इन दिनों वाइट बॉल क्रिकेट के लिए, टीम इंडिया के कप्तान को लेकर जो बयानबाजी, स्पष्टीकरण और अफवाहें सुनने को मिल रही हैं- उससे ऐसा लगता ये सब बड़ा अनोखा हो रहा है। असल में भारत के इंटरनेशनल क्रिकेट के इतिहास में झांकें तो पता चलेगा कि ये तो कुछ भी नहीं। रोहित शर्मा को कप्तान बनाए जाने के तरीके पर विवाद है- रोहित शर्मा की इस ड्यूटी के लिए योग्यता पर किसी ने सवाल नहीं उठाया। यहां तो ऐसे किस्से भी हैं, जब 'किसी' को भी कप्तान बना दिया- क्योंकि कप्तान बनने के लिए सिर्फ अच्छी क्रिकेट टेलेंट का होना जरूरी नहीं था। भारत के टेस्ट क्रिकेट में आने के बाद ही इसकी पहली मिसाल देखने को मिल गई थी।
ये मानने वाले कम नहीं कि 1926 में, आर्थर गिलिगन की एमसीसी टीम के भारत टूर ने भारत को टेस्ट दर्जा दिलाने में बड़ी ख़ास भूमिका अदा की। इसमें भी खास तौर पर उस एक पारी ने जो सीके नायडू ने उनके विरुद्ध खेली- 100 मिनट में 13 चौकों और 11 छक्कों की मदद से 153 रन। जब आउट हुए तो अंपायरों ने भी तालियां बजाईं- इसी से अंदाजा हो जाता है कि वे कैसे खेले? जब टेस्ट दर्जा मिला तो यही सीके नायडू टीम के कप्तान बनने के सबसे सही दावेदार थे- टीम 1932 में इंग्लैंड गई थी टेस्ट खेलने।
ये आज़ादी से पहले का दौर था और उन सब सालों में सही मायने में रॉयल्टी यानि कि राजा- महाराजाओं का पैसा ही क्रिकेट को चला रहा था। इस नाते क्रिकेट पर भी उनका कंट्रोल था। यही वजह है कि सभी को खुश करने के चक्कर में पोरबंदर के महाराजा को कप्तान, कुमार श्री लिंबडी (पोरबंदर के बहनोई) को उप कप्तान और यहां तक कि विजयनगरम के महाराज कुमार उर्फ विजी को डिप्टी उप कप्तान बना दिया। किसने चिंता की कि क्रिकेट के नाते तो सीके नायडू को कप्तान हुआ चाहिए था?