में फिर से यशपाल शर्मा ने बेहतरीन खेल दिखाया। इंग्लैंड के मेनचेस्टर पर हुए सेमीफाइनल मैच में जब भारतीय टीम इंग्लैंड के 213 रन के लक्ष्य को पूरा करने उतरी तो हमेशा की तरह भारत की शुरूआत अच्छी नहीं रही और 2 विकेट केवल 50 रन के योग पर गिर गए थे। वर्ल्ड कप में संकट के घड़ी रन बनानें के आदत को अपना चुके बल्लेबाज यशपाल शर्मा ने एक बार फिर से मैच जिताऊ पारी खेली औऱ मोहिंदर अमरनाथ के साथ तीसरे विकेट के लिए 92 रन की पार्टनरशिप कर भारत को लक्ष्य के करीब पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके बाद यशपाल शर्मा ने संदीप पाटिल के साथ मिलकर टीम को जीत के दरवाजे तक पहुंचा दिया । 115 गेंद पर 3 चौके औऱ 2 छक्के के साथ शर्मा ने 61 रन की लाजबाव पारी खेली और जब यशपाल शर्मा आउट हुए उस समय तक मैच में सिर्फ औपचारिकता ही बची थी जिसे संदीप पाटिल ने पूरा कर दिया। वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल में मह्त्वपूर्ण बल्लेबाजी कर यशपाल शर्मा ने जो आत्मविश्वास टीम भारत में भरा उसका फल भारत को वर्ल्ड कप “83 के जीत के साथ मिला था।
वर्ल्ड कप 1983 में यशपाल शर्मा ने 34.28 के बल्लेबाजी औसत के साथ 240 रन बनाए थे जिसमें टूर्नामेंट में बेहद ही अहम मुकाबले में उनके द्वारा खेली गई पारीयों के बदौलत ही टीम भारत का फाइनल तक का सफर तय हो पाया था। यशपाल शर्मा के पारी की सबसे बेहतरीन बात ये रही कि उन्होंने संघर्ष भरे मुकाबले में टीम भारत के लिए सबसे ज्यादा रन बनाएं जो उनके क्रिकेट करियर का भी सबसे सुनहरा दौर था। वर्ल्ड कप 1983 में यशपाल शर्मा एक छुपा- रूस्तम के साथ – साथ संकट मोचन की किरदार को बड़े ही असाधारण सलिके से निभाया था।